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जैव विविधता : भारत में उल्लुओं की आबादी क्यों कम हो रही है

जानिए भारत में उल्लुओं की कितनी प्रजातियाँ हैं। उल्लुओं की आँखों की क्या विशेषताएँ हैं? उल्लू अपनी गर्दन कितनी डिग्री घुमा सकता है? उल्लू के सिर घुमाने का रहस्य क्या है?

जैव विविधता : भारत में उल्लुओं की आबादी क्यों कम हो रही है

उल्लू (Owl in Hindi) चुपचाप उड़ते हैं। उल्लू के पर ऐसे आकार के हैं कि उड़ते समय कम-से-कम आवाज करते हैं। साथ में उनके शरीर पर पंखों का घनत्व अन्य पक्षियों से कहीं अधिक है - जो उड़ते समय आवाजों को सोख लेते हैं। सोचिए, रात को बिना किसी आवाज के उड़ते हुए, बड़ी-बड़ी आँखों वाले ये पक्षी शायद डरावने लगते होंगे, लेकिन मुझे तो ये सुन्दर लगते हैं। 

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भारत में उल्लुओं की कितनी प्रजातियाँ हैं

भारत में उल्लुओं की 30 प्रजातियाँ (species of owls in india ) पाई जाती हैं। आज तक इनका कोई व्यवस्थित आकलन नहीं हुआ है, लेकिन पक्षी वैज्ञानिकों का कहना है कि पिछले कुछ दशकों से उल्लू कम दिख रहे हैं। मुमकिन है कि जंगलों का कटना इसका कारण हो सकता है।

अपने स्नातकोत्तर शोध के दौरान मैंने काफी समय जंगलों में बिताया है। जंगल में रहना मेरे जैसे शहरी के लिए चुनौती-भरा तो था, साथ में बहुत मजा भी आता था। उन दिनों की एक बात मुझे बहुत अच्छी लगती थी - रात को जागकर जंगल की आवाज़ें सुनना। 

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ब्राउन फिश आउल

हमारा कमरा गाँव से कुछ दूर था और रात के सन्नाटे में जानवरों की विभिन्न आवाजें (various sounds of animals in the silence of the night) सुनाई देती थीं। रीछ-तेन्दुआ, चीतल-साम्भर, टिटहरी-उल्लू, मेंढक, झींगुर, चमगादड़ आदि सुनने को मिलते थे। इनमें से मुझे बहुत पसन्द थी एक धीमी और गहरी आवाज में हु-हु-ह्ऊऊऊऊ। ये ब्राउन फिश आउल की आवाज थी। कभी एक ही उल्लू की आवाज सुनाई देती, कभी दो उल्लू बातें कर रहे होते। कभी-कभी दोनों बातें करते हुए, धीरे-धीरे जंगल से गुज़र रहे होते - उनकी आवाज़ें एक दिशा में जाती हुई सुनाई देतीं। डेढ़-दो फुट के इस पक्षी को मैंने दिन में एक ही बार देखा था (ब्राउन फिश आउल- brown fish owl ज़्यादातर उल्लुओं की तरह दिन में आराम करते हैं और रात को सक्रिय रहते हैं) लेकिन इनकी आवाज अक्सर सुनाई देती थी।

उल्लुओं की आँखों की कुछ विशेषताएँ

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उल्लुओं के बारे में उस समय कम ही जानती थी लेकिन उन्हें पहचानने में कभी दिक्कत नहीं होती थी। उनके चेहरे का नक्शा और उनकी आँखें अन्य पक्षियों से काफी अलग जो हैं। उल्लुओं की आँखें सचमुच बहुत बड़ी होती हैं - शरीर के आकार को ध्यान में रखते हुए शायद ही किसी और जन्तु की आँखें उल्लू जितनी बड़ी होंगी। 2-3 फुट के कुछ उल्लुओं की आँखें 5-6 फुट के मनुष्यों की आँखों जितनी होती हैं। इनकी आँखें ही नहीं, पुतलियाँ भी बड़ी होती हैं जो ज़्यादा-से-ज़्यादा प्रकाश आँख के अन्दर आ पाए यह सम्भव बनाती हैं।

