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विश्व बाल श्रम निषेध दिवस
विश्व बाल श्रम निषेध दिवस (World Day Against Child Labour in Hindi) (12 जून) पर विशेष
12 जून को मनाया जाने वाला विश्व बाल श्रम निषेध दिवस का उद्देश्य बाल श्रम के खिलाफ बढ़ते विश्वव्यापी आंदोलन के लिए एक उत्प्रेरक के रूप में कार्य करना है। सामाजिक न्याय और बाल श्रम के बीच की कड़ी पर जोर देते हुए, 2023 में विश्व दिवस का नारा 'सभी के लिए सामाजिक न्याय' है। बाल श्रम समाप्त करें!' (World Day Against Child Labour 2023 theme: Social Justice for All. End Child Labour!) ।
बच्चों को मजदूरी नहीं, शिक्षा की ज़रूरत है
पुंछ, जम्मू 12 2023 (हरीश कुमार): बच्चों को देश का भविष्य कहा जाता है. किसी भी देश के बच्चे अगर शिक्षित और स्वस्थ होंगे तो वह देश उन्नति और प्रगति करेगा. लेकिन अगर किसी समाज में बच्चे बचपन से ही किताबों को छोड़कर मजदूरी का काम करने लगें तो देश और समाज को आत्मचिंतन करने की ज़रूरत है. उसे इस सवाल का जवाब ढूंढने की ज़रूरत है कि आखिर बच्चे को कलम छोड़ कर मज़दूर क्यों बनना पड़ा?
बाल श्रम क्या होता है?
जब बच्चे से उसका बचपन, खेलकूद और शिक्षा का अधिकार छीनकर उसे मज़दूरी की भट्टी में झोंक दिया जाता है, उसे शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से प्रताड़ित कर उसके बचपन को श्रमिक के रूप में बदल दिया जाता है तो यह बाल श्रम (Child Labour) कहलाता है.
क्या बाल श्रम कानूनी वैध है?
हालांकि पूरी दुनिया के साथ साथ भारत में भी बाल श्रम पूर्ण रूप से गैरकानूनी घोषित है. संविधान के 24वें अनुच्छेद के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से कारखानों, होटलों, ढाबों या घरेलू नौकर इत्यादि के रूप में कार्य करवाना बाल श्रम के अंतर्गत आता है. अगर कोई ऐसा करते पाया जाता है तो उसके लिए उचित दंड का प्रावधान है. लेकिन इसके बावजूद समाज से इस प्रकार का शोषण समाप्त नहीं हुआ है.
प्रश्न यह उठता है कि आखिरकार बाल श्रम का यह सिलसिला कब रुकेगा?
आंकड़े अभी भी इस बात की गवाही देते हैं कि भारत में बाल श्रम जैसी समस्या अभी भी बरकरार है. अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के आंकड़ों के अनुसार 2020 की शुरुआत में 5 वर्ष और उससे अधिक आयु के 10 में से एक बच्चा बाल श्रम के रूप में शामिल था. अनुमानित 160 मिलियन बच्चे बाल श्रम के शिकार थे. वहीं वैश्विक स्तर पर पिछले दो दशकों में अंतर्राष्ट्रीय बाल श्रम और यूनिसेफ 2021 की रिपोर्ट के अनुसार बाल श्रम को कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है. बाल श्रम के बच्चों की संख्या 2000 और 2020 के बीच 16% से घटकर 9.6% हो गई है.
भारत में 10.1 मिलियन बच्चे बाल श्रमिक
वहीं अगर भारत की बात करें, तो 2011 की जनसंख्या के अनुसार भारत में 5 से 14 वर्ष की आयु वर्ग के 10.1 मिलियन बच्चे मज़दूरी में कार्यरत हैं. मौजूदा समय के आंकड़े पूरी तरह स्पष्ट नहीं हैं. परंतु एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में बाल श्रम के आंकड़े बताते हैं कि प्राथमिक शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने वाले राज्यों में स्थितियों में सुधार हो रहा है. हालांकि कोरोना महामारी के बाद इसमें थोड़ा ब्रेक लगा है. जिसके बाद कई बच्चे मज़बूरी में बाल श्रम बनने को मजबूर हो गए हैं.
ऐसा ही एक उदाहरण जम्मू कश्मीर के जिला कठुआ के रहने वाले अमित मेहरा का है. अमित का कहना है। कि "मैं अभी बिल्कुल बाल्यावस्था में था, कि पिता का देहांत हो गया था. वह एकमात्र कमाने वाले थे. घर में मां के अलावा तीन बहने हैं. उस समय मेरी उम्र केवल 13 वर्ष थी. हमारे समाज में लड़कियों का काम करना अच्छा नहीं समझा जाता है. इसलिए मैंने कमाना शुरू कर दिया. मैं पढ़ाई में अच्छा था, परंतु जिम्मेदारी बढ़ जाने के कारण में दसवीं के आगे नहीं पढ़ पाया."
