कन्हैया मामले में केसरिया क्रांति जेएनयू के बहाने रोहित वेमुला और देश भर में दलित आदिवासी, ओबीसी, अल्पसंख्यक बच्चों के कत्लेआम के खिलाफ देशभर में जनता की गोलबंदी रोकने के लिए मनुस्मृति शासन जारी रखने का इंतजाम है, जाहिर सी बात है।
जाहिर सी बात है कि धर्मोन्मादी हिंदुत्व के लिए असहिष्णुता और उन्माद दोनों अनिवार्य है।
जाहिर सी बात है कि देशद्रोही साबित करने के लिए फर्जी देश प्रेम का अभियान और देशद्रोह का महाभियोग जरूरी है।
जाहिर सी बात है कि हर मुसलमान को गद्दार साबित करके ही हिंदुओं को भड़काया जा सकता है और उनका वोट दखल के लिए यह बेहद जरूरी भी है, वरना बिहार की पुनरावृत्ति यूपी बंगाल उत्तराखंड में भोगी और असम में भी।
यह सियासत है।
शायद यह हुक्मरान का मजहब भी हो।
इस सियासत का गुलाम कोई वीसी विश्वविद्यालय को धू-धू जलता हुआ देख रहा है और विश्वविद्यालय की स्वायत्तता हुक्मरान के हवाले कर रहा है और अपने ही बच्चों को बलि चढ़ा रहा है, इससे ज्यादा शर्मनाक कुछ भी नहीं है।
विश्वविद्यालय को दंडकारण्य बनाकर सलवा जुड़ुम चला रहा है यह वीसी। यह सत्ता के मजहब से बड़ा विश्वासघात है। देशद्रोह है या नहीं, ऐसा फतवा तो संघी ही दे सकते हैं।
कश्मीर के बाद, मणिपुर के बाद फौजी हुकूमत के दायरे में हैं सारे विश्वविद्यालय और वीसी फौजी सिपाहसालार।
मनुस्मृति राजनीति में है और उसके हित और उसके पक्ष साफ हैं।
कोई वीसी अगर विश्वविद्यालय की स्वाहा को ओ3म स्वाहा कर दें और अपने ही बच्चों को देशद्रोही का तमगा दे दें, उसका अपराध इतिहास माफ नहीं करेगा। छात्रों को मनुस्मृति के साथ-साथ उस अपराधी वीसी से भी इस्तीफा मांगना चाहिए।
अब दिल्ली और बाकी देश में भी जेएनयू के वीसी को कटघरे में खड़ा करना चाहिए ताकि इस देश के विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता बची रहे।
स्वायत्तता सत्ता के हवाले करके अपने बच्चों के खिलाफ साजिश में शामिल जेएनयू के वीसी इस्तीफा दें!
कोलकाता में यादवपुर विश्वविद्यालय ने दिखा दिया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए कोई वीसी, कोई शिक्षक, कोई छात्र या छात्रा का पक्ष क्या होना चाहिए!
यादवपुर विश्वविद्यालय के वीसी ने केंद्र सरकार के जवाब तलब के बाद रीढ़ सीधी सही सलामत करके यादवपुर विश्वविद्यालय की स्वायत्तता के इतिहास का हवाला दिया है और कहा है कि छात्र अगर दोषी हैं छात्र को सजा विश्वविद्यालय देगा।
समस्या का समाधान विश्वविद्यालय करेगा।
पुलिस या सरकार का यह सरदर्द नहीं है।
यादवपुर विश्वविद्यालय के वीसी ने केंद्र सरकार के जवाब तलब के बाद रीढ़ सीधी सही सलामत करके यादवपुर विश्वविद्यालय की स्वायत्तता के इतिहास का हवाला देकर कहा है कि छात्रों के खिलाफ कोई एफआईआर नहीं होगा और न परिसर में पुलिस को घुसने दिया जायेगा।
जेएनयू में सलवा जुड़ुम के जिम्मेदार वीसी तुरंत इस्तीफा दें।
सारे छात्र उनके साथ हैं और सारे नागरिक उनके साथ हैं।
धर्मोन्मादी कोई नागरिक होता नहीं है।
तृपर्णा डे सरकार को अब भी जिंदा जलाने की धमकियां जारी और कबीर सुमन के गाने पर रोक, बंगाल अंगड़ाई ले रहा है!
तृपर्णा डे सरकार ने लालाबाजार पुलिस मुख्यालय जाकर फिर शिकायत दर्ज करवायी है और आरोपों का जवाब सिलसिलेवार दिया है। खबरें देख लें।
नरसंहार संस्कृति के सिपाहसालारों, रोक सको तो रोक लो जनता का अभ्युत्थान फासिज्म के राजकाज के खिलाफ!
