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क्या जन गण मन किंग जॉर्ज के लिए लिखा गया था?

It is not about King George, "Jana Gana Mana Adhinayak". Gurudev Rabindranath Tagore himself had made it clear that the "Adhinayak" of "Jana Gana Mana" cannot be any "King George".

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डॉ राम पुनियानी
13 Jul 2015 | एडिट 07 May 2023
क्या जन गण मन किंग जॉर्ज के लिए लिखा गया था?

क्या जन गण मन अधिनायक किंग जार्ज के बारे में है? Was Jana Gana Mana written for King George?

‘‘जन गण मन अधिनायक’’ नहीं है किंग जार्ज के बारे में

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क्या जन गण मन अधिनायक किंग जार्ज के बारे में है?

हमारे राष्ट्रगान पर चल रही बहस का कोई अंत दिखलाई नहीं दे रहा है। एक लंबे समय से ये कोशिशें चल रही हैं कि जन गण मन के मुकाबले वंदे मातरम को देश का बेहतर राष्ट्रगान साबित किया जाए। जन गण मन के प्रति लोगों के मन में सम्मान भाव को कम करने के लिए बार-बार यह कहा जाता रहा है कि यह गीत इंग्लैंड के बादशाह जार्ज पंचम की शान में लिखा गया था।

गत 7 जुलाई 2015 को राजस्थान विश्वविद्यालय में भाषण देते हुए भाजपा नेता कल्याण सिंह ने इस मुद्दे को फिर से उछाला। जिस समय बाबरी मस्जिद ढहाई गई थी, कल्याण सिंह उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। उन्होंने राष्ट्रीय एकता परिषद को यह वचन दिया था कि मस्जिद की रक्षा की जाएगी परंतु उन्होंने अपने वचन का पालन नहीं किया। कल्याण सिंह ने कहा कि हमारे राष्ट्रगान में अधिनायक शब्द जार्ज पंचम के लिए इस्तेमाल किया गया है और इसलिए राष्ट्रगान की पहली पंक्ति को ‘‘जन गण मंगल गाये’’ कर दिया जाना चाहिए।

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कल्याण सिंह ने इस सुधार की मांग करते हुए यह दोहराया कि वे गुरूदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर का बहुत सम्मान करते हैं। भाजपा नेता का यह दावा और उनकी मांग, दोनों ही तथ्यों पर आधारित नहीं हैं। जो मांग वे कर रहे हैं, वह अनुचित और अकारण है। यह धारणा कि जन गण मन जार्ज पंचम की शान में लिखा गया था, तत्समय अखबारों में छपी खबरों पर आधारित है, जो कि सही नहीं थीं। 20वीं सदी की शुरूआत में, देश के अधिकांश समाचारपत्र ब्रिटिश-समर्थक थे और उनमें काम करने वाले पत्रकारों का भारतीय भाषाओं का ज्ञान सीमित था। इसी कारण इस तरह की गलत धारणा बनी।

जन गण मन को राष्ट्रगान के रूप में क्यों अपनाया गया?

जन गण मन को राष्ट्रगान के रूप में इसलिए अपनाया गया क्योंकि वह देश के बहुवादी चरित्र को प्रतिबिंबित करता है। ‘‘अधिनायक’’ शब्द जार्ज पंचम के लिए प्रयुक्त किया गया है, यह गलत धारणा तत्कालीन अंग्रेजी समाचारपत्रों ने फैलाई थी। सन् 1911 में जब जार्ज पंचम भारत आए तब बंगाल के विभाजन के निर्णय को ब्रिटिश सरकार द्वारा वापिस लिए जाने के लिए कांग्रेस, उन्हें धन्यवाद देना चाहती थी। बंगाल के विभाजन के निर्णय को रद्द करने के लिए ब्रिटिश सरकार को मजबूर होना पड़ा था। यह स्वदेशी आंदोलन की पहली बड़ी सफलता थी और भारत के साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष का पहला कदम। सन् 1905 में प्रारंभ हुए स्वदेशी आंदोलन की मांग थी कि बंगाल के विभाजन का निर्णय वापिस लिया जाए। 26 दिसंबर 1911 को कांग्रेस के अधिवेशन के पहले दिन दो गीत गाए गए। एक रबीन्द्रनाथ टैगोर रचित जन गण मन और दूसरा जार्ज पंचम की यात्रा के अवसर पर रामानुज चौधरी नामक एक अज्ञात सज्जन द्वारा रचित गीत।

