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क्लाइमेट चेंज से अचानक विलुप्ति के कगार पर पहुंच रही कई प्रजातियां

एक नए अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन से प्रजातियों को टिपिंग पॉइंट्स यानी विलुप्ति की कगार पर क्लाइमेट चेंज की वजह से अचानक धकेली जा रही हैं क्योंकि उनकी भौगोलिक सीमाएं अप्रत्याशित तापमान तक पहुंच चुकी हैं।

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hastakshep
22 May 2023
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जानिए 400 साल पहले कैसे विलुप्त हो गया कबूतर परिवार का डोडो पक्षी

Climate change is already exposing species to dangerous temperatures driving widespread population and geographical contractions.

2.5 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने पर अचानक नष्ट हो सकती हैं 30% प्रजातियां 

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Climate change, habitat loss threatens bird populations

Climate change is already exposing species to dangerous temperatures driving widespread population and geographical contractions. 

नई दिल्ली, 22 मई 2023: यूसीएल रिसर्चर के नेतृत्व में एक नए अध्ययन से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन से प्रजातियों को टिपिंग पॉइंट्स यानी विलुप्ति की कगार पर क्लाइमेट चेंज की वजह से अचानक धकेली जा रही हैं क्योंकि उनकी भौगोलिक सीमाएं अप्रत्याशित तापमान तक पहुंच चुकी हैं। अब वह इतने गर्म वातावरण में पनप नहीं पा रही हैं और नष्ट हो रही हैं।

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नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन की नयी स्टडी (New study of Nature Ecology and Evolution)- “Abrupt expansion of climate change risks for species globally” अनुमान लगाती है कि कब और कहाँ जलवायु परिवर्तन से दुनिया भर में प्रजातियों को संभावित खतरनाक तापमान के संपर्क में आने की संभावना है।

यूसीएल की रिसर्च टीम, युनीवर्सिटी ऑफ़ केप टाउन, कनेक्टिकट युनिवेर्सिटी और बफ़ेलो युनिवेर्सिटी की शोध टीम ने जानवरों की 35,000 से अधिक प्रजातियों (स्तनधारियों, एम्फीबियन, रेप्टाइल, पक्षियों, कोरल, मछली, व्हेल और प्लैंकटन सहित) हर महाद्वीप की समुद्री घास के डेटा और महासागर बेसिन सहित 2100 जलवायु अनुमानों का विश्लेषण करती है।

शोधकर्ताओं ने जांच की कब प्रत्येक प्रजाति की भौगोलिक सीमा के भीतर के क्षेत्र थर्मल एक्सपोज़र की सीमा को पार कर जाएंगे, जिसे परिभाषित करते हैं शुरूआती पांच वर्षों के रूप में, जहां तापमान हाल के इतिहास (1850-2014) में अपनी भौगोलिक सीमा में एक प्रजाति द्वारा अनुभव किए गए सबसे चरम मासिक तापमान से लगातार अधिक है।

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जरूरी नहीं है कि थर्मल एक्सपोजर सीमा पार हो जाने के बाद, जानवर की मौत हो जाए लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है कि यह उच्च तापमान में जीवित रहने में सक्षम है - यानी, रिसर्च की गई कई प्रजातियों के लिए अचानक होने वाला क्लाइमेट चेंज भविष्य में उनके आवास के इलाके को कम कर सकता है।

शोधकर्ताओं ने कई जानवरों के लिए एक सुसंगत प्रवृत्ति पाई कि, अधिकतर ज्योग्राफिक रेंज में थर्मल एक्सपोज़र की सीमा को पार होने में एक दशक की ज़रूरत है। 

प्रमुख लेखक डॉ एलेक्स पाईगट (यूसीएल सेंटर फॉर बायोडायवर्सिटी एंड एनवायरनमेंट रिसर्च, यूसीएल बायोसाइंसेस) ने कहा: "इसकी संभावना कम है कि जलवायु परिवर्तन धीरे-धीरे पर्यावरण को जानवरों का जीवित रहना और अधिक कठिन बना देगा। इसके बजाय, कई जानवरों के लिए, उनकी भौगोलिक सीमा के बड़े पैमाने पर थोड़े समय में अप्रत्याशित रूप से गर्म होने की संभावना है।

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"हालांकि कुछ जानवर इन अधिक तापमानों में जीवित रहने में सक्षम हो सकते हैं, कई अन्य जानवरों को ठंडे क्षेत्रों में जाने या अनुकूलित करने के लिए विकसित होने की आवश्यकता होगी, जो कि इतने कम समय में हो पाना मुमकिन नहीं है।

