Advertisment

तो पोस्टल बैलट से तय होगी यूपी की कुर्सी !

क्या चुनाव आयोग की प्रासंगिकता है? अपनी साख बचाने के लिए चुनाव आयोग क्या करे?

Election Commission of India

Advertisment

Next government in UP will be decided by postal ballot

Advertisment

पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव (Assembly elections to be held in five states) में खास तौर से उत्तर प्रदेश में पोस्टल बैलेट का इस्तेमाल (Use of postal ballot in Uttar Pradesh) करने वाले मतदाता तय करेंगे कि अगली सरकार किसकी होगी। यह बात आपको चौंकाने वाली जरूर लग सकती है लेकिन भरमाने वाली नहीं है। चुनाव आयोग ने पोस्टल बैलेट से वोट करने वाले मतदाताओं के आधार में जो बदलाव किया है उससे यही स्थिति बन रही है।

Advertisment

यूपी के अलावा बाकी राज्यों में भी ऐसा ही होगा, मगर हम यहां उत्तर प्रदेश के आंकड़ों के जरिए इस स्थिति को स्पष्ट कर रहे हैं।

Advertisment

यूपी चुनाव में कौन डाल सकेगा पोस्टल वोट? | Who will be able to cast postal vote in UP elections?

Advertisment

चुनाव आयोग ने पोस्टल वोट का दायरा बढ़ा दिया है। इसमें 80 साल से अधिक उम्र के बुजुर्ग वोटर के साथ-साथ कोविड पॉजिटिव या कोविड संदिग्ध (covid positive or covid suspect) भी शामिल हैं। चुनाव आयोग ने पोस्टल बैलेट के लिए जो आधार तय किए हैं उन पर गौर करें-

Advertisment

>> मतदाता सूची में जो दिव्यांग के रूप में दर्ज हैं।

Advertisment

>> अधिसूचित आवश्यक सेवाओं में जो मतदाता रोजगार में हों

>> जिनकी उम्र 80 साल से अधिक है।

>> जो मतदाता सक्षम अधिकारी से कोविड पॉजिटिव/संदिग्ध के तौर पर सत्यापित हों और क्वारंटीन (होम या इंस्टीच्यूशनल) में हों।

यूपी में 80 साल से अधिक उम्र के मतदाताओं की संख्या | Voters above 80 years of age in UP

उत्तर प्रदेश में 80 साल से अधिक उम्र के मतदाताओं की संख्या चुनाव आयोग के अनुसार 24 लाख 3 हजार 296 है। आयोग के ही अनुसार यूपी में दिव्यांग मतदाताओं की तादाद (Number of Divyang Voters in UP) 10 लाख 64 हजार 266 है। अधिसूचित आवश्यक सेवाओं के तहत कार्यरत मतदाताओं की संख्या स्पष्ट नहीं है। फिर भी इसकी अनुमानित संख्या 6 लाख के करीब है। इस तरह कोविड के ऐक्टिव केस को छोड़कर यह तादाद 40 लाख के आसपास हो जाती है। 403 विधानसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश में यह संख्या प्रति विधानसभा 10 हजार मतदाताओं के बराबर है।

उत्तर प्रदेश में 77 सीटों पर जीत-हार का अंतर दस हजार से कम

यूपी में 77 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जहां 2017 में 10 हजार से कम वोटों के अंतर से हार-जीत का फैसला हुआ था। इनमें 36 सीटें बीजेपी ने जीती थीं, तो 22 सीटें सपा ने। बीएसपी 14, कांग्रेस 2 और 3 सीटें छोटे दलों ने जीती थी।

जाहिर है कि बगैर कोविड के एक्टिव केस को जोड़े सिर्फ 80 साल से अधिक उम्र के वोटरों और दिव्यांग मतदाता ही 77 सीटों पर जीत-हार को प्रभावित करने की स्थिति में हैं। अगर कोविड के एक्टिव केस को जोड़ दिया जाएगा तो पोस्टल बैलेट से वोट करने वालों से जीत-हार तय होने वाली सीटों की संख्या और भी अधिक हो जाएगी।

कोरोना की दूसरी लहर (second wave of corona) के दौरान जब आंकड़े ऊंचाई पर थे तब 1 मई को 3 लाख से ज्यादा एक्टिव केस यूपी में थे। इसके एक हफ्ते पहले या एक हफ्ते बाद एक्टिव केस 2.5 लाख के स्तर पर था। उस हिसाब से भी 7 दिन के एक्टिव केस का योग 17 लाख से 20 लाख के बीच होता है।

कोरोना की तीसरी लहर में उत्तर प्रदेश में एक्टिव केस की संख्या : मतदान के वक्त 35 से 40 लाख एक्टिव केस हो सकते हैं

कोविड की तीसरी लहर (third wave of covid) में जिस रफ्तार से कोरोना के केस बढ़ रहे हैं एक्टिव केस की संख्या (Number of active cases in Uttar Pradesh in the third wave of Kovid) उत्तर प्रदेश में पिछली लहर के मुकाबले दुगुनी हो सकती है। ऐसे में अकेले कोविड की महामारी से जूझते वोटरों की तादाद 35 से 40 लाख तक हो सकती है। उस स्थिति में बैलेट पेपर से वोट देने वाले वोटरों की संख्या कुल 80 लाख तक हो जाएगी। यानी औसतन 50 हजार के वोट हर विधानसभा में बैलेट पेपर से होंगे। जाहिर है बैलेट पेपर के ये वोटर उत्तर प्रदेश की सरकार तय करने में निर्णायक भूमिका अदा करेंगे।

चुनाव आयोग के लिए यह गंभीर चुनौती होगी कि कोविड के मरीज बैलेट पेपर पर निर्भीक तरीके से कैसे मतदान करें। इसके अलावा ऐसे मतदान पत्रों को निरस्त करने की घटनाएं भी भौतिक रूप से मतगणना केंद्र पर ली जाती है जिसमें खूब पक्षपात होता है। बैलेट पेपर से दिए गये वोट को पहले गिनें या बाद में गिनें इस पर भी चुनाव परिणाम प्रभावित होने लग जाता है। एक-एक वोट के लिए रस्साकशी होती है।

बैलेट पेपर क महत्व : अब राजनीति का मोहरा बनने जा रहे हैं कोविड के मरीज

बैलेट पेपर के महत्व (importance of ballot paper) में अचानक बढ़ोतरी की वजह से राजनीतिक दल अपनी रणनीति में भी इसे जरूर शुमार करेंगे। कोविड संक्रमित मरीज को डराना या लुभाना कहीं अधिक आसान है। उसकी सुरक्षा भी बड़ा मुद्दा होगा। इसके अलावा चुनाव के मौसम में अधिक टेस्टिंग और कोविड केस सामने लाने की भी होड़ लग जा सकती है ताकि बैलेट पेपर से वोट बढ़ जाएं। सभी राजनीतिक दल अपने-अपने समर्थक माने जाने वाले मरीजों के लिए ऐसी होड़ में शामिल हो सकते हैं। इस कवायद से कोविड की महामारी से जूझते मरीजों को सहूलियत कितनी मिलेगी, कहा नहीं जा सकता। मगर, ये तय है कि कोविड के मरीज अब सियासत का मोहरा जरूर बनने जा रहे हैं।

चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश में 21,40,278 मतदाताओं के नाम हटाए हैं। इनमें 10 लाख 50 मतदाता दिवंगत हुए हैं। 3,32,905 मतदाताओं ने स्थान बदल लिया, जबकि 7,94,029 मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट में रिपीट हो रहे थे।

प्रेम कुमार

लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हैं।

Advertisment
सदस्यता लें