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जलवायु परिवर्तन व अल नीना दोनों की वजह से बदलेगा मॉनसून का मिज़ाज

जलवायु परिवर्तन व अल नीना दोनों की वजह से मानसून में बारिश की तर्ज में विविधताएं मिलेंगी। बेमौसम बारिश और हीट वेव का जलवायु परिवर्तन से क्या संबंध

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hastakshep
13 Apr 2023
Monsoon

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जलवायु परिवर्तन व अल नीना दोनों की वजह से मॉनसून में बारिश की तर्ज में विविधताएं मिलेंगी

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बेमौसम बारिश और हीट वेव का जलवायु परिवर्तन से क्या संबंध

नई दिल्ली, 13 अप्रैल 2023. भले ही भारतीय मौसम विज्ञान विभाग कहता रहे कि ताप लहर (हीट वेव) और बेमौसम बारिश का जलवायु परिवर्तन से कोई लेना-देना नहीं है मगर जलवायु परिवर्तन एवं अल नीना दोनों के मिले जुले प्रभाव की वजह से इस वर्ष अपने देश में मानसून का मिज़ाज एकदम सामान्य रहने की कोई गुंजाइश नहीं है। हालाँकि यह यह राहत की बात है कि देश में इस साल सामान्‍य (96 प्रतिशत) मानसूनी बारिश होने का अनुमान है।

कैसा होगा इस वर्ष मानसूनी बारिश का पैटर्न

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भले ही बारिश 90% से ज्यादा हो मगर इसका पैटर्न क्या रहेगा, यह कहा नहीं जा सकता। इसके चलते बारिश की मात्रा में होने वाला उतार-चढ़ाव संभावित है।

इस बारे में आईपीसीसी लेखक और शोध निदेशक, भारती इंस्‍टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी, इंडियन स्‍कूल ऑफ बिजनेस - डॉक्‍टर अंजल प्रकाश का कहना है कि - जलवायु परिवर्तन की वजह से मानसून के मौसम के दौरान बारिश की तर्ज में अनेक विविधताएं देखने को मिलेंगी। यह ऐसा कारण है जिससे मौसम को लेकर अनिश्चितताएं बढ़ेंगी। इस साल मानसून सामान्य रहने का अनुमान भले ही हो लेकिन बारिश की मात्रा में होने वाला उतार-चढ़ाव किसानों के लिए विनाशकारी नतीजे ला सकता है। हो सकता है कि किसानों को जब पानी की जरूरत होगी तब उन्हें नहीं मिलेगा और जब आवश्यकता नहीं होगी तो हो सकता है कि बेतहाशा बारिश हो जाए। हाल में तेलंगाना में हुई ओलावृष्टि,पंजाब में समय से पहले ताप लहर चलना और उसके बाद बेमौसम बरसात इसकी ताजा मिसालें हैं। ऐसी घटनाओं से जाहिर होता है कि भले ही औसत वर्षा की मात्रा समान रहे मगर उसकी विविधता को समझने के लिये कुल बारिश के पूर्वानुमानों से सही सूचना मिलती हो, ऐसा बिल्कुल नहीं है। हमें इस बात का संज्ञान लेना होगा और जिला तथा उप जिला स्‍तर पर बारिश का पूर्वानुमान लगाना होगा ताकि यह पता लगाया जा सके कि स्‍थानीय स्‍तर पर मॉनसून का मिजाज कैसा रहेगा।

मानसून की विविधता और जलवायु परिवर्तन (Monsoon Variation and Climate Change) 

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डॉक्‍टर अंजल प्रकाश ने आगे कहा कि मानसून की विविधता और जलवायु परिवर्तन के संबंध में विज्ञान ने इसे बहुत साफ तौर पर साबित किया है। खासकर आईपीसीसी की एआर6 रिपोर्ट से यह साफ पता चलता है कि जलवायु परिवर्तन ठीक हमारे बीच मौजूद है। इसलिये भारतीय मौसम विज्ञान विभाग भले ही कहता रहे कि ताप लहर (हीट वेव) और बेमौसम बारिश का

