फलों को खराब होने से बचाएगा मिश्रित कागज से बना रैपर

hastakshep
15 Sep 2021

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फलों को खराब होने से बचाने की तकनीक | फल एवं सब्जियों के रख रखाव की सम्पूर्ण जानकारी | Complete information about the maintenance of fruits and vegetables.

Wrapper made of composite paper to protect the fruit from spoilage

नई दिल्ली, 15 सितंबर (इंडिया साइंस वायर): इंस्टीट्यूट ऑफ नैनो साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी (आईएनएसटी), मोहाली के शोधकर्ताओं ने कार्बन (ग्राफीन ऑक्साइड) से बना एक मिश्रित (कम्पोजिट) पेपर विकसित किया है। फलों को खराब होने से बचाने के लिए इस पेपर को प्रिजर्वेटिव्स (परिरक्षकों) से लैस किया गया है। कम्पोजिट पेपर विकसित करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि फलों की शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए रैपर के रूप में इसका उपयोग किया जा सकता है।

फलों को परिरक्षित करने की डिपिंग तकनीक - फल परिरक्षण संबंधित जानकारी - Fruit Preservation Information

फलों को परीरक्षित करने की मौजूदा डिपिंग तकनीक में परिरक्षक, फल द्वारा सोख लिये जाते हैं, जिससे फलों के विषाक्त होने का खतरा रहता है। इसके विपरीत नया विकसित किया गया रैपर सिर्फ जरूरत पड़ने पर ही प्रिजर्वेटिव रिलीज करता है। इस रैपर की एक खासियत यह भी है कि इसका दोबारा उपयोग किया जा सकता है, जो फलों के परिरक्षण के लिए वर्तमान में प्रचलित तकनीक के साथ संभव नहीं है।

इस गैर-विषैले और पुन: प्रयोग योग्य रैपिंग पेपर को विकसित करने के लिए शोधकर्ताओं ने कार्बन मैट्रिक्स को परिरक्षक के साथ इनक्यूबेट किया है।

कमरे के तापमान में 24 घंटे के ऊष्मायन के बाद प्राप्त उत्पाद से अतिरिक्त परिरक्षकों को हटाने के लिए उसे कई बार धोया गया, और अंत में, इस कार्बन-परिरक्षक कम्पोजिट को कागज में ढाला गया है।

इस पेपर को विकसित करने वाले शोधकर्ताओं का कहना है कि यह नया उत्पाद फलों की शेल्फ लाइफ बढ़ाकर किसानों और खाद्य उद्योग को लाभ पहुँचा सकता है। उनका कहना है कि नये रैपर के उपयोग से फिनोल सामग्री में सुधार देखा गया है। फिनोल, कोल टार से प्राप्त होने वाला हल्का अम्लीय विषाक्त सफेद क्रिस्टलीय ठोस पदार्थ है, जिसका उपयोग रासायन निर्माण और घुलित रूप में (कार्बोलिक नाम के तहत) एक कीटाणुनाशक के रूप में होता है।

भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग से सम्बद्ध स्वायत्त संस्थान इंस्टीट्यूट ऑफ नैनो साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी (आईएनएसटी) के शोधकर्ताओं ने डॉ. पी.एस. विजयकुमार के नेतृत्व में यह अध्ययन किया है। शोधकर्ताओं की कोशिश एक ऐसा विकल्प तलाश करने की थी, जो अपशिष्ट से विकसित हो सके, और जिससे फलों में परिरक्षकों के सोखने की समस्या न हो।

इस ग्राफीन फ्रूट रैपर के उत्पादन के लिए केवल बायोमास के ताप से उत्पादित कार्बन की आवश्यकता होती है। डॉ विजयकुमार ने कहा है कि "अपशिष्टों से प्राप्त कार्बन सामग्री को भारी मात्रा में कार्बनिक अणुओं को धारण करने के लिए जाना जाता है, और इस तरह परिरक्षक भारित कार्बन तैयार किया गया है, और फलों के संरक्षण के लिए उसे कागज में ढाला गया है। कार्बनिक अणुओं को धारण करने के लिए कार्बन की क्षमता बढ़ाने से हमें इस उत्पाद को विकसित करने में मदद मिली है।

फल जल्दी खराब हो जाते हैं; इसलिए उत्पादित होने वाले लगभग 50 प्रतिशत फल बर्बाद हो जाते हैं, जिससे भारी नुकसान होता है। पारंपरिक रूप से; फलों का संरक्षण राल, मोम, या खाद्य पॉलिमर के साथ परिरक्षकों की कोटिंग पर निर्भर करता है, जिससे स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। शोधकर्ताओं का दावा है कि फलों के लिए इस रैपर का उपयोग करने से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि ग्राहकों को बेहतर गुणवत्ता के फल मिल सकें।

केंद्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय, राज्य मंत्री प्रधानमंत्री कार्यालय, कार्मिक, लोक शिकायत, पेंशन मंत्रालय, परमाणु ऊर्जा एवं अंतरिक्ष विभाग डॉ जितेंद्र सिंह ने अपने एक ट्वीट में कहा है कि कार्बन (ग्राफीन ऑक्साइड) से बने मिश्रित कागज का लाभ बड़े पैमाने पर किसानों के साथ-साथ फूड इंडस्ट्री को भी हो सकता है। (इंडिया साइंस वायर)

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