दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फत… मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफा आएगी
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पठानकोट और उरी के बाद अब जम्मू-कश्मीर के नगरोटा सैन्य शिविर पर आतंकियों ने हमला कर दिया, जिसमें दो मेजर सहित सात जवान शहीद हो गए।
पठानकोट और उरी के हमलों के बीच नौ माह का अंतर था, जबकि उरी और नगरोटा की घटनाओं में महज दो माह का अंतर।
समय का अंतराल कितना भी रहा हो, यह नजर आ रहा है कि हमारी सुरक्षा व्यवस्था और खुफिया तंत्र में कोई कमजोर कड़ी बढ़ रही है। तभी तीन बड़े और कई छोटे हमले हुए हैं। लेकिन हमारी सरकार अब भी न जाने किस मुगालते में जी रही है।
बयानों से तो यही लगता है कि वह आंख तरेरगी और आतंकवादी डर जाएंगे, लेकिन जनवरी से लेकर अब तक 46 जवानों की शहादत और सीमा से लगे इलाकों में आम नागरिकों की मौत यह बयां करती है कि युद्ध न होते हुए भी निरंतर युद्ध जैसा माहौल बना हुआ है, जिसे खत्म करने के लिए गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
हम श्रद्धांजलि देते हैं उन जांबाज शहीदों को जिन्होंने देश के नाम अपनी जान कुर्बान कर दी।
पाकिस्तान सरकार अपनी जमीन पर चल रहे आतंकी ठिकानों को नष्ट करने में अक्षम क्यों है ? क्या भारत के साथ संबंध बिगाड़ कर उसे कोई और लाभ हासिल हो रहा है ? भारत पाकिस्तान के बीच निरंतर तनाव का आलम है और राजनीति भी दोनों तरफ खूब हो रही है।
मंगलवार को देश जब नए नोट हासिल करने के लिए बैंकों और एटीएम के आगे लाइन में खड़ा था।
नोटबंदी के बाद कालाधन खत्म हुआ या नहीं और आतंकवाद पर इसका क्या असर पड़ रहा है, ऐसी चर्चाओं में लगा हुआ था, तब जम्मू-कश्मीर के नगरोटा में सैन्य शिविर पर सीमापार के आतंकियों ने एक और हमला कर दिया।
नगरोटा हाइवे पर सेना की 16वीं कोर का मुख्यालय है। इसी मुख्यालय के पास फिदायीन आतंकियों ने घात लगाकर सेना की टुकड़ी पर हमला किया।
सेना की वर्दी में आए आतंकी भारी मात्रा में हथियारों से लैस थे।
आतंकियों ने ऑफिसर्स मेस में घुसने की कोशिश की। आतंकी उन बिल्डिंगों में भी घुस गए थे जहां सैन्य अफसरों के परिवार रहते हैं।
आतंकियों का वीरता से मुकाबला करते हुए भारतीय सेना के दो अधिकारियों सहित सात जवान वीरगति को प्राप्त हुए।
नगरोटा के हमले के कुछ समय पहले ही सांबा के चमलियाल इलाके में भी आतंकियों ने बीएसएफ की पट्रोलिंग टीम को निशाना बनाया। …
पकिस्तान में अब सैन्य नेतृत्व बदल गया है। वहां के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भारत आये हुए हैं। ऐसे में संवाद की टूटी श्रृंखला जोड़ी जाए तो शायद आतंकवादियों के साथ निबटने की कोई नयी युक्ति भी निकले।
अभी संसद सत्र चल रहा है और इस मसले पर सभी दल विचार कर सकते हैं। लेकिन वहां भी मकसद केवल हंगामा खड़ा करना ही दिख रहा है।
गुरुवार को लोकसभा में स्पीकर ने जैसे ही प्रश्नकाल शुरू किया तो कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस एवं वामदलों ने जम्मू कश्मीर पर आतंकवादियों के हमले में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि देने की मांग की और सदन से वॉकआउट किया।
लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा, मैं हमेशा ही ऐसा करती हूं, चूंकि अभी सेना का तलाशी अभियान जारी है, ऐसे में पूरी जानकारी प्राप्त होने के बाद ही श्रद्धांजलि दी जाएगी और इसे विवाद का विषय नहीं बनाया जाना चाहिए।
सदन के बाहर राहुल गाँधी ने सरकार पर हमला बोला :- ….
यह सच है कि देश की रक्षा और शहीदों पर कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए, लेकिन जनवरी से लेकर अब तक राजनीति ही तो रही है, जिस वजह से समस्या सुलझने की जगह उलझती जा रही है। भाजपा सरकार इससे थोड़ा बहुत चुनावी लाभ शायद हासिल कर ले, लेकिन देश को इसका बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा है, यह नजर आ रहा है।
पाकिस्तान से पहले जरूरत से ज्यादा प्रेम नरेन्द्र मोदी ने दिखाने की कोशिश की और अब जरूरत से ज्यादा कड़वाहट दिखा रहे हैं।
दोस्ती और दुश्मनी के इस आवरण के पीछे का सच क्या है, यह तो मोदी जी ही जानें।
हमारे जवान रोज शहीद हो रहे हैं, घायल हो रहे हैं और सरकार केवल शौर्य भरे बयान ही दे रही है यह सच सबको नजर आ रहा है।
दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फत… मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफा आएगी
देशबन्धु समाचारपत्र समूह के समूह संपादक राजीव रंजन श्रीवास्तव का विशेष साप्ताहिक कार्यक्रम घूमता हुआ आईना