अमित बताते हैं कि "बाल अवस्था में घर से बाहर जाकर पैसे कमाना कितना कठिन है, यह दर्द मैं जानता हूं. बेशक बाल श्रम बहुत ही गलत चीज है. परंतु कुछ अवस्थाओं में मजबूरी इतनी बढ़ जाती है कि इंसान को घुटने टेकने पड़ते हैं. परंतु जिनके माता-पिता हैं और वह अपने बच्चों से काम करवाते हैं. बहुत ही दुखद बात है.
वह कहते हैं कि आज भी मैं यह देखता हूं कि छोटे-छोटे बच्चे या तो भीख मांग रहे होते हैं या इतनी गर्मी में दुकानों में या रोड पर सामान बेच रहे होते हैं. मैं सरकार से यह अपील करता हूं कि ऐसे बच्चों के लिए जो किसी कारणवश बाल श्रम करने को मजबूर हैं उनकी बेहतरी के लिए कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने की जरूरत है.
इस संबंध में जम्मू कश्मीर समाज कल्याण विभाग के मिशन वात्सल्य की संरक्षण अधिकारी आरती चौधरी का कहना है कि विभाग इस संबंध में सक्रिय भूमिका निभा रहा है. कुछ माता पिता स्वयं मज़दूरी की जगह अपने बच्चों से भीख मंगवाने का काम करते हैं. पिछले कुछ दिनों में समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों ने जम्मू के मशहूर विक्रम चौक, गांधीनगर व अन्य भीड़भाड़ वाले इलाकों से ऐसे बच्चों को रेस्क्यू किया है. उन्हें बाल देखभाल संस्थानों में भर्ती कराया गया है, जहां पर उन्हें उचित पोषण, परामर्श और चिकित्सक देखभाल की सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है.
उन्होंने बताया कि बचाए गए ज्यादातर बच्चे राजस्थान के रहने वाले हैं. यानी बच्चों को बाहरी राज्यों से यहां लाकर भीख मंगवाई जा रही है. हालांकि ऐसे करने वालों पर अभी तक कोई कार्रवाई हुई है या नहीं? इसकी कोई पुष्टि नहीं हुई है.
वहीं जम्मू-कश्मीर के सीमावर्ती जिला पुंछ के मंगनाड गांव के समाजसेवी सुखचैन लाल कहते हैं कि इस गांव में अधिकतर लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं. कुछ समय पहले यहां पर मां बाप अपने बच्चों को शहर के अमीर लोगों के घरों में कामकाज करने के लिए भेज देते थे. उनसे कहा जाता था कि उनके बच्चों को शिक्षा भी दिलवाएंगे. मां बाप इस लालच में आ जाते थे कि हमारा बच्चा काम के साथ साथ शिक्षा भी प्राप्त कर सकेगा. लेकिन हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत होती थी. बच्चों से न केवल घरों का काम करवाया जाता था बल्कि उन्हें पढ़ने भी नहीं दिया जाता था. जिसके बाद गांव के कुछ लोगों ने मिलकर एक समाज सुधार कमेटी का गठन किया, जिसके तहत सबने मिलकर एक बैठक बुलाई और फैसला किया गया कि बच्चों के भविष्य के लिए उन्हें शहर नहीं भेजा जायेगा. हालांकि उन अभिभावकों ने इसका विरोध किया जिन्हें बच्चों की शिक्षा से अधिक उनकी कमाई से पैसे मिल रहे थे. लेकिन गांव वालों के सख्त रुख के बाद उन्हें भी झुकना पड़ा. वर्तमान में, इस गांव का कोई बच्चा बाल मज़दूर के रूप में शहर में काम नहीं करता है.
बाल श्रम की शिकायत कहां करें?
हालांकि अगर कोई भी किसी बच्चे से जोर जबरदस्ती से बाल श्रम करवाने की कोशिश करता है तो उसके विरुद्ध शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. इसके लिए देश भर में 1098 चाइल्डलाइन टोल फ्री नंबर मौजूद है. जिस पर कॉल करके शिकायत दर्ज कराई जा सकती है. जिसमें बाल श्रम अधिनियम 1986 के अंतर्गत अगर कोई व्यक्ति अपने व्यवसाय के उद्देश्य से 14 वर्ष के कम आयु के बच्चे से कार्य करता है तो उस व्यक्ति को 2 साल की सजा और 50 रुपए का जुर्माना लगाने का प्रावधान किया गया है. बहरहाल, देश के सभी क्षेत्रों में यदि इस प्रकार की सामाजिक जागरूकता हो तो बाल श्रम पर आसानी से काबू पाया जा सकता है. (चरखा फीचर)