हम किसी मजहबी या सियासती हुकूमत के गुलाम कभी नहीं रहे हैं। यह हमारी आजादी की असल विरासत है।
इंसानियत की कोई सरहद होती नहीं है और हमारे तमाम पुरखे इंसानियत के सिपाही थे।
अंध भक्तों को सबसे पहले हिंदू धर्म का इतिहास समझना चाहिए और रामायण महाभारत पुराणों और स्मृतियों के अलावा वेद वेदान्त उपनिषदों का अध्ययन करना चाहिए।
इतना धीरज नहीं है है तो संतन की वाणी पर गौर करना चाहिए जो सहजिया पंथ है, भक्ति आंदोलन है और हमारी आजादी की विरासत भी है। ऐसा वे कर लें तो इस कुरुक्षेत्र के तमाम चक्रव्यूह में फंसे आम आदमी और आम औरत की जान बच जायेगी और मुल्क को मलबे की ढेर में तब्दील करने वालों की मंशा पर पानी फिर जायेगा।
मुक्त बाजार को कोई राष्ट्र नहीं होता।
न कोई राष्ट्र मुक्त बाजार होता है।
नागरिक कोई रोबोट नहीं होता नियंत्रित।
स्वतंत्र नागरिक एटम बम होता है।
जो गांधी थे। अंबेडकर थे और नेताजी भी थे।
गंगा उलटी भी बहती है और पलटकर मार करती है जैसे राम है तो राम नाम सत्य भी है।
राम के नाम जो हो सो हो राम नाम सत्य है सत्य बोलो गत्य है, यही नियति है।
कोई भेड़िया बच्चा उठा ले जाये तो शहरी जनता की तरह गांव देहात के लोग एफआईआर दर्ज कराने थाने नहीं दौड़ते और अच्छी तरह वे जानते हैं कि भेड़िये से निपटा कइसे जाई। भेड़ और भेड़िये का फर्क भी वे जाणै हैं। शहर के लोग बिल्ली को शेर समझत हैं।
आस्था से खेलो मत, धार्मिक लोग सो रहे हैं और उनका धर्म जाग गया तो सशरीर स्वार्गारोहण से वंचित होगे झूठो के जुधिष्ठिर, जिनने देश और द्रोपदी दुनों जुए में बेच दियो।
उन्हें राष्ट्र नहीं चाहिए, मुक्त बाजार चाहिए।
सत्तर के दशक में ही आपातकाल के दमन के शिकार हुए लोग अब इतने सत्ता अंध हो गये हैं कि लोकतंत्र को दमनतंत्र में तब्दील करने लगे हैं क्योंकि उन्हें राष्ट्र नहीं चाहिए, मुक्त बाजार चाहिए।
जनता नहीं चाहिए। विदेशी पूंजी चाहिए।
इससे जियादा बेशर्म रष्ट्रद्रोह कोई दूसरा नहीं है।
अब यह बहुत जरूरी है कि यह मांग उठाई जाए कि स्वायत्तता सत्ता के हवाले करके अपने बच्चों के खिलाफ साजिश में शामिल जेएनयू के वीसी इस्तीफा दें!
कन्हैया मामले में केसरिया क्रांति जेएनयू के बहाने रोहित वेमुला और देश भर में दलित आदिवासी, ओबीसी, अल्पसंख्यक बच्चों के कत्लेआम के खिलाफ देशभर में जनता की गोलबंदी रोकने के लिए मनुस्मृति शासन जारी रखने का इंतजाम है, जाहिर सी बात है।
जाहिर सी बात है कि धर्मोन्मादी हिंदुत्व के लिए असहिष्णुता और उन्माद दोनों अनिवार्य है।
जाहिर सी बात है कि देशद्रोही साबित करने के लिए फर्जी देश प्रेम का अभियान और देशद्रोह का महाभियोग जरूरी है।
जाहिर सी बात है कि हर मुसलमान को गद्दार साबित करके ही हिंदुओं को भड़काया जा सकता है और उनका वोट दखल के लिए यह बेहद जरूरी भी है, वरना बिहार की पुनरावृत्ति यूपी बंगाल उत्तराखंड में भोगी और असम में भी।
यह सियासत है।
शायद यह हुक्मरान का मजहब भी हो।
इस सियासत का गुलाम कोई वीसी विश्वविद्यालय को धू-धू जलता हुआ देख रहा है और विश्वविद्यालय की स्वायत्तता हुक्मरान के हवाले कर रहा है और अपने ही बच्चों को बलि चढ़ा रहा है, इससे ज्यादा शर्मनाक कुछ भी नहीं है।
विश्वविद्यालय को दंडकारण्य बनाकर सलवा जुड़ुम चला रहा है यह वीसी। यह सत्ता के मजहब से बड़ा विश्वासघात है। देशद्रोह है या नहीं, ऐसा फतवा तो संघी ही दे सकते हैं।
