दलित महादलित कैडर तैयार करेगा संघ परिवार
मनुष्यता, सभ्यता, पृथ्वी और समूची कायनात के खिलाफ अमेरिका और इजरायल के सहयोगी ग्लोबल हिंदू साम्राज्यवाद का मनुस्मृति शासन की पैदल सेना दलितों और महादलितों को बनाने की तैयारी है।
नेपाल के महाभूकंप में हिंदू साम्राज्यवाद का विस्तरवादी एजेंडा का पर्दाफाश हो गया है। गाय की हत्या पर दस साल की जेल, लेकिन मुसलमानों और दलितों, महादलितों के हत्यारों को छुट्टा घूमने की आजादी ही लोकतंत्र है इन दिनों।
बंग विजय के बाद संघ परिवार का बिहार जीतने का शाही प्लान यह है कि संघ परिवार बिहार की जड़ों से उखाड़कर डेढ़ हजार दलित और अतिदलित कैडरों को मोदी की बहुजन कल्याणकारी नीतियों के सघन जन जागरण अभियान प्रशिक्षित करेगा।
अब संघ परिवार के जो प्रथम स्वयंसेवक संघ हैं, उनके पंद्रह लाख रुपये के सूट के हिसाब से उन्हें क्या मिलेगा या नहीं मिलेगा, इसका खुलासा लेकिन अभी नहीं हुआ है। लेकिन मोदी की बहुजन कल्याणकारी नीतियां बेपर्दा जरूर हो गयी हैं।
दलितों महादलितों की औरतें देश के कोने-कोने में बलात्कार की शिकार हैं और एफआईआर तक दर्ज नहीं होता, अपराधियों को सजा देने की बात अलग।
मध्यबिहार में नरसंहार कांडो के सारे अपराधी रिहा हैं तो बाबरी विध्वंस, सिख नरसंहार, भोपाल गैस त्रासदी, गुजरात नरसंहार से लेकर देश भर में फर्जी मुठभेड़, हिंदुत्व आतंकवाद और रंग बिरंगे दंगों के तमाम गुनाहगार फिर अपना मनुष्यताविरोधी अपराध दोहराने के लिए आजाद हैं और समरसता का अभियान संघ परिवार चला रहा है जो मुक्तबाजार हिंदू राष्ट्र में तब्दील करना चाहता है यह महादेश।
सब्सि़डी खत्म और पूंजी के लिए हरसंभव छूट। अनुसूचितों, महिलाओं, बच्चों, शिक्षा और चिकित्सा के लिए कोई बजट नहीं है लेकिन रोज रोज खैरात बांटने की स्कीम शुरु की जारी है पहले से चालू मनरेगा समेत तमाम योजनाओं को खत्म करने के लिए।
विदेशी पूंजी के लिए सारा टैक्स माफ। सारा कर्ज माफ।
करों का केंद्रीयकरण करके पुणे करार से पैदा सत्ता वर्ग जो मुक्त बाजार और कारपोरेट फंडिंग से मिलियनर बिलियनर तबका है, विदेशी पूंजी विदेशी हितों के लिए इस महादेश को सबसे बड़ा बाजार बनाने पर तुला हुआ है।
संघ परिवार का केसरिया कारपोरेट एफडीआई प्रोमोटर बिल्डर माफिया मनुस्मृति राज किसानों, मजदूरों, युवाओं, महिलाओं, बच्चों, कर्मचारियों, आदिवासियों से लेकर पिछड़ों, विधर्मी अल्पसंख्यकों, शरणार्थियों, खानाबदोश तबकों के साथ साथ दलितों और महादलितों के सत्यानाश के लिए रोज रोज कारपोरेट केसरिया मनुस्मृति राजकाज के तहत नई नई जनसंहारी नीतियां बना रहा है।
नवउदारवाद की आड़ में मनुस्मृति की संतानें बाबासाहेब के संविधान और गौतम बुद्ध के सिद्धांतों के विपरीत इस महादेश के कोने कोने में अश्वमेधी नरमेध अभियान ही नहीं चला रही है, प्राकृतिक संसाधनों के लूट खसोट के सलवा जुड़ुम और आफसा के तहत इस कायनात को खत्म करने के लिए सुनामी, सूखा, भुखमरी, अतिवृष्टि, भूस्खलन और भूकंप महाभूंकप जैसी आपदाओं का सृजन कर रही है।
