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पोडियम से फुटपाथ तक, आधी रात खुले आसमान के नीचे न्याय की आस में पहलवान

अंतरराष्ट्रीय ख्याति के ये पहलवान अपने लिए किसी सुविधा या रियायत की मांग नहीं कर रहे, कोई सरकारी बंगला, गाड़ी या नौकरी नहीं मांग रहे। वे केवल अपने लिए इंसाफ की मांग कर रहे हैं। और इंसाफ भी उस इल्जाम पर, जो किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्म का कारण है।

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hastakshep
25 Apr 2023
Editorial Deshbandhu देशबन्धु का संपादकीय

पोडियम से फुटपाथ तक, आधी रात खुले आसमान के नीचे न्याय की आस में पहलवान

भारतीय पहलवानों ने भारतीय कुश्ती महासंघ और इसके अध्यक्ष भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ एक बार फिर मोर्चा खोल दिया है। विनेश फोगाट, बजरंग पुनिया और साक्षी मलिक सहित कई खिलाड़ी बीते रविवार, 23 अप्रैल से दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरना दे रहे हैं। सोमवार, 24 अप्रैल को दूसरे दिन भी इन पहलवानों का विरोध प्रदर्शन जारी रहा। इन खिलाड़ियों का कहना है कि जब तक यौन शोषण आरोपी भाजपा सांसद बृजभूषण सिंह (Sexual abuse accused BJP MP Brij Bhushan Singh) को गिरफ्तार नहीं किया जाता, तब तक ये सभी यहां से नहीं जाएंगे। न्याय की आस में पहलवान प्रकरण पर देशबन्धु का आज का संपादकीय किंचित् संपादन के साथ साभार...

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''पोडियम से फुटपाथ तक, आधी रात खुले आसमान के नीचे न्याय की आस में।'' ये किसी कविता की पंक्तियां नहीं हैं, कड़वी सच्चाई बयां करता हुआ ट्वीट है। विश्व चैंपियनशिप, एशियन गेम्स, कॉमनवेल्थ गेम्स और एशियन चैंपियनशिप में कई पदक जीत कर भारत का नाम रोशन करने वाली पहलवान विनेश फोगाट ने ये झकझोरने वाला ट्वीट किया है। सोमवार 23 अप्रैल को विनेश फोगाट के साथ साक्षी मलिक, बजरंग पुनिया समेत कई और पहलवान जंतर-मंतर पर धरने पर बैठे और फुटपाथ पर ही रात गुजारी।

 

अंतरराष्ट्रीय ख्याति के ये पहलवान अपने लिए किसी सुविधा या रियायत की मांग नहीं कर रहे, कोई सरकारी बंगला, गाड़ी या नौकरी नहीं मांग रहे। वे केवल अपने लिए इंसाफ की मांग कर रहे हैं। और इंसाफ भी उस इल्जाम पर, जो किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्म का कारण है। इन पहलवानों ने भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों का यौन उत्पीड़न करने जैसे गंभीर आरोप लगाए हैं। 

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हालांकि बृजभूषण ख़ुद को पाक-साफ़ कह रहे हैं, लेकिन आरोपी अपने लिए खुद फैसला नहीं सुना सकता। ये काम तो अदालत का होता है और इसके लिए बाकायदा एक प्रक्रिया न्याय व्यवस्था के तहत बनी हुई है। जिसकी पहली सीढ़ी पुलिस थाने में दर्ज प्राथमिकी होती है। लेकिन इन पंक्तियों के लिखे जाने तक दिल्ली पुलिस ने इन पहलवानों की शिकायत पर एफआईआर यानी प्राथमिकी तक नहीं लिखी है। और ऐसा नहीं है कि इन खिलाड़ियों ने पहली बार धरना दिया हो। इस साल जनवरी में भी पहलवान इसी जंतर-मंतर पर इसी शिकायत के साथ धरने पर बैठे थे। लेकिन तब भी ब्रजभूषण शरण सिंह पर कोई कार्रवाई नहीं की गई, बल्कि खेल मंत्रालय ने एक जांच समिति गठित कर दी थी। जिसने क्या काम किया, किस तरह की जांच की और कैसी रिपोर्ट बनाई, यह अभी सार्वजनिक नहीं है।

दिल्ली पुलिस ने एफआईआर दर्ज करने की जगह यौन उत्पीड़न के आरोपों की जांच के लिए खेल मंत्रालय द्वारा गठित जांच समिति से रिपोर्ट मांगी है। मान लें कि जांच समिति की रिपोर्ट में ब्रजभूषण शरण सिंह को निर्दोष बताया जाए और खिलाड़ियों के आरोप बेबुनियाद, तो क्या पुलिस एफआईआर लिखने से इंकार कर सकती है। 

दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 154 और 155 के तहत थाना प्रभारी का कानूनन कर्तव्य है कि वह किसी भी अपराध की शिकायत मिलने के बाद एफआईआर दर्ज करे। साथ ही शिकायत देने वाले को इसकी पावती मुफ्त में दे। अगर पुलिस अधिकारी प्राथमिकी दर्ज करने से मना करता है, तो उसके खिलाफ भारतीय दंड संहिता 1860 की धारा 166 के तहत कार्रवाई की जा सकती है। 

