India must end inhumane detention of human rights defender GN Saibaba: UN expert
नई दिल्ली, 22 अगस्त 2023 संयुक्त राष्ट्र की एक स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने भारत के दिल्ली विश्वविद्यालय में पूर्व प्रोफ़ेसर जीएन साईबाबा को लगातार हिरासत में रखे जाने को बेतुका और शर्मनाक कृत्य क़रार देते हुए उन्हें रिहा किए जाने का आग्रह किया है.
मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की स्थिति पर यूएन की विशेष रैपोर्टेयर मैरी लॉलोर ने सोमवार को जारी अपने एक वक्तव्य में कहा कि जीएन साईबाबा, दलित व आदिवासी समुदाय समेत भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा के लिए लम्बे समय से प्रयासरत रहे हैं.
यूएन मानवाधिकार विशेषज्ञ के अनुसार, उन्हें निरन्तर हिरासत में रखा जाना शर्मनाक है और यह एक अहम आवाज़ को चुप कराने के लिए राजसत्ता द्वारा की जा रही कोशिशों को दर्शाता है.
दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी के पूर्व प्रोफ़ेसर जीएन साईबाबा, पाँच वर्ष की आयु से ही रीढ़ की हड्डी सम्बन्धी विकार और पोलियो से पीड़ित हैं और एक व्हीलचेयर का इस्तेमाल करते हैं.
उन्हें 2014 में गिरफ़्तार किया गया था और ग़ैरक़ानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत 2017 में विभिन्न अपराधों के लिए आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी.
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञों ने प्रोफ़ेसर साईबाबा पर अदालती कार्रवाई किए जाने के सम्बन्ध में बार-बार गम्भीर चिन्ता व्यक्त की है. वर्ष 2021 में, मनमाने ढंग से हिरासत में रखे जाने के विषय पर यूएन के एक कार्यसमूह ने अपनी राय व्यक्त करते हुए उनकी हिरासत को मनमाना घोषित किया था.
दो बार संक्षिप्त अवधि के लिए ज़मानत मिलने से इतर, जीएन साईबाबा की गिरफ़्तारी और शुरुआती हिरासत के बाद से उन्हें नागपुर की केन्द्रीय जेल में रखा गया है.
विशेष रैपोर्टेयर मैरी लॉलोर ने कहा कि कारागार में उनकी मौजूदा स्थिति गम्भीर चिन्ता का विषय है, उनके स्वास्थ्य में गिरावट आई है और उनकी जल्द रिहाई की जानी चाहिए.
जीएन साईबाबा के स्वास्थ्य के प्रति चिन्ता
उनके अनुसार, “श्री साईबाबा को उच्च सुरक्षा वाली एक ‘अंडा बैरक’ में ऐसी परिस्थितियों में हिरासत में रखा गया है, जोकि व्हीलचेयर का इस्तेमाल करने वाली उनकी स्थिति के अनुरूप नहीं है.”
“उनकी 8X10 फ़ीट कोठरी में कोई खिड़की नहीं है और एक दीवार लोहे की छड़ों से बनी हुई है, जिससे उन्हें चरम मौसम का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से झुलसा देने वाली गर्मी के दौरान.”
मैरी लॉलोर ने मानवाधिकार कार्यकर्ता के स्वास्थ्य के प्रति भी चिन्ता प्रकट करते हुए कहा कि राजसत्ता का यह दायित्व है कि बन्दियों व हिरासत में रखे गए लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा के दायित्व को निभाया जाए और मनुष्य के रूप में उनकी गरिमा सुनिश्चित की जाए.
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ ने ज़ोर देकर कहा कि जेल प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि विकलांगता के साथ रह रहे बन्दियों के साथ भेदभाव ना हो, और उनके लिए सुगम्यता (accessibility) के साथ-साथ रहने की यथोचित व्यवस्था की जाए.
विशेष रैपोर्टेयर मैरी लॉलोर इस मामले के सिलसिले में भारत सरकार के साथ सम्पर्क में हैं.
<blockquote class="twitter-tweet"><p lang="en" dir="ltr"><a href="https://twitter.com/hashtag/India?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw">#India</a>: persistent detention of human rights defender GN Saibaba is an inhumane and senseless act, says <a href="https://twitter.com/MaryLawlorhrds?ref_src=twsrc%5Etfw">@MaryLawlorhrds</a>, calling for his immediate release. 👉 <a href="https://t.co/safJ2EWab5">https://t.co/safJ2EWab5</a> <a href="https://t.co/h4pHdssscf">pic.twitter.com/h4pHdssscf</a></p>— UN Special Procedures (@UN_SPExperts) <a href="https://twitter.com/UN_SPExperts/status/1693591283548213277?ref_src=twsrc%5Etfw">August 21, 2023</a></blockquote> <script async src="https://platform.twitter.com/widgets.js" charset="utf-8"></script>
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार विशेषज्ञ कौन होते हैं
विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र की विशेष मानवाधिकार प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं.
उनकी नियुक्ति जिनीवा स्थिति यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी ख़ास मानवाधिकार मुद्दे या किसी देश की स्थिति की जाँच करके रिपोर्ट सौंपने के लिये करती है.
ये पद मानद होते हैं और मानवाधिकार विशेषज्ञों को उनके इस कामकाज के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.
(स्रोत: संयुक्त राष्ट्र समाचार)