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स्वच्छ हवा के लिए माइक्रो-एयरशेड आधारित दृष्टिकोण अपनाएगा उत्तर प्रदेश

आईसीएएस 2023 में उत्तर प्रदेश के पर्यावरण सचिव ने बताया घरेलू और व्यावसायिक रसोई ईंधन वायु प्रदूषण के प्रमुख उप स्रोत हैं। इंडिया क्लीन एयर समिट में आशीष तिवारी का संबोधन

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hastakshep
25 Aug 2023
Ashish Tiwari, Secretary, Department of Environment, Forest and Climate Change, Uttar Pradesh

स्वच्छ हवा के लिए माइक्रो-एयरशेड आधारित दृष्टिकोण अपनाएगा उत्तर प्रदेश

आईसीएएस 2023 में उत्तर प्रदेश के पर्यावरण सचिव ने बताया घरेलू और व्यावसायिक रसोई ईंधन वायु प्रदूषण के प्रमुख उप स्रोत हैं

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लखनऊ, 25 अगस्त: वायु प्रदूषण कम करने में अग्रणी उत्तर प्रदेश ने कदम आगे बढ़ाते हुए माइक्रो-एयरशेड आधारित दृष्टिकोण के आधार पर कार्रवाई की योजना तैयार करने का निर्णय लिया है. पूर्व में राज्य ने एयरशेड आधारित दृष्टिकोण के आधार पर अपनी स्वच्छ वायु कार्य योजना तैयार की थी.

एयरशेड क्या होता है?

एयरशेड एक ऐसा भौगोलिक क्षेत्र है जहां स्थानीय भूतल और मौसम उस क्षेत्र से वायु प्रदूषकों के निस्तारण को सीमित कर देता है. वे किसी भूदृश्य में गतिमान वायु के विशाल आयतन से बनते हैं, जिससे उस क्षेत्र की वायुमंडलीय संरचना प्रभावित होती है. उनकी सीमाएँ अस्पष्ट रूप से परिभाषित होती हैं लेकिन इन्हें मापा जा सकता है.

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इंडिया क्लीन एयर समिट में आशीष तिवारी का संबोधन

इंडिया क्लीन एयर समिट (आईसीएएस) 2023 को संबोधित करते हुए, उत्तर प्रदेश के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग के सचिव आशीष तिवारी ने कहा कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश में घरेलू और व्यावसायिक रसोई ईंधन से होने वाले वायु-प्रदूषण की पहचान पीएम2.5 सांद्रता के प्रमुख राज्य स्तरीय उप स्रोत के रूप में की गई है जो 12.8 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर (बेसलाइन 2020) है. गेन्स मॉडल अपनाने के परिणामस्वरूप, राज्य स्रोतों से यूपी में कुल पीएम2.5 सांद्रता 43.5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर रहने का अनुमान है.

तिवारी ने कहा, “सीमा पार प्रदूषण से निपटने के लिए समग्र दृष्टिकोण की ज़रूरत है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय सीमाओं, पड़ोसी राज्यों और उत्तर प्रदेश के भीतर के क्षेत्रीय स्रोतों के कारण पैदा होने वाले प्रदूषण को कम करना शामिल है. इस चुनौती से प्रभावी ढंग से निपटने के लिए, हमें अपने ज्ञान का उपयोग ऐसी रणनीति बनाने के लिए करना चाहिए जो माइक्रो-एयरशेड योजना स्तर पर कार्य करे.”

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उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश बहुआयामी दृष्टिकोणों की योजना बना रहा है, जिसमें घरेलू और वाणिज्यिक स्तर पर खाना पकाने के लिए इस्तेमाल होने वाली प्रौद्योगिकियों में नवीन हस्तक्षेप शामिल हैं. जैसे कि उन्नत कुकिंग स्टोव, सूर्य नूतन सोलर इंडक्शन कुकिंग स्टोव और बायोगैस संयंत्र. इनके साथ-साथ व्यवहार परिवर्तन से जुड़े पहल भी किए जाएंगे. तिवारी ने कहा, "इन प्रयासों को एकीकृत करके, हम उत्तर प्रदेश को स्वच्छ हवा और टिकाऊ भविष्य की ओर ले जा सकते हैं."

स्वच्छ वायु प्रबंधन परियोजना तैयार कर रहा है उत्तर प्रदेश

यूपी के पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन विभाग के सचिव ने आगे कहा कि राज्य 'यूपी स्वच्छ वायु प्रबंधन परियोजना - यूपीकैंप' नामक व्यापक बहु-क्षेत्रीय वायु गुणवत्ता कार्य योजना तैयार करने की योजना बना रहा है, जिसमें कई तरह के अहम हस्तक्षेप शामिल हैं. जैसे कि खाना पकाने के स्वच्छ ईंधन के इस्तेमाल को किफ़ायती बनाने के लिए कार्बन फाइनेंसिंग, हेवी ड्यूटी बीएसआई, II और आंशिक रूप से बीएस III ट्रकों को चरणबद्ध तरीके से हटाना, रणनीतिक ज्ञान और एमएसएमई क्षेत्र के प्रदूषण नियंत्रण हस्तक्षेप आदि के लिए आदर्श बदलाव करना आदि. तिवारी ने बताया, “इससे राज्य एयरशेड के भीतर प्राथमिकता वाले क्षेत्रों से होने वाले वायु प्रदूषण की समस्या में काफी कमी आएगी.”

डॉ. प्रतिमा सिंह, सीनियर रिसर्च साइंटिस्ट, सीस्टेप ने इस बात पर प्रकाश डाला कि यूपी जैसे राज्य, जहाँ देश के कई नॉन अटेनमेंट सिटी स्थित हैं, दूसरों के लिए अनुकरणीय मिसाल पेश करने की क्षमता रखते हैं. उन्होंने यूपी के शहरों के व्यापक निगरानी के लिए प्रभावशाली माइक्रो-एयरशेड मॉडल तैनात करने के महत्व पर जोर दिया.

डॉ. सिंह ने आगे कहा, “यह दृष्टिकोण प्रदूषण के वजहों के बारे में गहरी समझ पैदा करेगा और त्वरित सुधारात्मक कार्रवाइयों को सक्षम बनाएगा. इसके अलावा, कम लागत वाले सेंसर जैसे किफ़ायती समाधानों के इस्तेमाल से निगरानी करने का बुनियादी ढांचा बेहतर होगा. नेतृत्व करने के लिए सक्रिय रूप से आगे बढ़कर, यूपी अपने निवासियों को स्वच्छ हवा उपलब्ध कराने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है.”

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