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जेएनयू में क्यों घट रही है महिला छात्रों की संख्या

Jawaharlal Nehru University has witnessed a steady decline in female students in recent years. हाल के वर्षों में राष्ट्रीय प्रवृत्ति के विपरीत जेएनयू में महिला छात्रों की संख्या में लगातार गिरावट देखी जा रही है।

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hastakshep
23 Sep 2023
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जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय

जेएनयू में क्यों घट रही है महिला छात्रों की संख्या

 जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में लगातार घट रही महिला छात्रों की संख्या

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भारतीय जनता पार्टी महिला आरक्षण को लेकर काफी उत्साहित लग रही है, लेकिन देश के प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के आंकड़े बताते हैं कि हाल के वर्षों में राष्ट्रीय प्रवृत्ति के विपरीत महिला छात्रों की संख्या में लगातार गिरावट देखी जा रही है।

दरअसल कोलकाता के अंग्रेज़ी अखबार द टेलीग्राफ की एक खबर विस्तार से बताती है कि किस तरह जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में हाल के वर्षों में महिला छात्रों के अनुपात में लगातार गिरावट देखी जा रही है।

द टेलीग्राफ में बसंत कुमार मोहंती (Basant Kumar Mohanty) की “Jawaharlal Nehru University witnesses steady decline in female students in recent years” शीर्षक से रिपोर्ट बताती है कि जेएनयू के शोध छात्रों का अनुपात भी 2016-17 में 62.2 प्रतिशत से गिरकर 2021-22 में 46 प्रतिशत हो गया है, जो बताता है कि विश्वविद्यालय उन्नत अनुसंधान के अपने मुख्य क्षेत्र से दूर जा रहा है।

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दोनों रुझान विश्वविद्यालय द्वारा 2017 में शोध छात्रों के लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नवीनतम प्रवेश नियमों को अपनाने के तुरंत बाद शुरू हुए, जिसके कारण इसने अपनी वंचित अंक नीति जिसमें- प्रवेश के दौरान पिछड़े जिलों के छात्रों और महिला छात्रों को अतिरिक्त अंक देना शामिल था, को रद्द कर दिया।

इस नीति से न केवल महिलाओं के नामांकन पर असर पड़ा, बल्कि नए नियमों से शोध छात्रों की संख्या भी सीमित हो गई, इस प्रकार रिसर्च सीट्स में कटौती हुई।

रिपोर्ट के मुताबिक स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में प्रवेश में वंचित अंक नीति जारी है, जिससे पता चलता है कि अकेले रिसर्च कोर्सेस के लिए महिलाओं के नामांकन में 2016-17 और 2021-22 के बीच 51.1 प्रतिशत से 44.4 प्रतिशत की समग्र गिरावट की तुलना में तेज गिरावट होने की आशंका है।

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उच्च शिक्षा पर सरकार के अखिल भारतीय सर्वेक्षण के अनुसार, उच्च शिक्षा में कुल नामांकन 2014-15 में 3.42 करोड़ से बढ़कर 2020-21 में 4.14 करोड़ हो गया, जिसमें महिला नामांकन का प्रतिशत 45 से बढ़कर 49 हो गया।

जेएनयू टीचर्स एसोसिएशन ने कल शुक्रवार को एक संवाददाता सम्मेलन आयोजित किया जहां उन्होंने विश्वविद्यालय की वार्षिक रिपोर्ट से जेएनयू से संबंधित आंकड़ों का हवाला दिया।

शिक्षकों ने आरोप लगाया कि बार-बार नीतिगत बदलावों और "उत्पीड़न की नीति" के कारण विश्वविद्यालय की स्थिति खराब है, जो 2016 में एम. जगदीश कुमार के कुलपति बनने के बाद शुरू हुई और वर्तमान वीसी शांतिश्री डी पंडित द्वारा इसे जारी रखा जा रहा है।

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नई नीति से कैसे प्रभावित हो रहे गरीब और पिछड़े क्षेत्रों का छात्र?

2018 तक, ऑब्जेक्टिव टाइप, सब्जेक्टिव टाइप और मल्टीपल-च्वाइल क्वोश्चन्स (MCQ) के मिश्रण के साथ पेन-एंड-पेपर प्रारूप में जेएनयू पीएचडी एंट्रेस टेस्ट आयोजित करता था। 2019 से, जेएनयू ने प्रवेश परीक्षाओं को राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी (एनटीए) को आउटसोर्स कर दिया है, जो अब केवल एमसीक्यू के साथ कंप्यूटर-आधारित परीक्षण आयोजित करती है।

कई शिक्षकों का मानना है कि यह गरीब परिवारों और पिछड़े क्षेत्रों के छात्रों को कंप्यूटर के साथ उनकी अनुभवहीनता और कोचिंग का खर्च उठाने में असमर्थता के कारण विकलांग बनाता है, जिसे अक्सर एमसीक्यू परीक्षणों में सफलता की कुंजी के रूप में देखा जाता है। 

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जेएनयू शिक्षक संघ की पूर्व सचिव मौसमी बसु ने कहा कि जेएनयू शोध पाठ्यक्रमों के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित करता था और उन्हें जुलाई से पहले पूरा करता था। उन्होंने कहा, एनटीए के कार्यभार संभालने के बाद अकादमिक कैलेंडर गड़बड़ा गया है।

सुश्री बसु ने कहा कि प्रवेश परीक्षा केंद्रों की संख्या भी कम कर दी गई है। उन्होंने सुझाव दिया है कि कई महिला उम्मीदवारों को दूर के केंद्रों की यात्रा करने की आवश्यकता महसूस हो सकती है।

 

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