मनुष्यता, सभ्यता, पृथ्वी और समूची कायनात के खिलाफ अमेरिका और इजरायल के सहयोगी ग्लोबल हिंदू साम्राज्यवाद का मनुस्मृति शासन की पैदल सेना दलितों और महादलितों को बनाने की तैयारी है।
बंगाल के केसरियाकरण का एजेंडा दीदी के सौजन्य से हुए ध्रुवीकरण से कमल-कमल खिलखिला रहा है। आसार यही है कि वाम और बहुजनों के हाशिये पर हो जाने से, कांग्रेस के साइन बोर्ड में बदल जाने से बंगाल में जलवा मोदी दीदी गठबंधन का जलवा दिखता रहेगा और वाम वापसी हो ही ना।
इस पर तुर्रा कि अस्पृश्य छोटा बंगाल जो त्रिपुरा है, उसे जीतने के लिए बंगाल के संघी नेता तथागत राय आगरतला राजभवन में तैनात किये जा रहे हैं।
मतुआ आंदोलन जो दो फाड़ हो गया था, अगले विधानसभा चुनावों में दीदी की अपराजेय चुनावी हैसियत के मद्देनजर फिर नये सिरे से एकताबद्ध है , जिसका न कभी इस देश के बहुसंख्य जनगण से पीआर ठाकुर के जमाने से कोई लेना देना है, न होगा।
केसरिया तो हो ही गया है मतुआ आंदोलन और पूर्व मंत्री मंजुल कृष्ण ठाकुर पिछले बनगांव संसदीय उपचुनाव में भाजपा उम्मीदवार अपने बेटे सुब्रत ठाकुर के साथ फिर दीदी की शरण में हैं।
जो मतुआ बहुजन नेता केसरिया हो गये थे, वे अब दीदी के साथ होंगे लेकिन केसरिया रंग अब उतरेगा नहीं।
जाहिर है कि सारी गायपट्टी को जीतने के लिए कितने हजार और दलित अतिदलित कैडर लगाये जायें, खासतौर पर बहुजनसमाज पार्टी का असर खत्म करने के लिए यूपी से लेकर पंजाब, पंजाब से लेकर मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में ऐसे दलित अतिदलित कैडरों की संख्या क्या हो सकती है, अंदाजा लगाना मुश्किल है।
दलितों अतिदलितों के सारे राम लेकिन इस बीच संघ परिवार के हनुमान बन चुके हैं। अतिदलितों का मसीहा जीतन राम मांझी को बहुजनों के नये नेता के रुप में स्थापित करने का समरसता कार्यक्रम भी धूमधाम से चल निकला है।
इसी बीच गौतम बुद्ध और अंबेडकर का नये सिरे से मूल्यांकन करके उन्हें हिंदू साम्राज्यवाद के सिपाहसालार बनाने का कार्यक्रम अलग से चल रहा है।
हम लगातार इस मुद्दें पर तमाम तथ्यों और सबूतों को पेश करके बता रहे हैं कि जिस समता, शांति, न्याय और लोककल्याणकारी अहिंसक नीतियों के पैरोकार थे गौतम बुद्ध और बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर, संघ परिवार जनमजात उसका प्रबल विरोधी रहा है।
मनुस्मृति लिखा ही गया मनुष्यता के इतिहास में पहली क्रांति को प्रतिक्रांति में बदलने के लिए। घृणा, अस्पृश्यता, बहिष्कार और नरसंहार के स्थाई बंदोबस्त के तहत जाति व्यवस्था मुकम्मल वर्ण वर्चस्वी नस्ली अर्थ व्यवस्था के मनुस्मृति शासन बतौर तब से इस महादेश के सत्तावर्ग का धर्म है और वही अब मुक्त बाजारी अर्थव्यवस्था है।
