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Contaminated food is a serious threat not only to health but also to the economy
विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस क्यों मनाया जाता है?
हवा और पानी के बाद भोजन तीसरी सबसे बुनियादी चीज है. यह हमारी ऊर्जा का प्रभावित बिंदु भी है जो हमें स्वस्थ रखता है. सभी को हमेशा स्वस्थ रहने के लिए स्वस्थ भोजन खाना अति आवश्यक है. हमारे भोजन की सुरक्षा हमारे भोजन के स्वाद से हमेशा पहले आती है. ऐसा भोजन जो उपभोग के लिए सुरक्षित नहीं है, वह हम सब के स्वास्थ्य के लिए हमेशा जोखिम भरा रहता है. इसकी सुरक्षा के प्रति महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए और लोगों को इसके प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस (World food safety day in Hindi) का भी आयोजन किया जाता है.
विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस 2023 की थीम
अभी हाल ही में, पूरी दुनिया में विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस का आयोजन किया गया. जहां लोगों को दूषित भोजन और पानी के परिणाम स्वरूप होने वाली स्वास्थ्य संबंधी बीमारियां और इससे बचाव के मुद्दों पर वैश्विक ध्यान आकर्षित किया गया. इस वर्ष विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस का थीम "मानक (गुणवत्तापूर्ण) खाना जीवन बचाते हैं" रखा गया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया भर में 600 मिलियन मामले केवल असुरक्षित भोजन और खाद्य जनित बीमारियों के कारण होते हैं. इससे लगभग प्रतिवर्ष चार लाख बीस हज़ार लोगों की मौत हो जाती है. असुरक्षित भोजन न केवल मानव स्वास्थ्य के लिए बल्कि अर्थव्यवस्था के लिए भी एक गंभीर खतरे का संकेत देता है. उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य सुरक्षा की जिम्मेदारी न सिर्फ सरकार बल्कि उत्पादक और उपभोक्ता सभी की है. हम जो भोजन खा रहे हैं, वह सुरक्षित है या नहीं? इसे सुनिश्चित कराने की ज़िम्मेदारी के लिए खेत से लेकर टेबल तक सभी को अपनी भूमिका निभानी है.
खाद्य सुरक्षा क्यों जरूरी है?
प्रश्न यह उठता है कि आखिर खाद्य सुरक्षा क्यों आवश्यक है और इसे कैसे हासिल किया जा सकता है? इस पर चर्चा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र ने 5 मुख्य बिंदुओं के साथ दिशा निर्देश विकसित तय किये हैं. जिनमें पहला, सरकारों को सभी के लिए सुरक्षित और पौष्टिक भोजन सुनिश्चित कराने पर ज़ोर दिया गया है. दूसरा, कृषि और खाद्य उत्पादन में अच्छी प्रथाओं को अपनाने की आवश्यकता पर बल दिया गया है. तीसरा, व्यापार करने वाले लोगों को यह सुनिश्चित करने पर ज़ोर दिया गया है कि खाद्य पदार्थ सुरक्षित होने चाहिए. चौथा, सभी उपभोक्ताओं को सुरक्षित, स्वस्थ और पौष्टिक भोजन प्राप्त करने के अधिकार को सुनिश्चित करने को प्राथमिकता दी गई है. पांचवा और सबसे महत्वपूर्ण, खाद्य सुरक्षा तक सभी की पहुंच और जिम्मेदारी तय की गई है ताकि यह सभी ज़रूरतमंदों की पहुंच तक आसानी से संभव हो सके. परंतु सवाल उठता है कि क्या इन नियमों का पूरी तरह से पालन किया जा रहा है?
Food Poisoning से होती हैं 200 तरह की बीमारियां
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, पूरी दुनिया में फूड प्वाइजनिंग से 200 प्रकार की बीमारियां (200 types of diseases due to food poisoning) होती हैं. इसमें डायरिया से लेकर कैंसर तक शामिल हैं. करीब 60 करोड़ लोग हर वर्ष फूड प्वाइजनिंग की वजह से बीमार पड़ते हैं. लगभग 125000 बच्चे की प्रति वर्ष इसकी वजह से मौत तक हो जाती है.