"हमारे नतीजे बताते हैं कि एक बार जब हम यह नोटिस करना शुरू करते हैं कि एक प्रजाति अपरिचित हालात झेलती है, तो बहुत कम समय में ये जगह उसके अनुकूल नहीं रहेंगी, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि हम पहले से ही पहचान लें कि आने वाले दशकों में कौन सी प्रजातियां खतरे में पड़ सकती हैं।"

जानवरों व पौधों पर क्लाइमेट चेंज के हानिकारक प्रभावों को कम करने के लिए क्या करें
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शोधकर्ताओं ने पाया कि ग्लोबल वार्मिंग की सीमा एक बड़ा अंतर पैदा करती है: यदि प्लेनेट 1.5 डिग्री सेल्सियस तक गर्म होता है, तो एक दशक में जिन 15% प्रजातियों का अध्ययन किया गया है, वे अपने मौजूदा भौगोलिक सीमा के कम से कम 30% में अपरिचित गर्म तापमान का अनुभव करने का जोखिम उठाएंगे, लेकिन यह 2.5 डिग्री सेल्सियस वार्मिंग होने पर ये 30% प्रजातियों के लिए लगभग दोगुना हो जायेगा।

पाईगट आगे कहते हैं: "हमारी स्टडी इस बात का एक और उदाहरण है कि जानवरों और पौधों पर क्लाइमेट चेंज के हानिकारक प्रभावों को कम करने और बड़े पैमाने पर विलुप्त होने के संकट से बचने के लिए हमें कार्बन उत्सर्जन को तत्काल कम करने की आवश्यकता क्यों है।"

शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि उनकी स्टडी संरक्षण की कोशिशों को पूरा करने में मदद कर सकती है, क्योंकि उनका डेटा एक प्रारंभिक चेतावनी का तरीका प्रस्तुत करता है जो दिखाता है कि कब और किन जगहों पर इन विशेष जानवरों के जोखिम में होने की संभावना है।

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सह-लेखक डॉ क्रिस्टोफर ट्राईसोस (अफ्रीकन क्लाइमेट एंड डेवलपमेंट इनिशिएटिव, युनिवर्सिटी ऑफ़ केप टाउन) का कहना है: "अतीत में हमारे पास जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को दिखाने के लिए स्नैपशॉट थे, लेकिन यहां हम एक फिल्म की तरह डेटा पेश कर रहे हैं, जहां आप समय के साथ होने वाले बदलावों को होते देख सकते हैं। इससे पता चलता है कि विभिन्न प्रजातियों के लिए हर तरह से, हर जगह, एक साथ जोखिम बना हुआ है। इस प्रक्रिया को एनिमेट करके, हम देर होने से पहले इन संरक्षण की कोशिशों के लिए मदद करने की आशा करते हैं, इसके अलावा क्लाइमेट चेंज बेरोक जारी रहने से संभावित विनाशकारी परिणामों को भी दिखा सकते हैं।

शोधकर्ताओं का कहना है कि अचानक होने वाला एक्सपोज़र का यह स्वरूप राउंड प्लेनेट की एक खासियत है - पृथ्वी के आकार के कारण, इन प्रजातियों के लिए गर्म इलाके उपलब्ध हैं जो कि इनकी तुलना में रोजमर्रा की रहने वाली जगह से भी ज़्यादा गरम है, जैसा कि निचले इलाकों में या भूमध्य रेखा के पास का क्षेत्र। 

उपर्युक्त प्रमुख लेखकों द्वारा किए गए एक पिछले अध्ययन में पाया गया है कि भले ही हम जलवायु परिवर्तन को रोक दें ताकि वैश्विक तापमान चरम पर पहुंचकर गिरना शुरू हो जाए, जैव विविधता के सम्बन्ध में ये जोखिम दशकों बाद भी बना रह सकता है। * वर्तमान अध्ययन के समान एक अन्य विश्लेषण में, उन्होंने पाया कि कई अपरिचित तापमान का सामना करने वाली प्रजातियां समान तापमान के बदलाव का अनुभव करने वाले अन्य जानवरों के साथ रह रही होंगी, जो स्थानीय इकोसिस्टम के कार्य के लिए गंभीर जोखिम पैदा कर सकता है।**

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इस स्टडी को रॉयल सोसाइटी, द नेचुरल एन्वॉयरमेंट रिसर्च काउंसिल, नेशनल साइंस फाउंडेशन (यूएस), द अफ्रीकन एकेडमी ऑफ़ साइंस और नासा से समर्थन मिला है।

 

 

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