Advertisment

प्रेमचंद जयंती : आज़ादी के पहले और बाद का भारत समझने के लिए प्रेमचंद और परसाई को पढ़ना ज़रूरी

आजादी के पहले का हिंदुस्तान समझने के लिए प्रेमचंद को पढ़ना जरूरी है। अंग्रेजों और उनसे पहले मुगलों ने भी भारत को समझने के लिए तत्कालीन साहित्य का अध्ययन किया था। प्रेमचंद ने कहा था कि "हमें हुस्न का मेयार बदलना है"।

author-image
hastakshep
04 Aug 2023
आज़ादी के पहले का भारत समझने के लिए प्रेमचंद तो आज़ादी के बाद का भारत समझने के लिए परसाई को पढ़ना ज़रूरी

प्रेमचंद जयंती : आज़ादी के पहले और बाद का भारत समझने के लिए प्रेमचंद और परसाई को पढ़ना ज़रूरी

आज़ादी के पहले का भारत समझने के लिए प्रेमचंद तो आज़ादी के बाद का भारत समझने के लिए परसाई को पढ़ना ज़रूरी

Advertisment

आज़ादी के पहले का भारत कैसे समझें?

इंदौर, 04 जुलाई 2023. आजादी के पहले का हिंदुस्तान समझने के लिए प्रेमचंद को पढ़ना जरूरी है। अंग्रेजों और उनसे पहले मुगलों ने भी भारत को समझने के लिए तत्कालीन साहित्य का अध्ययन किया था। प्रेमचंद ने कहा था कि "हमें हुस्न का मेयार बदलना है"।

ये विचार प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिव विनीत तिवारी ने व्यक्त किए। वे प्रलेसं इंदौर इकाई द्वारा प्रेमचंद जयंती एवं हरिशंकर परसाई जन्म शताब्दी स्मरण आयोजन में बोल रहे थे। 

Advertisment

उन्होंने कहा कि प्रेमचंद की प्रारंभिक कहानियां आदर्शवाद से प्रेरित थी। वे आर्य समाज, गांधीवाद से होते हुए रूसी क्रांति के मूल्यों तक पहुंचे थे। उनका अधूरा उपन्यास "मंगलसूत्र" के पात्र बोलशेविज्म से प्रभावित थे। गांधीजी के असर के दौरान ही उनकी कहानियां हृदय परिवर्तन में भरोसा करती थी। जलियांवाला बाग कांड का प्रेमचंद पर जबरदस्त असर हुआ। सामाजिक परिवर्तन का यथार्थ उनकी कहानियों में इंगित होता है। प्रेमचंद सौंदर्य की परिभाषा और कसौटी को बदलना चाहते थे। वे पसीने और श्रम में सौंदर्य देखते थे, शोषण के खिलाफ संघर्ष में सौंदर्य भाव देखते थे। इसीलिए वे हुस्न का मेयार बदलने की बात करते थे।

व्यंग्य क्या है?

विनीत तिवारी ने कहा कि व्यंग्य एक भाव है वह साहित्य की किसी भी विधा में हो सकता है। हरिशंकर परसाई और शरद जोशी के लेखन से समाचार पत्रों में व्यंग्य विधा के स्तंभ प्रारंभ हुए। व्यंग्य कठिन मूल्य है, दो धारी तलवार हैं।

Advertisment

प्रलेसं इकाई उज्जैन से आए शशि भूषण ने कहा कि व्यंग्य सदैव सबल और जिम्मेदारों पर ही हो सकता है। व्यंग्य लिखना साहस का काम है, जो आज के समय में खतरनाक हो गया है। परसाई के लेखन में जनपक्षधरता थी। वर्तमान में धर्म, कला, विज्ञान सभी राजनीति के गुलाम हो गए हैं। परसाई हमारे समय के जरूरी लेखक हैं। जब देश में गुलामी का दौर था तब साहित्य, विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार मिले। आजाद भारत में आज का युवा धार्मिक यात्राओं में ही लीन हैं। प्रेमचंद को पहले ब्राह्मण विरोधी प्रचारित किया गया अब उन्हें दलित विरोधी बताया जा रहा है। 