गरीब और कमजोर लोगों पर फूड प्वाइजनिंग का असर
फूड प्वाइजनिंग का सबसे ज्यादा असर गरीब और सेहत से कमजोर लोगों पर पड़ता है. वहीं वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 10 में से एक व्यक्ति दूषित भोजन खाने के कारण बीमार पड़ रहा है. वही आज तक की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल करीब 15.73 लाख लोग खराब खाने की वजह से मारे जाते हैं. खराब खाने से मौतों के मामले में भारत दुनिया में दूसरे नंबर पर है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार 2008 से 2017 के बीच फूड प्वाइजनिंग एक प्रकार से प्रकोप की तरह फैला है और यह अभी भी फैल रहा है.
न केवल दूषित खाना बल्कि दूषित पानी भी लोगों की मौत का कारण बनता है. एक प्रमुख समाचारपत्र की रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया में हर साल दूषित पानी पीने से 2 करोड़ लोगों की मौत हो जाती है. इस मामले में भारत पांचवें स्थान पर है. भारत में आये दिन दूषित खाना अथवा पानी वजह से लोगों की मौत की ख़बरें सुर्खियां बनती रहती हैं. शायद ही ऐसा कोई दिन गुज़रता होगा जब समाचारपत्रों और सोशल मीडिया में दूषित खाना खाने या पानी पीने की वजह से लोगों के बीमार पड़ने या मौत हो जाने की ख़बरें प्रकाशित नहीं होती हैं. आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े राज्यों से ऐसी ख़बरें आम हो चुकी हैं. शहरों में अधिकांश दूषित खाने की वजह से लोगों के बीमार होने की ख़बरें आती रहती हैं तो वहीं झारखंड और छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों से दूषित पानी की वजह से लोगों में बीमारियां फैलने की ख़बरें आती रहती हैं. इसका सबसे अधिक बुरा प्रभाव 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के स्वास्थ्य पर देखने को मिलता है. इससे न केवल उनका स्वास्थ्य खराब रहता है बल्कि कई बार वह इसके दुष्प्रभाव से दिव्यांग तक हो जाते हैं. झारखंड और छत्तीसगढ़ के ग्रामीण क्षेत्रों में आर्सेनिक जल के कारण होने वाली बीमारियां अक्सर समाचारपत्रों में छाई रहती हैं.
"ईट राइट इंडिया" क्या है?
हालांकि केंद्र सरकार इन मुद्दों के प्रति काफी गंभीर है. इस संबंध में कई योजनाएं भी चलाई हैं. जो नागरिकों को स्वस्थ बनाए रखने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं. भारत सरकार, भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) की पहल के तहत सभी भारतीयों के लिए सुरक्षित स्वास्थ्य तथा टिकाऊ भोजन सुनिश्चित कराने के लिए देश की खाद्य प्रणाली को बेहतर बनाने पर ज़ोर दिया जाता रहा है. "ईट राइट इंडिया" राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 से जुड़ी एक ऐसी नीति है जिसमें आयुष्मान भारत, पोषण अभियान, एनीमिया मुक्त भारत और स्वच्छ भारत मिशन जैसे प्रमुख कार्यक्रमों पर ध्यान केंद्रित किया गया है. बहरहाल, सरकार अपनी ओर से इस दिशा में हर संभव प्रयास कर रही है. परंतु खाद्य सुरक्षा एक ऐसा मुद्दा है जिसके प्रति हर एक व्यक्ति को जागृत होने की जरूरत है. हर गली, मोहल्ले और चौराहों पर बिकने वाले खाद्य पदार्थ कितने सुरक्षित हैं, इसकी समझ स्वयं को रखने की जरूरत है. तभी हम स्वस्थ रहकर आगे बढ़ सकते हैं और स्वस्थ भारत की परिकल्पना को साकार कर सकते हैं क्योंकि स्वस्थ भारत ही मजबूत अर्थव्यवस्था का आधार बन सकता है.
भारती डोगरा
पुंछ, जम्मू
(चरखा फीचर)
Contaminated food is a serious threat not only to health but also to the economy