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उस समय के अंग्रेजी समाचारपत्र इस तरह की घटनाओं की रिपोर्टिंग करने में न तो बहुत गंभीर रहते थे और न तथ्यों की बहुत परवाह करते थे। यही कारण है कि अंग्रेजी अखबारों में यह छपा कि टैगोर का गाना जार्ज पंचम की शान में था।

टैगोर, असल में, किसकी ओर संकेत कर रहे थे, यह भाषाई प्रेस के एक टिप्पणीकार ने स्पष्ट किया: ‘‘उनका गीत मनुष्यों के भाग्यविधाता की स्तुति में था न कि जार्ज पंचम की स्तुति में, जैसा कि एंग्लो-इंडियन मीडिया ने प्रस्तुत किया है‘‘।

जब अंग्रेजों के प्रति वफादार उनके एक मित्र ने रबीन्द्रनाथ टैगोर से जार्ज पंचम की स्तुति में एक गीत रचने को कहा तो वे बहुत नाराज हुए क्योंकि वे ब्रिटिश शासन के खिलाफ थे। उन्होंने जार्ज पंचम की बजाए मनुष्यों के भाग्यविधाता को समर्पित गीत लिखा।

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गुरूदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर ने ही साफ कर दिया था कि "जन गण मन" का अधिनायक कोई "किंग जार्ज" नहीं हो सकता

जब ब्रिटिश मीडिया में इस आशय की खबरें छपीं कि उन्होंने जार्ज पंचम की स्तुति में गीत लिखा है और उनकी कई व्यक्तियों ने निंदा की तब टैगोर ने लिखा,

‘‘मानव के भाग्य का वह महान विधाता, जो हर युग में मौजूद रहा है, किसी भी स्थिति में जार्ज पंचम या जार्ज द्वितीय या कोई भी जार्ज नहीं हो सकता। मेरे उस ‘वफादार मित्र’ को भी यह बात समझ में आ गई क्योंकि सम्राट के प्रति उसकी वफादारी चाहे जितनी रही हो, उसमें बुद्धि की कमी नहीं थी।’’

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यह गीत जल्दी ही बहुत लोकप्रिय हो गया और उसके अंग्रेजी अनुवाद ‘‘मॉर्निंग सांग ऑफ इंडिया’’ को भी बहुत प्रसिद्धि मिली। नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आजाद हिंद फौज ने इसे राष्ट्रगान के रूप में अपनाया और गांधीजी ने कहा, ‘‘इस गीत ने हमारे राष्ट्रीय जीवन में स्थान बना लिया है।’’ सांप्रदायिक तत्व, वंदे मातरम को तरजीह देते हैं क्योंकि उन्हें जन गण मन पसंद नहीं है। और इसका कारण यह है कि जन गण मन में बहुवाद का संदेश निहित है। वे इस गीत को बदनाम करने के बहाने और मौके ढूंढते रहते हैं।

आरएसएस और हिंदुत्व परिवार को "जन गण मन" से क्या दिक्कत है?

