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पक्षियों की समस्या पर निबंध | पक्षी घोंसला क्यों बनाते हैं
अपने बच्चों के उचित पालन पोषण के लिए पक्षी घोंसले बनाते हैं। कुछ पक्षियों के घोंसले (birds nest in Hindi) तो बहुत ही खूबसूरत व कलात्मक होते हैं। पक्षियों के चमत्कारिक संसार में एक से बढ़ कर एक अचरज भरी बातें हैं। ये रंगबिरंगे पक्षी अपने अंडों और चूजों के उचित पालन पोषण और संरक्षण के लिए खूबसूरत और कलात्मक घोंसले बनाते हैं, जो इन के लिए सुरक्षित आश्रय स्थल होते हैं। ये घोंसले जहां सर्प, अजगर और रेंगने वाले अन्य शिकारी जीवों से इन की रक्षा करते हैं, वहीं इन में पक्षी निश्चिंत हो कर अपने अंडे दे सकते हैं तथा उन अंडों को सेने की प्रक्रिया पूरी कर सकते हैं।
अपना घोंसला बनाने की जगह का चुनाव पक्षी कैसे करते हैं?
प्रत्येक जाति का पक्षी अपनी आवश्यकता और सुविधा के अनुसार अपना घोंसला बनाने की जगह का चुनाव करता है। पिंगल (एक तरह का बंदर), कृकल और स्वर्णचूड़ (मुरगा) जैसे वनवासी पक्षी मैदानों में नहीं मिल सकते। इसी तरह सारंग, चपलाखु और धानीमूष जैसे मैदानी पशुपक्षी कभी जंगल में नहीं मिलेंगे।
पक्षियों के कितने प्रकार के घोंसले होते हैं (how many types of bird nests)
पक्षियों के घोंसलों की कई किस्में देखने को मिलती हैं। ऊबड़खाबड़ घोंसले, कप के आकार के घोंसले, पेड़ पर लटके हुए घोंसले, पेड़ की घनी पत्तियों व तनों, पुराने भवनों, खंडहरों तथा नदी के किनारे रेत में बने घोंसले। कुछ पक्षी अंडे देने से कुछ समय पहले ही घोंसले बनाते हैं तथा वहीं रहते हैं। उस के बाद वे दूसरी जगह उड़ जाते हैं।
जो पक्षी वर्षा के पहले घोंसले बनाते हैं वे अकसर घास वाले, सपाट मैदान का चुनाव करते हैं। वर्षा के कारण जब जमीन पर कीड़े-मकौड़े, इल्ली आदि पैदा हो जाते हैं, कुछ पक्षी तब अंडे देते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि उन के बच्चों के लिए आसानी से भोजन उपलब्ध हो सके। गिद्ध, चील, बाज आदि पक्षी (जो अपने शिकार पर अचानक आक्रमण करते हैं) ठंड के मौसम में अंडे देते हैं तथा वसंत ऋतु तक उन के बच्चे उड़ने लायक हो जाते हैं।
पक्षी अपना घोंसला कैसे बनाते हैं? (How do birds make their nests?)
पक्षी अपने घोंसले मिलजुल कर बनाते हैं यानी नर और मादा दोनों मिल कर घोंसला तैयार करते हैं। कभी कभी नर या मादा अकेले भी यह कार्य कर लेते हैं। ऑस्ट्रेलिया के 'मेले फूनाउनल' जाति के पक्षी में नर घोंसला बनाता है तथा मादा अपने अंडे देने के हिसाब से उसे व्यवस्थित करती है।
भारत में कुछ नर पक्षी एक ही ऋतु में 4-4 घोंसले तैयार करते हैं। मादा उन का निरीक्षण कर के, उन में से कोई एक पसंद करती है।
आमतौर पर पक्षी अपने अंडों को अपने ही घोंसले में सेते हैं, लेकिन कोयल अपने अंडों को सेने के लिए कौए के घोंसले में रख देती है।
अफ्रीका के कुछ पक्षियों को सर्द हवा में रहना रुचिकर लगता है। वे अपने अंडे तालाब में उगने वाले जंगली कमल के पत्तों पर रखते हैं। जब असुरक्षा या खतरे का एहसास होता है, तो वे अपने अंडों को सुरक्षित जगह पर ले जाते हैं। उत्तरी ध्रुव के पेंगुइन (north pole penguins) अपने पैरों की उंगलियों के बीच में अंडे सेते हैं, क्योंकि वहां का तापमान शून्य से 40 डिगरी सेंटीग्रेड नीचे रहता है। इस कारण वहां घासफूस, चारा, पत्ते आदि नहीं होते।
जानिए कौन सा पक्षी अपने अंडे भूमि पर देता है?
