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भारत वैश्विक ऊर्जा बाजार को संचालित करने की बेहतर स्थिति में : विशेषज्ञ

विशेषज्ञों का मानना है कि वैश्विक स्‍तर पर ऊर्जा के बाजार को संचालित करने में भारत बेहतर स्थिति में है। भारत जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपनी वाजिब जिम्मेदारी को बखूबी समझ रहा है

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hastakshep
07 Jun 2023
clean energy

भारत वैश्विक ऊर्जा बाजार को संचालित करने की बेहतर स्थिति में : विशेषज्ञ

‘क्‍लाइमेट ट्रेंड्स’ के वेबिनार में विशेषज्ञों का मत

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नई दिल्ली, 7 जून 2023: अपने बिजली क्षेत्र को कैसे विकसित किया जाए, इस बारे में भारत के विकल्पों का वैश्विक महत्व जगजाहिर है। विशेषज्ञों का मानना है कि वैश्विक स्‍तर पर ऊर्जा के बाजार को संचालित करने में भारत बेहतर स्थिति में है। भारत जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपनी वाजिब जिम्मेदारी को बखूबी समझ रहा है और जहां तक जी20 में शामिल विकसित देशों का सवाल है तो उन्हें इस दिशा में और भी ज्यादा प्रयास करने चाहिए। इस मामले में भारत की राष्ट्रीय ऊर्जा नीति (National Energy Policy of Indiaएनईपी) एक बेसलाइन (आधार) की तरह काम करेगी। 

क्‍या एनईपी वर्ष 2070 तक नेट जीरो के महत्‍वाकांक्षी लक्ष्‍य को हासिल करने के अनुरूप है? 

यह देखते हुए कि अगर भारत को अपना लक्ष्‍य पूरा करना है, खासकर तब जब कोयला क्षेत्र लगातार सिकुड़ रहा है, अक्षय ऊर्जा को वर्तमान दर से 2.5 गुना बढ़ने की आवश्यकता है। ऐसे में नीति निर्माताओं, वित्तीय संस्थानों और निवेशकों के लिए इसका क्या मतलब है? इसके अलावा भारत जब अपनी जी20 अध्यक्षता के तहत दूसरे चरण में प्रवेश करेगा तो यह शेष जी20 देशों को क्या संकेत देगा, इन पहलुओं पर चर्चा के लिये जलवायु थिंकटैंक ‘क्‍लाइमेट ट्रेंड्स’ ने मंगलवार को एक वेबिनार आयोजित किया। 

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जी-20 देशों के अध्यक्ष के तौर पर भारत के सामने मौजूद अवसरों के बारे में इंटरनेशनल सोलर अलायएंस के एलेक्‍स रटर ने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि भारत के सामने बाजार को संचालित करने की बेहतर स्थिति है। भारत जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपनी वाजिब जिम्मेदारी को बखूबी समझ रहा है और जहां तक जी20 में शामिल विकसित देशों का सवाल है तो उन्हें इस दिशा में और भी ज्यादा प्रयास करने चाहिए। मेरा मानना है कि भारत की राष्ट्रीय ऊर्जा नीति एक बेसलाइन की तरह काम करेगी। भारत यह कह सकता है कि अगर पश्चिमी देशों के तौर पर आप डीकार्बनाइजेशन के प्रति गंभीर हैं तो आपको हमें और अधिक वित्तपोषण करने की जरूरत है ताकि हम अपने विभिन्न क्षेत्रों का डीकार्बनाइजेशन कर सकें।’’ 

भारत में बिजली के वितरण के लिए और बेहतर योजना बनाए जाने की आवश्यकता है। भारत में कोविड-19 महामारी के बाद से पीक डिमांड में अंतर आया है। हीटवेव के लंबे समय तक बने रहने वाले असर की वजह से पीक डिमांड सिर्फ दिन में ही नहीं बल्कि रात में भी होने लगी है। इसके लिए इंडस्ट्रियल डिमांड में कमी लाने जैसे उपाय अपनाए जा रहे हैं। 

अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा देने के प्रयासों पर कैसे भरोसा हो? भारत में अक्षय ऊर्जा के लिए लोन क्यों महंगा है?

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क्‍लाइमेट ट्रेंड्स की निदेशक आरती खोसला ने कहा कि अक्षय ऊर्जा को ज्यादा से ज्यादा बढ़ावा देने के प्रयासों की विश्वसनीयता कई बातों पर निर्भर करेगी। अक्सर ब्याज दर को लेकर तुलना की जाती है। पश्चिमी देशों के मुकाबले भारत में अक्षय ऊर्जा संबंधी परियोजनाओं के लिए दिए जाने वाले कर्ज की ब्याज दर दो से तीन गुना ज्यादा होती है। यह अपने आप में एक बहुत बड़ी बाधा है। जहां जर्मनी में एक सौर ऊर्जा परियोजना के लिए 3 से 4 प्रतिशत की ब्याज दर पर कर्ज मिल जाता है, वहीं भारत में यह 10 से 12 प्रतिशत है। यह अपने आप में काफी कुछ कहता है। ऐसे में सवाल उठता है कि भारत सरकार इस मामले पर क्या कर सकती है। क्या परियोजनाओं की पूलिंग से मदद मिल सकती है। 