इस तरह उल्लू रात के अँधेरे में भी, बहुत ही कम रोशनी में देख पाते हैं। उल्लुओं की आँखों की कुछ अन्य विशेषताएँ (Some characteristics of owl's eyes) भी हैं। 

उल्लुओं की आँखें अन्य पक्षियों की तरह सिर के दाईं-बाईं ओर स्थित नहीं होतीं; बल्कि चपटे चेहरे पर सामने की तरफ होती हैं। और उल्लू अपनी आँखों को हिला-घुमा नहीं सकते। रास्ते पर खड़े आते-जाते लोगों को कुछ हद तक हम सिर्फ अपनी आँखें यानी आँखों की पुतलियाँ फेरकर भी देख सकते हैं। उल्लू ऐसा नहीं कर सकते। किसी अलग दिशा में देखना हो तो उल्लू को अक्सर सिर घुमाना ही पड़ता है। शायद इसलिए वे लगभग 270 डिग्री तक गर्दन घुमा सकते हैं। यानी कि सामने देखने वाला उल्लू सिर घुमाकर न केवल यह देख सकता है कि पीछे क्या हो रहा है, दाईं ओर मुड़ते-मुड़ते बाईं तरफ भी देख सकता है। और ऊपर देखते-देखते, अपना सिर उल्टा करके पीछे की तरफ भी देख सकता है।

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आप अपना सिर कितना घुमा सकते हैं? 

हम मनुष्य अपने सिर को सिर्फ 90 डिग्री घुमा सकते हैं। अपने पीछे क्या हो रहा है, यह देखने के लिए हमें शरीर को मोड़ना पड़ता है। अगर हम उल्लुओं जैसे गर्दन मोड़ते-मरोड़ते तो मस्तिष्क तक खून पहुँचाने वाली नलियाँ बन्द हो जातीं और हम बेहोश हो जाते। फिर उल्लू ऐसी हरकत अपने आप को बिना नुकसान पहुँचाए कैसे करते हैं? शोध से हमें इस सवाल के कुछ जवाब मिले हैं।

उल्लुओं की गर्दन की संरचना को समझें

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सिर को 270 डिग्री घुमाने के लिए दो समस्याओं को हल करना होता है। पहला गर्दन, खासकर सख्त हड्डियों को इतना लचीला कैसे बनाया जाए, और दूसरा मस्तिष्क तक खून का बहाव कैसे बनाए रखें। उल्लुओं की गर्दन की संरचना और उसके लचीलेपन को हम साइकिल की चेन के उदाहरण से समझ सकते हैं। मान लेते हैं कि सामान्य साइकिल की चेन में 90 कड़ियाँ हैं। अगर उतनी ही लम्बाई की चेन 90 छोटी कड़ियों की बजाय 10 बड़ी कड़ियों की बनी होती तो क्या होता - साइकिल चलाते समय क्या चेन सुचा डिग्री घूमती, क्या साइकिल आसानी से चलती?

उल्लू अपनी गर्दन कितनी डिग्री घुमा सकता है?