बाबासाहेब ने मनुस्मृति को न सिर्फ जला डाला बल्कि भारतीय संविधान की सीमाओं के बावजूद मनुस्मृति तंत्र के मुकाबले बहुजनों के हक हकूक बहाल किये और मनुष्यता और सभ्यता के हित में जाति उन्मूलन का एजंडा दिया, जबकि भाबासाहेब के रचे संविदान को खारिज करके पुरुषवर्चस्वी वर्णवर्चस्वी जनसंहार संस्कृति के मुक्तबाजारी मनुस्मृति शासन ही संघ परिवार का राजकाज है।
स्त्रियों को पुरुषों के बराबर संपत्ति और शिक्षा के अधिकार, वैवाहिक संबंधों के तमाम हकहकूक, कामकाज में बराबर वेतन और जीवन के हर क्षेत्र में बराबरी का दर्जा देने वाले बाबासाहेब के हिंदू कोड बिल के खिलाफ संघियों ने देशभर में उनके पुतले जलाये तो उनके दिये मेहनतकश तबके के सारे हकहकूक भी यह बिजनेस फ्रेडली सरकार छीनने में कोई कसर नहीं बाकी छोड़ रही है।
संसाधनों स समृद्ध भारत नाम की सोने की चिड़िया बेचने वाली राष्ट्रद्रोही मनुस्मृति सरकार शिशुओं को भी बंधुआ मजदूर बनाये रखने के लिए कानूनी फेरबदल केसरिया सर्वदलीय सहमति से कर रही है।
दूसरी ओर, संविधान के सारे मौलिक अधिकार खत्म किये जा रहे हैं। आर्थिक सुधारों के नाम पर विदेशी पूंजी के लिए हर दरवाजा हर खिड़की ओपन है , कृषि के साथ साथ उद्योगजगत को चूना लगाया जा रहा है और देशी कारोबार खत्म है। नागरिकअधिकार खत्म है और नागरिकों को बायोमैट्रिक जडिजिॉल क्लोन बनाया जा रहा है।
उदारीकरण, निजीकरण और ग्लोबीकरण के तहत विनिवेश, निजीकरण, विनियमन और विनियंत्रण के तहत संविधान के दिशानिर्देशों के उलट, संवैधानिक ठांचा के विपरीत बुनियादी जरुरतों और बुनियादी सेवाओं को क्रयशक्ति से जोड़कर अर्थव्यवस्था से बाहर तेजी से कर दी जा रही है इस देश की बहुसंख्य आबादी, जिसमें बहुजन सबसे ज्यादा और उनमें भी दलित और अतिदलित और ज्यादा हैं।
खुदरा कारोबार को विदेशी पूंजी के हवाले करके कृषि के बाद सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले खुदरा बाजार से भी आम जनता को खदेड़ दिया गया है।
इसके अलावा भारत के समुद्र तट, जंगल और हिमालय में जो देसी जनता है, उनकी आजीविका भी रेडियोएक्टिव परमाणु विकास के तहत उन्हें जल जंगल जमीन से संविधान के तमाम प्रावधानों, पांचवीं और छठी अनुसूचियों के खुल्लम खुल्ला उल्लंघन के तहत छिनी जा रही है।
प्रकृति और पर्यावरण से इस देश को महाभूकंप का खतरनाक महाश्मशान बनाया जा रहा है जहां केसरिया सुनामी का मतलब कयामती सुनामी है।
अब बताइये कि कब गौतम बुद्ध ने या बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर ने विधर्मियों, जिनमें बौद्ध भी शामिल हैं, के सफाये के तहत शत प्रतिशत हिंदुत्व का नारा दिया है। इसके उलट बाबासाहेब ने तो हर कीमत पर हिंदू राज को रोकने की अपील की है।
पलाश विश्वास