जमीन पर अंडे देने वाले पक्षी
जंगली मुरगा, चील, तीतर आदि अपने अंडे जमीन के उथले भाग में रखते हैं, ताकि दुश्मन उन्हें आसानी से पहचान न सके, क्योंकि उन के अंडों का रंग मटमैला होता है। उन पर काले या भूरे रंग के धब्बे भी होते हैं। नीलकंठ, टरकी आदि पक्षी अकसर अंडों को सेने के लिए उन्हें पोली जमीन में गाड़ कर रखते हैं, ताकि जमीन की गरमी से अंडों में बच्चे तैयार हो जाएं।
ऑस्ट्रेलिया का 'मूलफाउल' जमीन से 2-3 फुट की ऊंचाई तक मिट्टी का टीला तैयार करता है। उसे अंदर से नरम गद्दीनुमा बनाने के लिए नरम तिनकों, पत्तों आदि का इस्तेमाल करता है। फिर उस टीले का मुंह मिट्टी से बंद कर देता है।
जब मुरगी अंडे देती है तो मुरगा उन अंडों को पहले से तैयार किए गए टीले में रखता है। उस के बाद उस टीले का मुंह मिट्टी, पंख आदि से ढक देता है। जमीन की गरमी से बच्चे तैयार हो जाते हैं तथा अंडों से चूजे चोंच मार कर ठीक समय पर बाहर निकल आते हैं।
ऑस्ट्रेलिया में जमीन के ऊपर 'लाफींगगल' के टीलेनुमा घरोंदे, सामूहिक रूप से पाए जाते हैं। अन्य पक्षी तथा 'डारटर पेलीकन' पेड़ों की मजबूत डालियों पर तिनके रख कर अपने घोंसले बनाते हैं। इसी प्रकार अन्य पक्षी जैसे कौए, चील, सारस, बगुला भी घोंसले बनाते हैं। पेरेडाइस फ्लाई केचर नामक पक्षी कप के आकार के घोंसले 15-20 फुट की ऊंचाई पर तैयार करते हैं। ये घोंसले देखने में बड़े मनोहारी लगते हैं।
बया का घोंसला
'बया' चिड़िया पेड़ पर लटकने वाले कप या शंख के आकार के घोंसले तैयार करती है। उन्हें बनाने में वह केले और नारियल के पत्तों का उपयोग करती है। इस प्रकार के घोंसले नदी व तालाब के किनारे के वृक्षों पर बनाए जाते हैं तथा अंदर से पंखों, कपास, पत्तों आदि का नरम आवरण दिया जाता है।
'आर्कटिक आयडर डक' नामक पक्षी पत्तों, तिनकों इत्यादि को घोंसले के अंदर चिपकाने के लिए अपनी विष्ठा का प्रयोग करता है।
'बी ईटर' और 'किंगफिशर' जाति के पक्षी अपनी चोंच से 1 से 3 फुट की गहराई तक नदी के किनारों पहाड़ों में गड्ढा खोद कर घोंसला बनाते हैं। यह गड्ढा अंदर से बड़ा और मुंह से संकरा होता है।
'कठफोड़वा' नाम का पक्षी जनवरी से मई की अवधि में पेड़ के पोले तने में घुस कर उस को अंदर से चोंच से चौड़ा करता है। नीचे की तह को नरम बनाने के लिए नदी की काई, कपास आदि का उपयोग करता है। अंडे रखने के बाद छेद का मुंह एकडेढ़ इंच खुला रखता है।
'इंडियन ग्रे हार्नबिल' नामक पक्षी पुराने वृक्षों के तनों में अंडे रखते हैं तथा जब अंडे परिपक्व हो जाते हैं, तब मादा तने के अंदर बैठ जाती है व नर उस के मुंह या छेद को मिट्टी, पत्तों, तिनकों तथा विष्ठा से ढक देता है। हवा मिलने के लिए छेद का व्यास इंच रखता है। बच्चे तैयार होने तक मादा के लिए दानेपानी की व्यवस्था नर पक्षी करता है।
अंडों से बच्चे निकलने पर नरमादा दोनों सामूहिक रूप से बच्चों को दानापानी खिलाते हैं। ऑस्ट्रेलिया का ही 'झलेक स्वान’ तथा कुछ अन्य विशिष्ट पक्षी पानी पर तैरते घोंसले बनाते हैं। फिर उन्हें इस प्रकार से बुनते हैं कि पानी की किसी भी अवस्था में घोंसले सदा तैरते रहते हैं। वनों की बड़े पैमाने पर हो रही कटाई से पक्षियों के आवास की समस्या बड़ी विकट हो गई है। परिणामस्वरूप ये पक्षी मजबूरन अपने घोंसले पुराने किलों, ऊंचे भवनों और खंडहरों आदि में बनाने लगे हैं। इस में कोई संदेह नहीं कि पक्षियों के घोंसले बड़े ही कलात्मक होते हैं, जो हमारे ड्राइंगरूम की शोभा भी बढ़ाते हैं। इसलिए पक्षियों के आश्रय स्थलों की तरफ विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
- डा. विनोद गुप्ता
The problem of habitat of birds is becoming serious