जलवायु परिवर्तन से कोई लेना-देना नहीं है, मगर मैं उनकी बात से आदरपूर्वक असहमति जाहिर करता हूं। हम साफ तौर पर देख रहे हैं कि किसान किस तरह मानसून की बदलती तर्ज, जल्‍द प्रभावी होने वाली ताप लहरों और बिन मौसम बारिश से बेहाल है। यह वैश्विक तापमान में वृद्धि के कारण उत्‍पन्‍न जलवायु परिवर्तन की निशानियां हैं और विज्ञान इसे बार-बार साबित कर चुका है। इसलिये, मैं नहीं कह सकता कि वे जो कह रहे हैं वह सही है क्‍योंकि हम बदलाव को रोजाना अपनी आंखों से देख रहे हैं। विज्ञान की जरा सी भी समझ रखने वाला कोई भी व्‍यक्ति यही कहेगा कि यह जलवायु परिवर्तन की वजह से हुई घटना नहीं है।

मानसून 2023 पर अल नीनो का प्रभाव (Effect of El Nino on Monsoon 2023) 

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श्री प्रकाश ने कहा कि अल नीनो की श्रेणी में रखे गये 40 प्रतिशत वर्षों में मानसून या तो सामान्‍य रहा है, या फिर सामान्‍य से ज्‍यादा रहा है। यह डेटा सही हो सकता है लेकिन बड़ी सच्‍चाई यह हैकि 60 प्रतिशत मामलों में अल नीनो का मानसून पर असर पड़ा है। बड़े रुझानों को समझने के बजाय हम छोटे मूल्यवर्ग को ही क्यों गम्‍भीरता से लेते हैं। बड़े रुझानों से जाहिर होता है कि अल नीनो का मानसूनी वर्षा की तर्ज पर प्रभाव पड़ता है। यह एक नयी सामान्‍य बात है। हमें इसे टालने के बजाय इसका सामना करना चाहिये। ऐसा करके ही हम अनुकूलन और न्‍यूनीकरण के उपायों की दिशा में कदम उठा सकेंगे। ये कदम खासकर इस वक्‍त बेहद अहम हैं, जब हम अप्रत्‍याशित घटनाओं के गवाह बन रहे हैं। मैं कहूंगा कि दरअसल उस वक्‍त तक यह नयी मिसाल होगी और वह भी 6-7 महीने के छोटे से अंतराल में। नये रिकार्ड टूट रहे हैं। हमें इस बात को मानना ही पड़ेगा और देखना होगा कि हम इस बारे में क्‍या कर सकते हैं। मैं तो कहूंगा कि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग इससे इनकार करने के बजाय इस तथ्‍य को स्‍वीकार करे कि

बारिश होने के ढंग में असमानता है जिससे किसानों तथा जलवायु के प्रति संवेदनशील अन्‍य क्षेत्रों पर बुरा असर पड़ा है और आगे भी पड़ेगा। इसका मतलब यह है कि हमें कुछ ठोस काम करने की जरूरत है। यही वह जगह है जहां समाधान खोजने और समन्वित कार्रवाई के लिहाज से जवाब छुपा हुआ है ताकि अंतिम पायदान पर खड़ा व्यक्ति भी पूरी तरह समस्या से प्रभावित न हो।

मानसून 2023 पर क्या होगा अल नीनो का असर?

