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Not the British, not even Jinnah, Bengal and Punjab were divided by Mukherjee and Chatterjee!
29 जुलाई को कोलकाता से जय भीम नेटवर्क पर मतुआ आंदोलन (जय भीम नेटवर्क पर मतुआ आंदोलन,), भारत में समानता और न्याय की गौतम बुद्ध से लेकर भारत विभाजन तक की लड़ाई की निरंतरता, जोगेंद्र नाथ मण्डल और बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर के नेतृत्व में बुद्ध, हरिचांद, फुले, गुरु नानक, बसेश्वर, तिलका मांझी, बिरसा मुंडा, पेरियार, नारायण गुरु, नारायण लोखंडे, राजा रणजीत सिंह, गुरु गोविंद सिंह, वहाबी आंदोलनों की विरासत के मुताबिक देश भर में मनुस्मृति के तहत छीने गए जल जंगल जमीन, शिक्षा, सम्पत्ति, श्रम, शास्त्र और सम्मानजनक जीवन और आजिविका के संघर्ष में बंगाल, महाराष्ट्र, पंजाब, कश्मीर, दक्षिण भारत की एकताबद्ध लड़ाई की इस लगभग दो घण्टे के वीडियो में विस्तार से चर्चा हुई। इसकी लाइव स्ट्रीमिंग हुई। लेकिन बातचीत बांग्ला में होने की वजह से गैर बंगाली जनता इस सम्वाद से जुड़ नहीं सकी।
Jinnah wanted full Kashmir instead of partitioning Punjab and Bengal.
इस बात के दस्तावेजी सुबूत हैं कि जिन्ना पंजाब और बंगाल का विभाजन करने के बजाय पूरा कश्मीर चाहते थे। इस बात के भी सबूत हैं कि कांग्रेस नेतृत्व की राजनीति की वजह से नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के देश के बाहर जाकर आजादी की लड़ाई लड़ने को मजबूर किये जाने से नाराज बंगाल की जनता को खुश करने के लिये शरत बसु की अगुवाई में बंगाल के नेता अलग अखंड बंगाल और मास्टर तारा सिंह की अगुवाई में अकाली अलग अखंड पंजाब और कश्मीर की मुस्लिम बहुल जनता कश्मीर की आज़ादी चाहती थी।
अगर भारत विभाजन के पीछे सिर्फ ब्रिटिश हुकूमत की चाल थी तो उनके लिये यह सबसे आसान था कि पूरा बंगाल, पूरा पंजाब और पूरा कश्मीर वे स्वतन्त्र भारत के नक्शे से काटकर अलग कर सकते थे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बंगाल, पंजाब और कश्मीर का विभाजन हो गया।
आजाद भारत में महाराष्ट्र से काटकर गुजरात को अलग कर दिया गया और भारत को आदिवासियों और मुसलमानों की तरह अलग-थलग कर दिया।
सिख और कश्मीरी नेता अलग देश के लिए आखिर-आखिर तक अड़े रहे, लेकिन बंगालियों का नेताजी प्रेम सिरे से गायब हो गया।
बंगाल के नेता पूर्वी बंगाल की मतुआ विरासत और किसान आदिवासी आंदोलनों की जल जंगल जमीन की लड़ाई, तेभागा आंदोलन और दलित-मुस्लिम एकता, अम्बेडकर जोगेंद्र नाथ मण्डल के गठजोड़ को एक साथ खत्म करना चाहते थे और इसके लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी और एनसी चटर्जी के नेतृत्व में वे जिन्ना के साथ खड़े हो गए।
हिन्दू राष्ट्र के महान नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी, नेहरू और पटेल की तरह मुस्लिम बहुल कश्मीर के बदले बंगाल और पंजाब का विभाजन के लिए तैयार हो गए। इससे पहले प्रजा कृषक पार्टी के भूमि सुधार एजेंडा छोड़कर मुस्लिम लीग के पाकिस्तान की मांग का समर्थन करने वाले फजलुल हक की सरकार में कैबिनेट मंत्री भी बने हिंदुत्व के पितामह श्यामा प्रसाद मुखर्जी। ज्योति बसु की अगुवाई में कम्युनिस्टों ने भी भारत विभाजन का कोई विरोध नहीं किया।
मुखर्जी ने तो यहां तक कह दिया कि भारत का विभाजन हो न हो, बंगाल का विभाजन होकर रहेगा क्योंकि हम सवर्ण, अछूतों का वर्चस्व किसी सूरत में मान नहीं सकते।
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जन्म 18 मई 1958
एम ए अंग्रेजी साहित्य, डीएसबी कालेज नैनीताल, कुमाऊं विश्वविद्यालय
दैनिक आवाज, प्रभात खबर, अमर उजाला, जागरण के बाद जनसत्ता में 1991 से 2016 तक सम्पादकीय में सेवारत रहने के उपरांत रिटायर होकर उत्तराखण्ड के उधमसिंह नगर में अपने गांव में बस गए और फिलहाल मासिक साहित्यिक पत्रिका प्रेरणा अंशु के कार्यकारी संपादक।
उपन्यास अमेरिका से सावधान
भारत का विभाजन करने के लिए सारे जमींदार, राजा, महाराजा, पूंजीपति, भारत के तथाकथित राष्ट्रीय नेता एकजुट होकर अंग्रेजों के साथ और जिन्ना के साथ भी खड़े हो गए, क्योंकि वे भारतीय राष्ट्र में बंगाल, पंजाब, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत के अछूत और गैर हिन्दू नेताओं का नेतृत्व बर्दाश्त नहीं कर सकते थे और न ही वे समानता और न्याय की लड़ाई में हिन्दू राष्ट्र के अपने साझा एजेंडा को डूबते हुए देखना चाहते थे।
इस वीडियो में जनसँख्या स्थानांतरण, विभाजन, शरणार्थी समस्या, बांग्लादेश, पुनर्वास और अछूत आदिवासी और मुसलमानों, शरणार्थियों को देश निकाले के लिए नागरिकता कानून में सिलसिलेवार संशोधन, का, एनपीआर और एनसीआर पर भी चर्चा की गई है।
वीडियो में शरदेंदु उद्दीपन एंकर हैं। पलाश विश्वास और दिलीप गायेन आमंत्रित वक्ता हैं। आयोजकों ने टेक्स्ट अभी जारी नहीं किया है। जारी होते ही उसका हिंदी अनुवाद भी जारी कर दिया जाएगा।
समानता और न्याय के लिए मनुस्मृति की फासिस्ट सत्ता के खिलाफ लोकतन्त्र और मानवाधिकार के पक्ष में खड़े हर व्यक्ति के लिए यह वीडियो अनिवार्य है।
पलाश विश्वास
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