नेपाल में फिर भूकंप-कांप गये दिल्ली और कोलकाता के हुक्मरान भी
मुक्तबाजारी हिंदू साम्राज्यवाद इस महाभूकंप के लिए सबसे बड़ा अपराधी है। धर्म, पर्यटन और विकास के नाम पर हिमालय से लगातार लगाता छेड़छाड़ का नतीजा यह है, इसे जितनी जल्दी हम समझें, उतनी ही सुरक्षित रहेगी यह पृथ्वी।
अब तो दोस्तों, कुछ इस पृथ्वी और सभ्यता को बचाने के बारे में पहल करने की सोचो।
हमने चेतावनी दी थी कि राजधानी दिल्ली समेत धर्मोन्मादी समूची गाय पट्टी भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील है। अब प्रकृति ने भी अपनी चेतावनी दे दी है।
हम कोलकाता और बंगाल की सेहत के लिए लगातार सुंदरवन को बनाये रखने की बात कर रहे थे तो प्रकृति विरोधी, मनुष्यता विरोधी हिंदू साम्राज्यवादी मुक्तबाजारी कयामत एजेंडा का भी हम लोग लगातार पर्दाफाश कर रहे हैं।
लिखने बैठा ही था कि फिर महाभूकंप।
महाभूकंप की खबरें तो आपको मीडिया देती रहेगी, लेकिन प्रकृति और पर्यावरण के बारे में बुनियादी मुद्दों पर ही हमारा फोकस बना रहेगा।
अब तो दोस्तों, कुछ इस पृथ्वी और सभ्यता को बचाने के बारे में पहल करने की सोचो।
राजधानी में अभी बहुमंजिली सभ्यता सकुशल है और कोलकाता में सभ्यता की नींव हिली भर है।
इससे पहले नेपाल के दो दफा महाभूकंप के बाद अंडमान और कच्छ में भी भूकंप के झटके महसूस किये गये।
प्रशांत महासागर में सुनामी की चेतावनी जारी हो चुकी है। लेकिन भारत में सत्तावर्ग के प्रकृति और मनुष्यता के खिलाफ लगातार जारी बलात्कार के खिलाफ आवाजें सिरे से गुम हैं और धर्मोन्मादी आलाप प्रलाप घनघोर है।
इससे बड़ा दुस्समय शायद मनुष्यता के इतिहास में कभी नहीं आया जबकि देश बेचो सत्ता की सर्वोच्च प्राथमिकता है और धर्मोन्माद ही राष्ट्रीयता है।
नेपाली जनता ने इस धर्मोन्मादी राष्ट्रवाद को धूल चटा दिया और भारतीय मीडिया के मोदियापे को बेआबरु करके घरके वापस घर बेच दिया। फिर भी शर्म लेकिन आती नहीं है।
मोदी की चीन यात्रा की तैयारियों के सिसिले में भारतीय मीडिया का वही मोदियापा चरम पर है।
मोदी के चीन में होने वाले स्वागत की तैयारियों का लाइव प्रसारण है।
नेपाल का महाभूकंप एक इवेंट की तरह मीडिया कार्निवाल बना रहा जब तक न कि सलमान को जेल और बेल का सिलसिला शुरु हुआ।फिर दीदी मोदी और अब अम्मा की सुर्खियों ने बुनियादी तमाम मुद्दे हाशिये पर धकेल दिये।
अब मीडिया पर फिर महाभूकंप है।
फिर भी चीखती सुर्खियों में कोई सरोकार नहीं है।
हमारे विचारवान मित्र अक्सर बहुत झल्लाकर कहा करते हैं कि ये पब्लिक का कसूर है कि वह हमेशा मनुष्यता और सभ्यता के खिलाफ युद्ध अपराधियों को सत्ता के शिखर तक बैठाती है और निरंकुश दमन और उत्पीड़न के अश्वमेधी घोड़ों की टापों से लहूलुहान होकर अपने जख्मों को चाटती हुई अपनी अपनी किस्मत का रोना रोती है। उनके मुताबिक दरअसल यह पब्लिक ही किसी बुनियादी बदलाव के खिलाफ है और गुलामी की जंजीरें ही उसके लिए आजादी है।
भाइयों, अब ठीक 271 दिन बाकी हैं पेशेवर पत्रकारिता से हमारे रिटायर होने को। यूं बचपन से पत्रकारिता कर रहा हूं। हाईस्कूल पास करते ही नैनीताल जीआईसी के दिनों में ही नैनीताल के दैनिक पर्वतीय में टिप्पणियां लिख रहा था मैं। विश्वविद्यालय में दाखिला लेते न लेते चिपको में शामिल हो गया। अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई के बावजूद पंफलेट और बुलेटिन हिंदी में लिखने की गरज थी, जो बचपन से पिता की एक्टिविज्म से हमारी आदत बनी हुई थी। इस पर नैनीताल समाचार और पहाड़ की टीम और हमारे गुरु जी ताराचंद्र त्रिपाठी का अंकुश। जनसरोकार के मुद्दों को छोड़कर लिखने की मनाही थी।