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मैरीलैंड विश्वविद्यालय में एमेरिटस प्रोफेसर और IITB में विजिटिंग प्रोफेसर, अर्थ सिस्टम साइंटिस्ट रघु मुर्तुगुड्डे (Raghu Murtugudde - Emeritus Professor - University of Maryland &  Visiting Professor at IITB, Earth System Scientist) के अनुसार - जहां अल नीनो को मानसून में कमी की वजह के तौर पर देखा जाता है, वहीं यह बात भी अपनी जगह दुरूस्‍त है कि अल नीनो के वर्षों में सिर्फ 60 प्रतिशत मामलों में ही कम बारिश देखी गयी है। इसी यूं भी कहा जा सकता है कि अल नीनो से प्रभावित वर्षों में 40 प्रतिशत सम्‍भावना मानसून के सामान्‍य रहने की होती है। बहरहाल, पिछले कई मौकों के विश्‍लेषण से जाहिर हुआ है कि ला नीना के ठीक बाद पड़ने वाला अल नीनो मानसूनी बारिश में गिरावट के सबसे बदतर हालात पैदा करता है। पिछले तीन साल ला नीना के प्रभाव वाले रहे हैं और इस वर्ष हम अल नीनो की तरफ बढ़ रहे हैं। अगर पूर्वानुमान यह कहते हैं कि मानसून अब भी सामान्‍य ही रहेगा, तो हमें रुककर यह देखना होगा कि आखिर कौन से प्रतिपूरक कारक हैं जो अपनी भूमिका निभा सकते हैं। इस लिहाज से देखें तो ला नीना के रिकॉर्ड वर्षों में यूरेशिया में हुए हिमपात से बर्फ का जमा होना सबसे बड़ा कारक हो सकता है। हर किसी को यह भी ध्‍यान रखना चाहिये कि मौसमी बारिश की कुल मात्रा का बहुत थोड़ा मतलब ही रह गया है। खासकर इस बात को ध्‍यान में रखते हुए कि अब किसी मॉनसून वर्ष में कहीं पर अत्‍यधिक बारिश, तो कहीं अत्‍यधिक सूखे के हालात बनते हैं। बाढ़, सूखे, फसलों को नुकसान, स्‍वास्‍थ्‍य पर असर और ऐसे ही अन्‍य परिणामों को लघु (1-3 दिन), मध्‍यम (3-10 दिन) और विस्‍तारित (2-4 हफ्ते) अवधि वाले पूर्वानुमानों से जहां तक मुमकिन हो, प्रभावशाली तरीके से निपटने की जरूरत है। हर राज्‍य की नगर पालिकाओं और पंचायतों को भारतीय मौसम विभाग की चेतावनियों पर ध्‍यान देना होगा। हालांकि पिछले तीन वर्षों के दौरान ला नीना के प्रभाव के बावजूद यूरेशियाई वर्षाक्रम सामान्‍य से कुछ नीचे रहा है जिससे सशक्‍त मानसून के हालात बन सकते हैं और अल नीनो निष्‍प्रभावी हो सकता है। यह स्पष्ट नहीं है कि आईएमडी के पूर्वानुमान में यही हो रहा है।

क्‍या सकारात्‍मक आईओडी मानसून 2023 को अल नीनो के असर से बचा सकता है ?

प्रो रघु मुर्तुगुड्डे के अनुसार इंडियन ओशन डिपोल (आईओडी) के लिये पूर्वानुमान सम्‍बन्‍धी क्षमताएं कमतर रहती हैं। उससे भी ज्‍यादा महत्‍वपूर्ण यह है कि मानसून पर आईओडी का प्रभाव (Effect of IOD on Monsoon) बहुत मजबूत नहीं होता। बल्कि इस बात की भी सम्‍भावना रहती है कि मानसून खुद आईओडी पर असर डाल दे। अगर सामान्‍य मॉनसून के बाद आईओडी वजूद में आता है तो फिर यही कहानी शुरू हो जाएगी कि दुनिया में पहले अंडा आया या मुर्गी। लेकिन यह ध्यान में रखते हुए कि मानसून ऊष्‍मा का एक बेहद विशाल स्रोत है और आईओडी ज्यादातर मानसून के लगभग खत्‍म होने के बाद होता है, हमें सूखे और बारिश की अवधियों में चरम मौसम पर ध्यान देना चाहिए।

वह कहते हैं कि इस तरह के देर के मौसम की विसंगतियाँ उष्ण कटिबंध के बाहर से भी आती हैं। उदाहरण के तौर पर आर्कटिक वार्मिंग और आर्कटिक समुद्री बर्फ विसंगतियों द्वारा संचालित ग्रहीय तरंगों के कारण। ऐसे में यह समझना महत्वपूर्ण है कि निकट-सामान्य मानसून पूर्वानुमानों को कौन से कारक चला रहे हैं। हमेशा की तरह, भोजन, पानी, ऊर्जा, स्वास्थ्य, परिवहन और अन्य क्षेत्रों के मामले में सबसे अच्छे की उम्मीद करना और सबसे बुरे के लिए तैयार रहना बहुत अहम है।

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