रटर ने भारत में ऊंची ब्याज दरों के बारे में जिक्र करते हुए कहा, "बाजार के उभरते हुए वृद्धिशील जोखिमों के मद्देनजर ब्याज दरों का ऊंचा होना लाजमी है। उस लिहाज से देखें तो पश्चिमी देशों और भारत के बीच बहुत ज्यादा अंतर नहीं है। देखें तो भारत ने बहुत अच्छा काम किया है। हालांकि जहां तक वितरण क्षेत्र का सवाल है तो वित्तपोषण के काम को पूरी तरह से नहीं किया जा सका है। ऐसे में भारत के पास एक मौका है कि वह विकासशील देशों का नेतृत्व करे।’’ 

एम्बर क्लाइमेट के आदित्य लोला ने कहा कि समस्या की सटीक व्याख्या करना बहुत जरूरी है। समस्या को अल्पकालिक, मध्यम कालिक और दीर्घकालिक के तौर पर वर्गीकृत करना होगा। दीर्घकाल में हम ऐसे युग की तरफ बढ़ रहे हैं जहां अक्षय ऊर्जा की मात्रा में उल्लेखनीय बढ़ोत्‍तरी होने जा रही है, लेकिन अल्पकालिक लिहाज से देखें तो यहां एक संतुलन बनाए जाने की जरूरत है। 

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उन्‍होंने कहा कि भारत के सामने यह अवसर है कि वह सौर ऊर्जा के उत्पादन में तेजी से वृद्धि करे और भविष्य में बिजली आयात पर अपनी निर्भरता को कम करे। भारत को अपने एनईपी अनुमानों के मुकाबले कहीं ज्यादा तेजी से अपनी पवन ऊर्जा तथा सौर ऊर्जा परियोजनाओं को आगे बढ़ाना होगा। इस बात पर विशेष जोर देना जरूरी है कि सुरक्षा और एनर्जी एक्सेस के परिप्रेक्ष्य में पवन,सौर और स्टोरेज की दिशा में कोयले के मुकाबले कहीं ज्यादा तेजी से काम करने की जरूरत है। 

आदित्‍य ने कहा कि अगर योजना पर गौर करें तो इसमें कैप्टिव उत्पादन को 200 टेरावाट से बढ़ाकर 600 टेरावाट करने की बात कही गई है और सिस्टम ऑप्टिमाइजेशन पर्सपेक्टिव से देखें तो कैप्टिव उत्‍पादन दरअसल केन्द्रित उत्‍पादन (सेंट्रलाइज्‍ड जेनरेशन) के मुकाबले कहीं ज्यादा महंगी साबित होगी। ऐसे में उस 400 टेरावाट की वृद्धि को पूरा करने के लिए 200 गीगावॉट विंड और सोलर एनर्जी को बढ़ाया जा रहा है। यह एनईपी रेट के हिसाब से अच्छा है। एनईपी के तहत यह सुरक्षा दी गई है कि कितनी मात्रा में विंड और सोलर एनर्जी की जरूरत है। 

गौरतलब है कि भारत की ऊर्जा नीति देश में स्थानीय रूप से उत्पादित ऊर्जा को बढ़ाने और ऊर्जा की किल्‍लत को कम करने के प्रमुख लक्ष्‍यों पर केन्द्रित है। इसमें खास तौर से परमाणु, सौर और पवन ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के विकास पर अधिक ध्यान दिया गया है। वर्ष 2021-22 में भारत की शुद्ध ऊर्जा आयात निर्भरता 40.9% थी। 

वर्ष 2021 में भारत में प्राथमिक ऊर्जा की खपत 10.4% बढ़ी थी और चीन तथा अमेरिका के बाद 6% वैश्विक हिस्सेदारी के साथ यह तीसरी सबसे बड़ी खपत है। कोयले से कुल प्राथमिक ऊर्जा खपत (452.2 एमटीओई; 45.88%), कच्चा तेल (239.1 एमटीओई; 29.55%), प्राकृतिक गैस (49.9 एमटीओई; 6.17%), परमाणु ऊर्जा (8.8 एमटीओई; 1.09%), जलविद्युत (31.6 एमटीओई; 6.17%); कैलेंडर वर्ष 2018 में 3.91%) और अक्षय ऊर्जा (27.5 एमटीओई; 3.40%) 809.2 एमटीओई (पारंपरिक बायोमास उपयोग को छोड़कर) है। भारत अपनी ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिए काफी हद तक जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भर है। वर्ष 2030 तक, भारत की ऊर्जा आयात पर निर्भरता देश की कुल ऊर्जा खपत के 53% से अधिक होने की उम्मीद है। भारत का लगभग 80% बिजली उत्पादन जीवाश्म ईंधन से होता है।

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