झारखंड को समझने धनबाद कोयलांचल पहुंचा तो 1980 में पेशेवर पत्रकारिता में फंस गया जिंदगी भर के लिए। झारखंड में आंदोलन और कोयला खानों की भूमिगत आग में झुलसता दहकता रहा।
झारखंड से 1984 में मेरठ पहुंचा ठीक आपरेशन ब्लू स्टार के बाद और यूपी में बैठकर सिखों के जनसंहार से लेकर मलियाना और हाशिमपुरा नरसंहार के चश्मदीद बनने के बाद पूरे भारत को राम के नाम धर्मोन्मादी बनकर खंड खंड विखंडित होते रहने का सिलसिला बनते देखा।
बरेली और बिजनौर के शहरों को जलते हुए देखने के बाद जब बरेली से कोलकाता रवाना हुआ और ट्रेन में ही था तो गढ़वाल में महाभूकंप से तबाही मच गयी। वह महाभूकंप अभी जारी है।
इसीलिए मेरे लिए नेपाल और गढ़वाल की मनुष्यता को राजनीतिक सीमा के जरिए अलग अलग देखना बेहद मुश्किल है।
जब से कोलकाता आया, तब से नवउदारवादी मुक्तबाजारी सत्तावर्ग ने लगातार लगातार इस महादेश में पल छिन पल छिन भूकंप और महाभूकंप का सिलसिला बनाये रखने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी है। हाशिये पर अस्पृश्य हैसियत से यह सब झेल रहा हूं।
इसीलिए जनता के बुनियादी मुद्दों को हम राजनीतिक और धार्मिक या संस्कृतिक मुद्दा नहीं मानते।
यह सामाजिक यथार्थ का आइना है जो अर्थव्यवस्था पर काबिज वर्गीय नस्ली रंगभेदी वर्ण वर्चस्व की फसल है।
आर्थिक मुद्दों से भी ज्यादा ये तमाम जव्लंत मुद्दे हमारे लिए मनुष्यता, सभ्यता, प्रकृति और पर्यावरण के मुद्दे हैं।
आज भी हम लगातार महाभूकंप के शिकंजे में हैं।
जान माल का नुकसान जहां भी हो रहा है, हमारे स्वजन ही मारे जा रहे हैं।
जहां भी हिमालय जख्मी होता है, जहां भी समुंदर में तेल कुंओं की आग दहकने लगती है, जहां भी सलवा जुड़ुम और आफसा में मनुष्यता लहूलुहान होती है, वह इस कायनात के लिए कयामत का मंजर ही है।
माफ कीजिये, यह कारपोरेट पत्रकारिता नहीं है। हम कारपोरेट की नौकरी जरुर करते हैं लेकिन कारपोरेट गुलाम नहीं हैं और इसीलिए डफर हैं।
मगर हम मोर्चे पर अपने स्वजनों के साथ, अपनी जड़ों के साथ, अपनी नदियों, घाटियों, पहाडो़ं जल जंगल जमीन के साथ खड़े होकर ही हम इस कयामत का मुकाबला कर सकते हैं और इसीलिए हम आर्थिक मुद्दों से प्रकृति और पर्यावरण के मुद्दों को कभी अलग नहीं मानते।
मुक्तबाजारी हिंदू साम्राज्यवाद इस महाभूकंप के लिए सबसे बड़ा अपराधी है, धर्म, पर्यटन और विकास के नाम पर हिमालय से लगातार लगातार छेड़छाड़ का नतीजा यह है, इसे जितनी जल्दी हम समझें, उतनी ही सुरक्षित रहेगी यह पृथ्वी।
हमारे विद्वत जन मनुष्यता को खांचों में बांटने के विशेषज्ञ हैं, जैसे हमारे राजनेता मनुष्यता को अस्मिताओं में बांटने के अभ्यस्त हैं।
हम इस राज्यतंत्र को बदलने की सोचते ही नहीं है क्योंकि कुल मिलाकर हम पढ़े लिखे लोग गायक अभिजीत ही हैं और अभिजीत की मानसिकता माफी मांगने के बावजूद जैसे बदली नहीं है, वैसी ही बिन माफी मांगे हम अपने से कमतर इंसानों के मुकाबले अपनी अपनी बेहतरी, अपनी नियमतों और अपनी अपनी बरकतों के दखलदार हैं और सामाजिक यथार्थ लेकिन वहीं निरमम शाश्वत सत्य है कि कुत्ते की तरह जीनेवाली मनुष्यता फर्राटा बुलेट बहुमंजिली सभ्यता की बेरहम दरिंदगी से हर वक्त कुचलती रहेगी और अंधा कानून कभी न्याय नहीं करेगा।
पलाश विश्वास
Tags कुत्ते
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