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ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत पर हैरान करने वाला है दिल्ली पुलिस का रवैया

वर्ष 2013 में ललिता कुमारी बनाम उत्तर प्रदेश सरकार के मामले में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ ने आदेश दिया था कि गंभीर अपराधों की शिकायत मिलते ही पुलिस अधिकारी को एफआईआर दर्ज करनी होगी। वह इससे इनकार नहीं कर सकता है। अगर ऐसा करता है, तो पुलिस अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की जाए। लेकिन ब्रजभूषण शरण सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न जैसी गंभीर शिकायत पर दिल्ली पुलिस का रवैया हैरान कर रहा है। पुलिस एफआईआर दर्ज नहीं कर रही, तो अब पहलवानों को सुप्रीम कोर्ट का रुख करना पड़ा है।

देश में कानून व्यवस्था की दुर्गति बयां करते हैं आसमान के नीचे न्याय की आस में पहलवान

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जब अंतरराष्ट्रीय ख्याति के खिलाड़ियों को इंसाफ के लिए धरने पर बैठना पड़े और सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़े, तो समझा जा सकता है कि देश में कानून व्यवस्था की कैसी दुर्गति कर दी गई है और आम आदमी के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ना कितना दुष्कर हो गया है। विडंबना ये है कि जिस वक्त कई भारतीय पहलवान धरने पर बैठे हैं, उस वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर में चल रहे खेल मंत्रियों के चिंतन शिविर को वर्चुअली संबोधित करते हुए कहा कि, ''पिछले साल भारत के एथलीटों ने इतने सारे अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों में कमाल का प्रदर्शन किया। उनकी जीत का जश्न मनाने के साथ-साथ हमें यह भी सोचना चाहिए कि हम उनकी और मदद कैसे कर सकते हैं।'' प्रधानमंत्री की बातों और व्यवहार में कितना अंतर है, उसका इससे बेहतर प्रमाण नहीं मिल सकता।

मोदी जी को समझना चाहिए

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खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं को जीतते हैं, तो इसमें निजी उपलब्धि के साथ देश के लिए गौरव भी जोड़ते चले जाते हैं। ऐसे में उनकी मदद करने की बात करने की बात करके प्रधानमंत्री उन्हें याचक की तरह देख रहे हैं। 

श्री मोदी को यह समझना चाहिए कि खेल हो या अन्य कोई क्षेत्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सुविधाएं और संसाधन उपलब्ध कराए, ताकि प्रतिभाओं को निखरने का मौका मिले और देश के खाते में उपलब्धियां जुड़ती जाएं। सरकार ये सुविधाएं जनता के दिए धन से ही जुटाएगी, इसलिए इसमें मदद करने जैसा कोई भाव होना ही नहीं चाहिए। बल्कि प्रधानमंत्री मोदी को ये सोचना चाहिए कि किसी के साथ भी अन्याय न हो और यौन उत्पीड़न जैसे आरोप लगें तो उनकी त्वरित जांच हो।

न्याय के इस तकाजे के खिलाफ काम कर रही है सरकार
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जनवरी में जब भारतीय पहलवान धरने पर बैठे थे, तभी श्री मोदी अगर ब्रजभूषण शरण सिंह पर कड़ी कार्रवाई का फैसला लेते, तो उनके विचारों और कार्यों में एकरुपता नजर आती। तब उनके बेटी बचाओ वाले नारे की सार्थकता भी साबित होती। लेकिन अभी तो देखकर निराशा होती है कि किस तरह आरोपों पर चयनात्मक तरीके से काऱर्वाई होती है। सत्तारुढ़ दल से संबंधित लोगों पर पुलिस या जांच एजेंसियों की निगाहें नहीं पड़तीं, भले ही उनके खिलाफ कितने भी गंभीर इल्जाम क्यों न हों और यही इल्जाम अगर विरोधी दल के किसी व्यक्ति पर हो, तो न केवल फौरन कार्रवाई होती है, बल्कि इसे राजनैतिक तौर पर भुनाना भी शुरु कर दिया जाता है। इंसाफ की देवी की आंख पर पट्टी इसलिए होती है कि वह बिना किसी पक्षपात के न्याय कर सके। लेकिन सरकार न्याय के इस तकाजे के विपरीत काम कर रही है।

तीन महीने बाद फिर से जंतर-मंतर पहुंच चुके पहलवानों को कब तक न्याय मिलेगा, कहा नहीं जा सकता। लेकिन इस बार उन्होंने राजनैतिक दलों से भी साथ आने कहा है, तो इतना तय है कि अब यह मुद्दा आगामी चुनाव में उछाला जाएगा। पिछली बार के धरने में साथ देने पहुंची माकपा नेता वृंदा करात को मंच पर आने नहीं दिया गया था। अब सभी राजनैतिक दलों के लिए धरने पर बैठे पहलवानों ने जगह बना दी है। भाजपा का इस पर क्या रुख रहेगा, यह उसका फैसला है, लेकिन बाकी दलों को महिला पहलवानों के इंसाफ की लड़ाई में एकजुटता दिखानी चाहिए।

From the podium to the pavement, under the open sky at midnight, wrestlers in the hope of justice

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