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चरखा अध्यक्ष नहीं रहे

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hastakshep
16 Jun 2014

नई दिल्ली (प्रेस विज्ञप्ति) देश भर से प्रकाशित होने वाले हिंदी, उर्दू तथा अंग्रेजी समाचारपत्रों और पत्रिकाओं के साथ काम करने वाली गैर सरकारी संस्था 'चरखा डेवलपमेंट कम्युनिकेशन नेटवर्क' के अध्यक्ष शंकर घोष की बीते शनिवार मृत्यु हो गई।

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78 वर्षीय श्री घोष ने गुडगाँव स्थित कोलंबिया अस्पताल में अंतिम सांस ली। रविवार को नई दिल्ली स्थित लोधी शमशान गृह में उनका धार्मिक रीती रिवाज के साथ अंतिम संस्कार किया गया। जहाँ उन्हें मीडिया सहित अन्य संस्थाओं के गणमान्य हस्तियों ने अंतिम श्रद्धांजलि दी।

शंकर घोष की पत्नी श्रीमती विजया घोष लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड की सम्पादक हैं। परिवार में उनके अतिरिक्त बेटी इला घोष, इकलौते बेटे और चरखा के संस्थापक स्वर्गीय संजोय घोष की पत्नी और उनके दो बच्चे शामिल हैं।

शंकर घोष का जन्म पटना में हुआ था। मूलरूप से बंगाली परिवार से संबंध रखने वाले श्री घोष नेशनल फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया के पूर्व कार्यकारी निदेशक और सीईओ रह चुके हैं। अपने पुत्र और चरखा के संस्थापक संजोय घोष का असम में उल्फा उग्रवादियों द्वारा अपहरण और हत्या के बाद वर्ष 2001 में उन्होंने चरखा की अध्यक्षता संभाली थी।

ज्ञात हो कि चरखा समाज में हाशिये पर खड़े लोगों की समस्याओं को जनप्रतिनिधियों तक पहुँचाने के लिए न केवल उन्हीं की क़लम को माध्यम बनता रहा है बल्कि उन समस्याओं के हल के लिए भी प्रयासरत रहा है। जम्मू-कश्मीर, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखण्ड और उत्तराखंड जैसे राज्यों के दूर-दराज़ इलाक़ों में हुए सामाजिक परिवर्तन चरखा की प्रमुख उपलब्धियां रहीं हैं। हिंदी और अंग्रेजी फीचर सर्विस के रूप में काम शुरू करने वाली चरखा में वर्ष 2005 में शंकर घोष के मार्ग निर्देशन में उर्दू फीचर सर्विस की शुरुआत की गई। क्यूंकि श्री घोष का मानना था कि आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े देश की एक बड़ी आबादी इसी भाषा का इस्तेमाल करती है।

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