कश्मीर के बाद, मणिपुर के बाद फौजी हुकूमत के दायरे में हैं सारे विश्वविद्यालय और वीसी फौजी सिपाहसालार।
मनुस्मृति राजनीति में है और उसके हित और उसके पक्ष साफ हैं।
कोई वीसी अगर विश्वविद्यालय की स्वाहा को ओ3म स्वाहा कर दें और अपने ही बच्चों को देशद्रोही का तमगा दे दें, उसका अपराध इतिहास माफ नहीं करेगा। छात्रों को मनुस्मृति के साथ-साथ उस अपराधी वीसी से भी इस्तीफा मांगना चाहिए।
अब दिल्ली और बाकी देश में भी जेएनयू के वीसी को कटघरे में खड़ा करना चाहिए ताकि इस देश के विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता बची रहे।
जेएनयू में सलवा जुड़ुम के जिम्मेदार वीसी तुरंत इस्तीफा दें।
सारे छात्र उनके साथ हैं और सारे नागरिक उनके साथ हैं।
धर्मोन्मादी कोई नागरिक होता नहीं है।
तृपर्णा डे सरकार को अब भी जिंदा जलाने की धमकियां जारी और कबीर सुमन के गाने पर रोक, बंगाल अंगड़ाई ले रहा है!
तृपर्णा डे सरकार ने लालाबाजार पुलिस मुख्यालय जाकर फिर शिकायत दर्ज करवायी है और आरोपों का जवाब सिलसिलेवार दिया है। खबरें देख लें।
नरसंहार संस्कृति के सिपाहसालारों, रोक सको तो रोक लो जनता का अभ्युत्थान फासिज्म के राजकाज के खिलाफ!
हम किसी मजहबी या सियासती हुकूमत के गुलाम कभी नहीं रहे हैं। यह हमारी आजादी की असल विरासत है।
इंसानियत की कोई सरहद होती नहीं है और हमारे तमाम पुरखे इंसानियत के सिपाही थे।
अंध भक्तों को सबसे पहले हिंदू धर्म का इतिहास समझना चाहिए और रामायण महाभारत पुराणों और स्मृतियों के अलावा वेद वेदान्त उपनिषदों का अध्ययन करना चाहिए।
इतना धीरज नहीं है है तो संतन की वाणी पर गौर करना चाहिए जो सहजिया पंथ है, भक्ति आंदोलन है और हमारी आजादी की विरासत भी है। ऐसा वे कर लें तो इस कुरुक्षेत्र के तमाम चक्रव्यूह में फंसे आम आदमी और आम औरत की जान बच जायेगी और मुल्क को मलबे की ढेर में तब्दील करने वालों की मंशा पर पानी फिर जायेगा।
मुक्त बाजार को कोई राष्ट्र नहीं होता।
न कोई राष्ट्र मुक्त बाजार होता है।
नागरिक कोई रोबोट नहीं होता नियंत्रित।
स्वतंत्र नागरिक एटम बम होता है।
जो गांधी थे। अंबेडकर थे और नेताजी भी थे।
गंगा उलटी भी बहती है और पलटकर मार करती है जैसे राम है तो राम नाम सत्य भी है।
राम के नाम जो हो सो हो राम नाम सत्य है सत्य बोलो गत्य है, यही नियति है।
कोई भेड़िया बच्चा उठा ले जाये तो शहरी जनता की तरह गांव देहात के लोग एफआईआर दर्ज कराने थाने नहीं दौड़ते और अच्छी तरह वे जानते हैं कि भेड़िये से निपटा कइसे जाई। भेड़ और भेड़िये का फर्क भी वे जाणै हैं। शहर के लोग बिल्ली को शेर समझत हैं।
आस्था से खेलो मत, धार्मिक लोग सो रहे हैं और उनका धर्म जाग गया तो सशरीर स्वार्गारोहण से वंचित होगे झूठो के जुधिष्ठिर, जिनने देश और द्रोपदी दुनों जुए में बेच दियो।
उन्हें राष्ट्र नहीं चाहिए, मुक्त बाजार चाहिए।
सत्तर के दशक में ही आपातकाल के दमन के शिकार हुए लोग अब इतने सत्ता अंध हो गये हैं कि लोकतंत्र को दमनतंत्र में तब्दील करने लगे हैं क्योंकि उन्हें राष्ट्र नहीं चाहिए, मुक्त बाजार चाहिए।
जनता नहीं चाहिए। विदेशी पूंजी चाहिए।
इससे जियादा बेशर्म रष्ट्रद्रोह कोई दूसरा नहीं है।