NO BANK CHARGES :बैंक शुल्कों के कारण आर्थिक रूप से कमजोर जमाकर्ताओं की बचत समाप्त हो जाती है। अगर उनको बैंकिंग की सुविधा (Banking facilities) के लिए इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है, तो फिर बैंकों का उद्देश्य क्या हैं (What is the purpose of banks) ?
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Cartoons on the issue of bank charges in India. Cartoons Made by KP Sasi for `No Bank Charges' in India campaign.
बैंकों की गरीबों के लिए दंडात्मक सुविधा पिछले कुछ वर्षों में बैंकों ने सभी बैंकिंग लेनदेन के लिए ग्राहकों पर भारी शुल्क लगाना शुरू कर दिया है। इनमे से कुछ शुल्क तो पहले से ही मौजूद थे लेकिन नए शुल्क बहुत ही मूलभूत आवश्यकताओं पर लगाए जा रहे हैं।
वर्तमान में अधिकांश बैंकों ने न्यूनतम राशि ना रख पाने पर, अपनी शाखाओं और एटीएम से नकद जमा और निकासी पर, बैलेंस पूछताछ और एसएमएस अलर्ट पर भी शुल्क लगा दिये हैं । यहां तक कि लोगों से डेबिट कार्ड ट्रान्जैक्शन फेल होने पर, कार्ड रीप्लेसमेंट, चेक बुक, एटीएम कार्ड पिन जेनरेशन, एटीएम में पैसे जमा करने, किसी भी मोबाइल नंबर पता या अन्य केवाईसी संबंधित परिवर्तनों के लिए, डेबिट कार्ड पे वार्षिक शुल्क डेबिट कार्ड जारी एवं फिर से जारी करने आदि के लिए भी शुल्क लिया जाता है।
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अब तो जमाकर्ताओं से प्रत्येक वित्तीय एवं गैर-वित्तीय लेनदेन और सेवाओं पर भी वसूली की जाती हैं ।
अब एक भी सेवा एसी नहीं है जिसे हम कह सके कि बिना चार्ज के मिलती है और यह समाज के शोषित, पीड़ित एवं वंचित लोगों के साथ अन्याय है।बैंक छोटे जमाकर्ताओं के पैसों का उपयोग उधारकर्ताओं को उधार देने और लाभ कमाने के लिए करते हैं। इन वित्तीय संस्थानों का प्राथमिक उद्देश्य जन कल्याण करना और देश भर में बैंकिंग सेवाओं को आसानी से उपलब्ध कराकर आम लोगों की सेवा करना था।लेकिन पिछले कुछ वर्षों में, बैंक अपने उद्देश्य से भटक गए हैं और बड़े कॉरपोरेट घरानो को भारी कर्ज की स्वीकृति देने के रूप मे उन्हे बड़े स्तर पर फायदा पहुंचाना शुरू कर दिया ।
जब इन कॉरपोरेट घरानो ने वापस भुगतान नहीं किया, तो इसके परिणामस्वरूप बड़ी मात्रा मे एनपीए बढ़ गए, जिसकी वजह से बैंकों को बड़े पैमाने पर नुकसान और संकट का सामना करना पड़ रहा है।
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इसीलिए इस नुकसान की भरपाई करने हेतु बैंकों ने सभी सेवाओं और लेनदेन पर चार्ज लगाकर जमाकर्ताओं को हर संभव तरीके से प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। इन शुल्कों ने पूरी तरह से बचत को समाप्त कर दिया है और यहा तक की कभी-कभी शेष राशि को नेगेटिव बैलेन्स मे भी डाल देता है, जिससे स्थिति और भी खराब हो जाती है।
और अब उन बैंकों में केवल बचत खाता रखना निरर्थक लगता है जो कि अपने ही खाते में जमा किए गए अपने स्वयं के ही पैसों के लेनदेन पर चार्ज कर रहे हैं। यह लोगों को बैंकिंग प्रणाली का हिस्सा बनने से हतोत्साहित करेगा। यहां तक कि बचत राशि मे से बैंकिंग सेवाओं के नाम पर शुल्क काटने की वजह से कई लोगों ने बैंकों में अपना पैसा रखना बंद कर दिया है। नो बैंक चार्जेस अभियान के माध्यम से, हम मांग करते हैं कि आरबीआई और बैंकों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को नुकसान पहुंचाने वाले बचत खातों पर लगाए गए सभी शुल्कों को हटाना चाहिए। हम यह भी अपील करते हैं कि आरबीआई और सरकार को बड़े कर्जदाताओं की वसूली के लिए उचित कार्रवाई करनी चाहिए और विलफुल डिफॉल्टरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए। इन नुकसानों का बोझ बैंक चार्जेस के रूप में आम लोगों पर नहीं डालना चाहिए ।