कर्नाटक चुनाव : तो क्या राहुल गांधी का प्लान बीजेपी को हरा पाएगा?

आज राहुल गांधी की राजनीति में लोहिया और कांशीराम दोनों की छाप दिखाई दे रही है।  बंगाली मार्केट और चांदनी चौक में स्ट्रीट फूड का लुत्फ उठाते राहुल गांधी

author-image
hastakshep
20 Apr 2023
कर्नाटक चुनाव : तो क्या राहुल गांधी का प्लान बीजेपी को हरा पाएगा?

बंगाली मार्केट और चांदनी चौक में स्ट्रीट फूड का लुत्फ उठाते राहुल गांधी

तो राहुल गांधी दिल्ली के दो मशहूर इलाकों बंगाली मार्केट और चांदनी चौक में शाम के वक्त आम लोगों की तरह स्ट्रीट फूड का लुत्फ उठाते हुए दिखे। आपको बता दें कि बंगाली मार्केट मिठाई और चाट पकौड़ियों के लिए मशहूर है। और उधर चांदनी चौक में रमजान के दिनों में शाम की रौनक कुछ और ही होती है, कुछ अलग ही रहती है। 

बंगाली मार्केट में राहुल गांधी ने आलू टिक्की और पानी पूड़ी का मजा लिया तो चांदनी चौक में वे तरबूज खाता हुए दिखे। इस पर कांग्रेस ने ट्वीट करते हुए लिखा कि मोहब्बत की शरबत। 

मोहब्बत की शरबत

दरअसल स्ट्रीट में जो तस्वीर लगी हुई है, जिसकी चर्चा हम कर रहे हैं, उसमें पहले तस्वीर में पीछे एक पोस्ट में यही लिखा हुआ है मोहब्बत की शरबत। 

दरअसल भारत जोड़ो यात्रा के बाद से राहुल गांधी का राजनीतिक कद वाकई इतना बढ़ गया है कि वे किसी पद पर रहें या ना रहें, सांसदी उनकी रहे या ना रहे, घर उनके पास रहे या ना रहे, लेकिन लोगों के दिलों में उनके लिए बनी जगह साफ दिखाई दे रही है। 

इन तस्वीरों में राहुल नीली टी शर्ट में दिखाई दे रहे हैं। भारत जोड़ो यात्रा में अमूमन राहुल गांधी की जो शर्ट थी वो सफेद थी और वो सफेद शर्ट काफी चर्चा में थी। 

रंगों की राजनीति में नीला रंग

सफेद रंग आप सब जानते हैं कि सफेद रंग की जगह अब नीली टी शर्ट ने अगर ले ली है तो इसके भी कुछ मायने होंगे। 

अब सवाल ये उठता है कि क्या राहुल गांधी ने यूं ही नीली शर्ट पहन ली थी या इसके पीछे कोई वजह है। दरअसल रंगों की राजनीति में इसका भी अलग ही महत्व है। 

तिरंगे में सफेद रंग शांति एकता और सच्चाई का प्रतीक है, तो अशोक चक्र का नीला रंग आकाश महासागर और सार्वभौमिक सत्य को दर्शाता है, वहीं नीला रंग बहुजन समाज का भी प्रतिनिधित्व करता है। 

यानी राहुल गांधी के शर्ट के बदले हुए रंग के अब राजनीतिक अर्थ भी तलाशी जाएंगे। वैसे भी जब से कर्नाटक में राहुल गांधी ने जितनी आबादी उतना हक का नारा दिया है, उसके बाद से बहुत कुछ बदलता हुआ दिखाई दे रहा है। जितनी आबादी उतना हक ओबीसी की बात कर रहे थे राहुल गांधी और जातिगत जनगणना की बात कर रहे थे और साथ-साथ ये कह रहे थे कि जितनी आबादी उतना हक।

ट्रंप कार्ड की हम बात कर रहे हैं तो राहुल गांधी का नया ट्रंप कार्ड क्या है वो तलाशने की कोशिश करेंगे उसको डिकोड करने की कोशिश करेंगे 

दरअसल बीजेपी घबरा गई है कि किस तरह वह राहुल गांधी के जातिवार जनगणना के दांव का जवाब वो देगी। भारत के राजनीतिक इतिहास में थोड़ा पीछे अगर जाएं तो डॉराम मनोहर लोहिया जी ने, संसोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें 100 में 60 का नारा दिया था। थोड़ा और आगे बढ़िए तो आप पाएंगे कि कांशीराम जी ने इसी को आगे बढ़ाते हुए जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी का नारा बुलंद किया था। 

आप जानते हैं कि डॉ लोहिया समाजवादी थे, जबकि कांशीराम जी ने दलित राजनीति को और आगे बढ़ाया। इन दोनों में एक खास बात ये थी कि कांग्रेस के विरोध में इन नारों का इस्तेमाल किया था, मगर आज राहुल गांधी की राजनीति में लोहिया और कांशीराम दोनों की छाप दिखाई दे रही है। 

कर्नाटक में राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना और आरक्षण की सीमा हटाने की मांग की और मोदी सरकार को चुनौती दे दी कि आपसे अगर नहीं होता है तो है जाइए हम कर देंगे। बीजेपी को उम्मीद नहीं रही होगी कि मोदी सरनेम पर ओबीसी कार्ड खेलने का ऐसा करारा जवाब उसे मिलेगा।

DB Live के कार्यक्रम News Point में देशबन्धु के प्रधान संपादक राजीव रंजन श्रीवास्तव का बीज वक्तव्य। पूरा वक्तव्य सुनने के लिए यह वीडियो देखें।

Subscribe