द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आजाद हिन्द फौज के सैनिकों पर लाल किले में मुकदमा चला था। आजाद हिन्द फौज (Azad Hind Fauj)के सैनिकों का मुकदमा लड़ने के लिए स्वयं पं. जवाहर लाल नेहरू (Pt. Jawaharlal Nehru) ने काला कोट पहन कर मुकदमा लड़ा था।
मेजर जनरल शहनवाज को मुस्लिम लीग और ले. कर्नल गुरुबख्श सिंह ढिल्लन को अकाली दल ने अपनी ओर से मुकदमा लड़ने की पेशकश की, लेकिन इन देशभक्त सिपाहियों ने कांग्रेस द्वारा जो डिफेंस टीम बनाई गई थी, उसी टीम को ही अपना मुकदमा पैरवी करने की मंजूरी दी।
कांग्रेस की डिफेंस टीम में सर तेज बहादुर सप्रू के नेतृत्व में मुल्क के उस समय के कई नामी-गिरामी वकील जैसे, भूलाभाई देसाई, सर दिलीप सिंह, आसफ अली, जवाहरलाल नेहरू, बखी सर टेकचंद, कैलाशनाथ काटजू, जुगलकिशोर खन्ना, राय बहादुर बद्रीदास, पीएस सेन, रघुनंदन सरन आदि शामिल थे। ये खुद इन सेनानियों का मुकदमा लड़ने के लिए आगे आए थे। सर तेज बहादुर सप्रू की अस्वस्थता के कारण वकील भूलाभाई देसाई ने आजाद हिंद फौज के तीनों वीर सिपाहियों की संयुक्त ट्रायल्स लड़ी.
आज प. नेहरू को वो लोग खलनायक साबित करने की धूर्तता कर रहे हैं, जिनके पुरखे अंग्रेजों के साथ खड़े थे।
पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार शेष नारायण सिंह की टिप्पणी
दूसरे विश्वयुद्ध में अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस ने जीत हासिल की थी। जर्मनी, इटली और जापान की हार हुयी थी। नाजी जर्मनी और हिटलर के साथियों की अभी 10-15 साल पहले तक तलाश होती रही थी। नेताजी सुभाष की आज़ाद हिन्द फौज ने भी बर्मा में अंग्रेज़ी और अमरीकी सेना के खिलाफ जापान के मित्र के रूप में लड़ाई लड़ी थी।
जो लोग भी अमरीका और उसके मित्र राष्ट्रों के खिलाफ लड़ रहे थे, सबका कोर्ट मार्शल करके मार दिया गया था। आज़ाद हिन्द फौज के कुछ सैनिकों को 43-44 में ही कोर्ट मार्शल कर दिया गया था, लेकिन जब महात्मा गांधी जेल से बाहर आये तो नेताजी के किसी साथी को सज़ा नहीं हुई।
जनरल शाहनवाज़ खान और कर्नल प्रेम सहगल का कोर्ट मार्शल तो अंग्रेजों ने लाल किले में कर लिया था, लेकिन नेहरू ने उनको सज़ा नहीं होने दी।
कांग्रेस की डिफेंस कमेटी ने उस वक़्त के अँगरेज़ सेना प्रमुख जनरल आकिनलेक को मजबूर कर दिया कि इन सब की सज़ा को कम्यूट कर दिया जाए। जर्मनी, इटली और जापान के हर सैन्य साथी को पूरी दुनिया में घेर कर मार डाला गया था लेकिन महात्मा गांधी, नेहरु और पटेल के प्रयासों से भारत का कोई भी नागरिक 1946 के बाद मारा नहीं गया।
पराजित देशों के साथ युद्ध करने के बावजूद भी जवाहरलाल ने नेताजी सुभाष बोस के खिलाफ एक शब्द रिकार्ड में नहीं आने दिया। लाल किले के मुक़दमे में बचाव पक्ष को नेहरू की कानूनी सलाह भी उपलब्ध कराई थी।
उन लोगों की सूचना के लिए जो नेहरू को खलनायक बता रहे हैं।
शेष नारायण सिंह