”पहले यूआर अनंतमूर्ति थे, अब एमएम कलबुर्गी हैं। हिंदुत्व का मज़ाक उड़ाओ और कुत्ते की मौत मरो। डियर, केएस भगवान अब आपकी बारी है।’’
बजरंग दल के एक प्रमुख नेता भुवित शेट्टी द्वारा किया गया यह ट्वीट है।
यह ट्वीट काफी है यह दर्शाने को कि पिछले एक साल में हमें लोकतंत्र के किस अंधे गलियारे में फेंक दिया गया है। यहां ऐसी कोई सामाजिक, राजनैतिक, न्यायिक और यहां तक कि प्रशासनिक सत्ता अब दिखायी नहीं देती जिसे आम आदमी या संविधान या न्याय के लिए उठती मांग या वैज्ञानिक सोच को बचाने की ज़रा भी फिक्र हो। तीन हत्याओं के बाद वह खुलेआम धमकी दे रहा है लेकिन उसे गिरफ्तार करने का आदेश देने वाला इस पूरी सरकार में कहीं कोई नहीं।
दो साल पहले उन लोगों ने नरेंद्र दाभोलकर की हत्या की थी और कल 30 अगस्त को उन्होंने मालेशप्पा मादिवलप्पा कलबुर्गी की हत्या घर में घुस कर कर दी और इस साल के शुरू में गोविंद पानसरे को उन्होंने गोली मारी थी। कहीं कोई रुकावट नहीं, कोई विघ्न नहीं। वे सुबह-सुबह आते हैं और मार कर चले जाते हैं। ये तीनों वामपंथी थे, तीनों अंधविश्वास को अपने लेखन और वक्तव्यों से चुनौती देते थे। हेमंत करकरे की हत्या की साजिश्ा पर भी वे बोलते थे। किसे भय लगता है ऐसी बातों से? कहने की ज़रूरत नहीं कि देश के लिए जो लोग खतरनाक थे, आज दुर्भाग्य से देश की बागडोर उन्हीं के हाथ में है।
एमएम कलबुर्गी की उम्र 77 साल थी। 150 से अधिक पुस्तकों के वे लेखक हैं। सैकड़ों की संख्या में उनके शोध कार्य हैं। कई सम्मानों से उन्हें सम्मानित किया जा चुका है। केंद्रीय व राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार से उन्हें नवाजा जा चुका है। उनके शोध और विचारों को रूढि़वादी ताकतें पसंद नहीं करती थीं। यूआर अनंतमूर्ति की तरह वे भी हिंदुत्ववादियों के निशाने पर थे। वे लगातार उन्हें धमकियां देते रहते थे, उन्होंने उन पर मुकदमा भी ठोक रखा था, उनके पुतले फूंके गये थे, उनके घर पर पत्थरों और बोतलों से हमला भी किया गया था और आज उनकी हत्या कर यही लोग खुलेआम जश्न मना रहे हैं।
हम एमएम कलबुर्गी की हत्या की कड़े से कड़े शब्दों में निंदा करते हैं और हिंदी के तमाम लेखकों, कवियों और बुद्धिजीवियों से- जो इस सांप्रदायिक फासीवाद के खिलाफ हैं- अपील करते हैं कि वे जहां कहीं भी रहते हैं वहीं अपने स्तर पर इस कुकृत्य का विरोध करें और किसी भी सूरत में सामाजिक सरोकार और सामाजिक प्रतिरोध को कमजोर न पड़ने दें। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जो यह आसन्न खतरा दिखायी दे रहा है, उसे गंभीरता से लें और डट कर उसका मुकाबला करें। जुलूस निकालें, नुक्कड़ नाटक करें, कविता पाठ करें – यानि कि हर तरह से अपने विरोध का इज़हार करें।
निवेदक – संरक्षण समिति, ’कविता: 16 मई के बाद’
(मंगलेश डबराल, आनंद स्वरूप वर्मा, पंकज बिष्ट, रविभूषण, असद ज़ैदी)
राष्ट्रीय संयोजक – रंजीत वर्मा
राष्ट्रीय सह-संयोजक – अभिषेक श्रीवास्तव
Tags कुत्ते
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