आरएसएस और हिंदुत्व परिवार, जन गण मन के मुकाबले वंदे मातरम को कहीं अधिक पसंद करते हैं। वंदे मातरम का पहला छंद लिखने के बाद, बंकिमचंद्र चटोपाध्याय ने अपने उपन्यास ‘‘आनंदमठ’’ में उसे विस्तार दिया। इस गीत का अधिकांश हिस्सा देवभाषा संस्कृत में है और कुछ पंक्तियां बांग्ला में।

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इस गीत को ब्रिटिश विरोधी प्रदर्शनों के दौरान गाया जाता था परंतु इसके मूल हिंदू स्वर के बारे में कोई संदेह नहीं होना चाहिए। धर्मनिरपेक्ष आंदोलन से जुड़े एक तबके ने ब्रिटिश विरोधी अभियानों के दौरान इसका इस्तेमाल किया। हिंदुत्ववादी इसे इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि उसका मूल स्वर हिंदू है। साम्प्रदायिक दंगों के दौरान वंदे मातरम के नारे लगाए जाते हैं जिसका प्रतिउत्तर मुसलमानों द्वारा अल्लाहो अकबर का नारा बुलंद कर दिया जाता है। यह गीत हिंदुत्व आंदोलन के लक्ष्यों के इस अर्थ में भी अनुरूप है कि वह राष्ट्र को दुर्गा के रूप में देखता है। भारतीय राष्ट्र की विविधता और उसका बहुवाद, जो कि उसकी मूल पहचान हैं, इस गीत में कहीं दिखलाई नहीं देतीं।

जन गण मन, वंदे मातरम और सारे जहां से अच्छा वे तीन राष्ट्रीय गीत थे, जिनमें से एक को राष्ट्रगान बनाया जाना था। जन गण मन, भारत की समृद्ध विविधता को प्रतिबिंबित करता था और अधिकांश राज्यों को स्वीकार्य था। इस कारण उसे राष्ट्रगान के रूप में चुना गया। वंदे मातरम के पहले दो छंदों को राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया। संघ परिवार इस गीत का उपयोग अल्पसंख्यकों को डराने धमकाने के लिए कर रहा है। यह गीत अपने साम्राज्यवाद-विरोधी संदेश के साथ-साथ अल्पसंख्यक-विरोधी भावनाओं का वाहक भी बन गया है। यही कारण है कि आरएसएस और उसके साथी संगठन, इस गीत पर बहुत जोर दे रहे हैं।

यह प्रचार कि जन गण मन जार्ज पंचम की स्तुति में लिखा गया था, गलत इरादे से किया जा रहा है और यह सच पर आधारित नहीं है। यह सांप्रदायिक ताकतों के राजनैतिक एजेंडे का हिस्सा है।
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यहां यह महत्वपूर्ण है कि सभी मुसलमानों की वंदे मातरम के बारे में एक राय नहीं है। जानेमाने संगीतकार ए.आर. रहमान ने वंदे मातरम की अत्यंत सुंदर और मनमोहक धुन तैयार की है। शाही इमाम, जिन्होंने इसका विरोध किया था, भाजपा के करीबी रहे हैं और वह पार्टी चुनावों में वोट पाने के लिए उनका इस्तेमाल करती आई है। यहां तक कि पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने फतवा जारी कर मुसलमानों से यह कहा था कि वे भाजपा को वोट दें। पूरे गीत को यदि मुस्लिम नहीं गाना चाहते तो इसे पूरी तरह अनुचित नहीं कहा जा सकता क्योंकि उसमें कई हिंदू देवी-देवताओं की स्तुति है। परंतु यहां यह बताना समीचीन होगा कि इस गीत के केवल शुरूआती दो छंदों को राष्ट्रगीत का दर्जा दिया गया है और इस तथ्य के प्रकाश में, मुसलमानों के लिए भी स्थिति बदल जाती है। हिंदुत्ववादियों के दोहरे मापदंड भी इस विवाद में खुलकर सामने आए हैं। सन् 1998 में, जब उत्तरप्रदेश सरकार ने इस गीत का गायन स्कूलों में अनिवार्य करने का निर्णय लिया था तब अटल बिहारी वाजपेयी ने इसका विरोध किया था।

-राम पुनियानी

(मूल अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

(लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)

क्या जन गण मन अधिनायक किंग जार्ज के बारे में है? Was Jana Gana Mana written for King George?

July 13,2015 06:45

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