Proposed law on compulsory hijab in Iran, akin to 'gender apartheid' - United Nations
ईरान में नए कानून के मसौदे में हिजाब ना पहनने वाली महिलाओं को कड़ी सज़ा का प्रावधान
नई दिल्ली, 02 सितंबर 2023. संयुक्त राष्ट्र के स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों (UN independent human rights experts) ने ईरान में एक नए क़ानून के मसौदे पर चिन्ता व्यक्त की है, जिसमें सार्वजनिक स्थलों पर हिजाब ना पहनने वाली महिलाओं व लड़कियों के लिए नई सज़ा का प्रावधान किया गया है।
ईरान में नए कानून के मसौदे पर यूएन विशेषज्ञों ने जताया क्षोभ...
शुक्रवार को जारी अपने एक वक्तव्य में यूएन विशेषज्ञों ने क्षोभ प्रकट किया कि क़ानून का यह मसौदा ‘लैंगिक रंगभेद’ (gender apartheid) का एक रूप प्रतीत होता है, जिसमें महिलाओं व लड़कियों के साथ व्यवस्थागत भेदभाव और उनका पूर्ण रूप से दमन किया जाएगा।
यूएन विशेषज्ञों ने कहा कि, “क़ानून के मसौदे में आज्ञापालन ना होने पर महिलाओं व लड़कियों पर गम्भीर दंड थोपे गए हैं, जोकि इसे हिंसात्मक तरीक़े से लागू किए जाने की दिशा में बढ़ सकता है।”
विशेष रैपोर्टेयर के समूह ने कहा कि इस मसौदे से बुनियादी अधिकारों, जैसेकि सांस्कृतिक जीवन में हिस्सा लेने, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शान्तिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार, और सामाजिक, शैक्षिक व स्वास्थ्य सेवाओं की सुलभता के अधिकार का भी हनन होता है।
महसा अमीनी की मौत के बाद सुलग उठा था ईरान
स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने ध्यान दिलाया कि पिछले वर्ष जिना महसा अमीनी की मौत के बाद कई महीनों तक राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन हुए थे।
इसके बाद, ईरानी प्रसासन ने महिलाओं व लड़कियों पर लक्षित, विभिन्न स्तरों वाली दंड व्यवस्था को प्रस्तुत किया है।
क्या था महसा अमीनी की मौत का मामला
22 वर्षीया महसा अमीनी को ईरान की तथाकथित नैतिकता पुलिस ने हिजाब क़ानून का पालन (follow hijab law) ना करने के आरोप में पिछले वर्ष 13 सितम्बर को गिरफ़्तार किया था और उन्हें हिरासत में लेते समय बुरी तरह मारा-पीटा गया था, जिसका ईरानी अधिकारियों ने खंडन किया।
ईरानी अधिकारियों का दावा है कि महसा अमीनी की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई।
महसा अमीनी वोज़ारा बन्दी केन्द्र में कथित तौर पर बेहोश हो गई थीं और शुक्रवार, 16 सितम्बर को अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई।
सांस्कृतिक लड़ाई के बहाने महिलाओं के अधिकारों पर पाबन्दियाँ
यूएन विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि प्रस्तावित दंड प्रावधानों का विषमतापूर्ण ढंग से आर्थिक रूप से हाशिएकरण का शिकार महिलाओं पर असर होगा। उनका मानना है कि ईरान सरकार, संस्कृति के इस्तेमाल के ज़रिये महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों पर पाबन्दियाँ थोपती है, जो कि अनुचित है।
विशेष रैपोर्टेयर ने ध्यान दिलाया कि सर्वजन की भागीदारी के साथ ही संस्कृति आकार लेती है।
उन्होंने कहा कि क़ानून के मसौदे में नग्नता, शुचिता के अभाव, हिजाब ना पहनने, ख़राब पोशाक पहनने और सार्वजनिक स्थलों पर अनुपयुक्त व्यवहार से शान्ति भंग होने जैसी शब्दावलियों का इस्तमाल किया गया है।
इसके ज़रिये सार्वजनिक संस्थाओं को अधिकार दिए गए हैं कि आज्ञापालन ना करने वाली महिलाओं व लड़कियों को अति-आवश्यक सेवाओं व अवसरों को नकार दिया जाए।
विशेषज्ञों के अनुसार जिन संगठनों के निदेशक व प्रबन्धक इन क़ानूनों को लागू करने में विफल रहते हैं, उन्हें भी दंडित किया जा सकता है।
विशेष रैपोर्टेयर के अनुसार, सार्वजनिक नैतिकता को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल में लाना और महिलाओं व लड़कियों को उनकी स्वतंत्र अभिव्यक्ति से नकारे जाने से लैंगिक भेदभाव बढ़ेगा और वे हाशिएकरण का शिकार होंगी।
ईरान सरकार ने क़ानून के इस मसौदे को संसद और न्यायपालिका में 21 मई को पेश किया था, उसके बाद से इसमें कई बार संशोधन किए जा चुके हैं।
कौन होते हैं मानवाधिकार विशेषज्ञ
विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र की विशेष मानवाधिकार प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं।
मानवाधिकार विशेषज्ञ की नियुक्ति जिनीवा स्थिति यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी ख़ास मानवाधिकार मुद्दे या किसी देश की स्थिति की जाँच करके रिपोर्ट सौंपने के लिये करती है। ये पद मानद होते हैं और मानवाधिकार विशेषज्ञों को उनके इस कामकाज के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है।
(स्रोत: संयुक्त राष्ट्र समाचार)