जयप्रकाश आन्दोलन का युवा चेहरा रही नूतन कैंसर से जूझ रही हैं। कल ही गंगा मुक्ति आन्दोलन के अग्रणी नेता रहे अनिल प्रकाश ने फोन पर बताया कि वे लखनऊ आ रहे हैं और फिर मुम्बई जायेंगे। मैंने पूछा कि मुम्बई में कोई बैठक है क्या तो उनका जवाब था – नहीं नूतन जी को कैंसर हो गया है और उनका इलाज चल रहा है।
कैंसर का नाम सुनते ही सहम गया। अब यह बीमारी डराने लगी है आलोक तोमर याद आये। पापा का भी दिल्ली में कैंसर का इलाज हो रहा है। इस बीमारी का नाम सुनते ही डर लगता है।
नूतन का नाम सुनते ही तीस साल पुराना समय आँखों के सामने से घूम गया।
नूतन जी से मेरी उनसे पहली मुलाकात बिहार के बोधगया आन्दोलन के दौरान बोधगया में सम्पूर्ण क्रान्ति मंच के एक कार्यक्रम में हुयी। बाद में जब पटना में जयप्रकाश नारायण की बनायी छात्र संघर्ष युवा वाहिनी के कार्यक्रमों में जाता तो कंकड़बाग़ स्थित हेमन्त -नूतन के घर पर ही रुकता। हेमन्त जी भी जयप्रकाश आन्दोलन के अग्रणी छात्र नेताओं में रहे हैं जो बाद में पत्रकारिता से जुड़े।
सत्तर के दशक में बिहार जैसे राज्य में एक जमींदार परिवार की किसी लड़की का समाज परिवर्तन के आन्दोलन से जुड़ना और संघर्ष करना बहुत आसान नहीं था। पर नूतन ने परिवार की चिन्ता किये बगैर जयप्रकाश आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी और तमाम लड़कियों के लिये रोल मॉडल बनी थीं।
जयप्रकाश नारायण भी नूतन के संघर्ष से प्रभावित थे। जनसत्ता अखबार में प्रभाष जोशी ने हेमन्त और नूतन के सहजीवन के एलान पर सम्पादकीय लिखा था।
नूतन की बहन किरण भी वाहिनी से जुड़ीं और काफी काम किया। हेमन्त, नूतन और किरण से आखिरी मुलाकात भी दिल्ली में हुयी थी।
हेमंत और नूतन तो आशीर्वाद अपार्टमेंट वाले घर पर मिलने आये थे तो किरण बहादुरशाह जफ़र मार्ग स्थित एक्सप्रेस बिल्डिंग में आयी थीं। उनकी बेटी को कैंसर हो गया था और इलाज के लिए दौड़ भाग कर रही थीं।
अस्सी के दशक में जब छात्र युवा संघर्ष वाहिनी में सक्रिय था तो कई बार चेन्नई शिविर में जाना हुआ। किरण और विजय के साथ भी एक यात्रा की। उस दौर में जयप्रकाश नारायण के सहयोगी शोभाकांत दास मद्रास में प्रभावती देवी के नाम से गुडवान्चरी आश्रम के जरिये करीब तीस गाँवों की महिलाओं और बच्चों के लिये कई कार्यक्रम कर रहे थे।
आश्रम काफी बड़ा था और वाहिनी के शिविर में आने वाले पचास साठ लोग आसानी से रुक जाते थे। पर मेरा रुकना शोभाकांत जी के 59 गोविन्दप्पा नायकन स्ट्रीट वाले आवास पर होता था जो काफी बड़ा था और मद्रास स्टेशन के करीब था।
शोभाकांत जी का घर रामनाथ गोयनका के घर के पास था और उनकी घनिष्ठ मित्रता थी।
जयप्रकाश नारायण और रामनाथ गोयनका के बीच की कड़ी शोभाकांत दास ही थे। दरभंगा के रहने वाले शोभाकांत दास महात्मा गाँधी से प्रभावित होकर आजादी की लड़ाई से जुड़े। अंग्रेजों के दौर में जेल गये और सरगुजा रियासत की जेल तोड़कर भाग निकले थे। बाद में वे जेल में बन्द जयप्रकाश नारायण की चिट्ठी खाना देने के बहाने क्रान्तिकारियों तक पहुँचाते। कम उम्र की वजह से उनपर कोई शक भी नहीं करता।