अर्थशास्त्री जया मेहता के अनुसार साहित्य में अतीत के स्मरण के साथ नए लेखन की भी जरूरत है।

रंजना पाठक ने कहा कि प्रेमचंदकालीन जमींदार, सूदखोर, शोषित किसान आज भी मौजूद हैं। कुसंस्कारों के चीथड़ो में लिपटे देश को महान बताया जा रहा है। रामआसरे पांडे ने पंच परमेश्वर कहानी का उल्लेख करते हुए कहा कि कहानी में धर्म अप्रासंगिक हो गया। पात्र मानवीय कमजोरियों के साथ मौजूद हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या लेखकों ने अपनी क्षमता इतनी विकसित कर ली है कि वे मशाल बन सके ? 

Advertisment

अभय नेमा के अनुसार परसाई का साहित्य समाज को समझने में नई दृष्टि देता है। वर्तमान में व्यंग्य के नाम पर चरण वंदना की जा रही है। आज का व्यंग्य कमजोर के नहीं ताकतवर के पक्ष में है।

पत्रकार रवि शंकर तिवारी ने कहा कि प्रेमचंदकालीन पात्र बदलते स्वरूप में समाज में आज भी मौजूद हैं। पत्रकार के रूप में प्रेमचंद ने अपने समय के मुद्दों को उठाया था। फ़ासिज़्म के खतरे को उन्होंने उस काल में ही पहचान लिया था। वे भाषा को साध्य नहीं साधन मानते थे। 

विनम्र मिश्र ने कहा कि प्रेमचंद ने केवल मनोरंजन के लिए नहीं लिखा। दबे, कुचले ग्रामीणों की पीड़ा उनकी कहानियों में आई है। कहानी "पूस की रात" और "कफन" बताती है कि ठंड क्या होती है। प्रेमचंद साहित्य सजीव है। वर्तमान में देश में फासीवादी ताकतें बांटने का काम कर रही है।

Advertisment

हरिशंकर परसाई साहित्य पर दीपाली आर्य ने कहा कि उन्होंने संजीदा विषयों पर सरल भाषा में कटाक्ष किए हैं। वे निडरता से लिखते थे। दिशाहीन भीड़ के बारे में परसाई जी की भविष्यवाणी आज सही साबित हो रही है। परसाई जी का रचनाएं प्रासंगिक है। 

क्या व्यंग्य आज भी सार्थक है?

अथर्व शिंत्रे ने कहा कि व्यंग्य समाज की सच्चाइयों को प्रदर्शित करने की कला है। व्यंग्य को अभिव्यक्ति के हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। जब तक समाज में विसंगतियां रहेगी व्यंग्य की सार्थकता भी बनी रहेगी।

Advertisment

विषय और आयोजन के बारे में हरनाम सिंह ने बताया कि भाषा और संस्कृति के संकट के वर्तमान दौर में हम अपने पुरखों से ही सीख हासिल करते हैं। वर्तमान में अभिव्यक्ति के सभी संसाधनों पर कारपोरेट और सांप्रदायिक ताकतों का कब्जा है। भावनाएं आहत होने के नाम पर लोगों के मुंह बंद किए जा रहे हैं। प्रेमचंद के 134 में जन्म दिवस एवं परसाई जन्म शताब्दी अंतर्गत यह आयोजन पठनीयता को बचाए रखने का छोटा सा प्रयास है।

अध्यक्षीय उद्बोधन इकाई अध्यक्ष डॉ जाकिर हुसैन ने दिया। संचालन विवेक मेहता ने किया। आभार माना अभय नेमा ने। आयोजन में प्रलेसं देवास इकाई के पदाधिकारी भी सम्मिलित हुए।

- हरनाम सिंह

Advertisment
सदस्यता लें