समझ में आता है कि उतनी ही लम्बाई में जितने ज़्यादा लिंक, चेन में उतना लचीलापन और चेन उतनी अच्छी तरह से घूम पाती है। रीढ़धारी जानवरों की गर्दन भी कुछ ऐसे ही - कशेरुकों की एक चेन जैसी बनी होती है। मनुष्यों (और सभी स्तनधारी जानवरों) की गर्दन में 7 की तुलना में उल्लुओं की गर्दन में 14 कशेरुक हड्डियाँ होती हैं। इस तरह, कम लम्बाई की गर्दन में ज़्यादा जोड़ होने के कारण उल्लू गर्दन आसानी से और हमसे ज़्यादा घुमा सकते हैं। वैसे पक्षियों के लिए यह खास बात नहीं है क्योंकि उनकी गर्दन में 11से 25 तक कशेरुक होते हैं। हंस जैसे लम्बी गर्दन वाले पक्षियों के मेरूदण्ड के इस क्षेत्र में 22-25 कशेरुक होते हैं और इसलिए उनकी गर्दन काफी लचीली होती है। लेकिन उल्लुओं की गर्दन बहुत लम्बी नहीं होती। फिर भी 270 डिग्री घुमा लेते हैं। हाल ही में हुए शोध से पता चला है कि उल्लुओं के कशेरुकों की संरचना और उनके बीच जोड़ की कुछ विशेषताएँ उनके लचीलेपन का राज हैं।

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उल्लू के सिर घुमाने का रहस्य

अब दूसरी समस्या पर आते हैं - मस्तिष्क तक खून के बहाव को रोके बिना सिर कैसे घुमाया जाए। उल्लुओं की रक्त धमनियों की कई खास बातें हैं जिनके कारण वे बिना दिक्कत गर्दन मोड़ सकते हैं। रीढ़धारी जन्तुओं में ग्रीवा धमनियाँ , जो मस्तिष्क को खून पहुँचाती हैं, गर्दन में दाईं व बाईं ओर पाई जाती हैं। उल्लुओं में ये धमनियाँ गर्दन के बाजूवाले हिस्सों में न होकर, रीढ़ के बिलकुल आगे, गर्दन के बीच में होती हैं। तो जब हम अपना सिर घुमाते हैं तो गर्दन में ये धमनियाँ उल्लुओं की धमनियों से ज़्यादा मुड़ती हैं। साइकिल के पहिए का सोचिए - एक चक्कर में पहिए के बाहरी भाग पर एक बिन्दु जितना घूमता है, अन्दर के गोले पर स्थित बिन्दु उसकी तुलना में बहुत कम घूमता है।

फिर मनुष्यों में गर्दन की हड्डियों में गुहिकाएँ यानी सुराख सिर्फ इतने बड़े होते हैं कि धमनियाँ उनमें से निकल जाएँ। उल्लुओं में धमनियों के लिए मनुष्यों से दस गुना ज़्यादा जगह होती है और इसलिए सिर घुमाते समय, धमनियाँ भी बिना बहुत कसे मुड़ सकती हैं। साथ में, ग्रीवा और अन्य धमनियों के बीच नलियाँ पाई जाती हैं। अगर गर्दन मुड़ते समय कोई धमनी बन्द हो जाती है, तो खून किसी अन्य नलिका या धमनी से निकल सकता है। 

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सबसे अनोखी बात तो यह है कि उल्लुओं में खोपड़ी के नीचे, ग्रीवा धमनियों में चौड़े खण्ड होते हैं जो फैलने पर खून से भर जाते हैं। यह संरचना किसी और जन्तु में नहीं पाई गई। वैज्ञानिकों का मानना है कि यह खून का एक कुण्ड, एक स्रोत है। जब मस्तिष्क तक खून का बहाव चाहे कुछ क्षण के लिए ही रुक जाता है, तो यहाँ से खून मस्तिष्क में पहुँचता है शायद इसी कारण उल्लू पीठ दिखाते समय भी हमें आसानी से नज़र में रख सकते हैं। इन अनुकूलनों के बावजूद, उल्लू शिकार के लिए अपनी दृष्टि पर नहीं, अपने सुनने की क्षमता पर ज़्यादा निर्भर होते हैं। 

विनता विश्वनाथन

(लेखिका 'संदर्भ' पत्रिका से सम्बद्ध हैं।)

जैव विविधता Biodiversity: Why the population of owls is decreasing in India

(देशबन्धु में प्रकाशित लेख का संपादित अंश साभार)

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