उन्हीं शोभाकांत जी ने अस्सी के दशक में मद्रास से हिन्दी में एक पत्रिका निकलने का प्रस्ताव हमारे सामने रखा जिसमे वाहिनी के भी कई साथी जुड़ते। इसी सिलसिले में मैं, विजय और किरण के साथ मद्रास गये।
शुरुआती बैठक के बाद विजय गया लौट गये थे। हम लोग पत्रिका के स्वरूप पर चिन्तन कर रहे थे। तभी शोभाकांत जी ने निर्देश दिया कि मद्रास और आसपास की जगह को जानने समझने के लिये हम लोगों को पहले घूमना चाहिये। उन्होंने अपने एकाउंटटेंट से आने जाने और रहने के इन्तजाम के आलावा नकद भी दिलवाया। शुरुआत पांडिचेरी से हुयी जहाँ समुद्र तट पर बने अरविंदो आश्रम के गेस्ट हाउस में रुकने का इन्तजाम किया गया था।
तब पांडिचेरी का समुद्र तट पत्थरों से घिरा नहीं था और रेत पर रात बारह बजे तक लोगों का जमावड़ा लगा रहता था। पर किरण को बाहर के होटलों में बना दक्षिण भारत का खाना रास नहीं आ रहा था लिहाजा मद्रास लौट आये और शोभाकांत जी के घर का दाल भात खाकर सन्तुष्ट हुये।
कुछ वजहों से वह पत्रिका शुरू नहीं हो पायी जबकि शोभाकांत जी हर व्यवस्था करने को तैयार थे।
पिछली बार जब चेन्नई में जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन पर उन्होंने उसी गुडवान्चरी आश्रम में कार्यक्रम रखा तो प्रभाष जोशी के साथ मुझे भी बुलाया।
प्रभाष जी स्वास्थ्य की वजह से नहीं जा पाये थे। मैं भोपाल से सीधा चेन्नई पहुँचा था। शोभाकांत जी ने फिर शिकायत की कि अगर तब पत्रिका निकल जाती तो आज वह काफी आगे पहुँच सकती थी। मैंने जवाब दिया – आप ही ने मुझे बंगलूर का अखबार छोड़कर रामनाथ गोयनका के पास भेजा था जिसके बाद मैं कभी कही नहीं गया और एक्सप्रेस परिवार का ही हिस्सा बना रहा हूँ। वे निरुत्तर थे।
शोभाकांत जी उस दौर के ऐसे गाँधीवादी नेताओं में बचे है जो आज भी अपने व्यवसाय की आमदनी का बड़ा हिस्सा आम लोगों पर खर्च करते हैं। वाहिनी के किसी भी साथी की बीमारी या किसी तरह की अन्य समस्या पर वे आर्थिक मदद करते रहे हैं। चेन्नई में उनके बिहार भवन में ज्यादातर वे ही लोग रुकते हैं जो बिहार से इलाज के लिए चेन्नई आते हैं। इनमें जयप्रकाश आन्दोलन से जुड़े लोगों की संख्या ज्यादा होती है।
आज जब नूतन को कैंसर होने की जानकारी मिली तो अनिल प्रकाश से यही पूछा कि इलाज में पैसे की कोई दिक्कत तो नहीं आ रही है, जवाब था उनके घर के लोग काफी मदद कर रहे हैं और हेमन्त भी कुछ इन्तजाम किये हैं।
जयप्रकाश आन्दोलन से निकले ज्यादातर लोग आज सत्ता का सुख भोग रहे हैं पर एक बड़ी संख्या उन लोगों की है जिन्होंने अपना जीवन जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर समाज को समर्पित कर दिया। नूतन जी ऐसे ही क्रान्तिकारी महिला रही हैं जिनसे प्रेरणा लेकर हम जैसे तमाम लोग बदलाव की राजनीति से जुड़े थे। यही कामना है कि वे जल्द से जल्द स्वस्थ हों।
अंबरीश कुमार
(अम्बरीश कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं। छात्र आन्दोलन से पत्रकारिता तक के सफ़र में जन सरोकारों के लिए लड़ते रहे हैं। फिलहाल जनसत्ता के उत्तर प्रदेश ब्यूरो चीफ।)