धन्यवाद वीके सिंह, मंत्री महाशय, यह सच खोलने के लिए कि हम आखिरकार कुत्ते हैं और हमें कुत्तों की मौत मार दिया जाये तो सत्ता को कोई ऐतराज नहीं है। हम यह समझा नहीं पा रहे थे।
हमीं लाल हैं। हमीं फिर नील हैं।
बाकी हिंदुत्व महागठबंधन का फासिज्म है।
अगर हम प्रभुवर्ग के गुलाम वफादार कुत्ते नहीं हैं तो अब भौंकने की बारी है। कयामत का मंजर बदलने की बारी है। कायनात की रहमतें बरकतें नियामतें बहाल करने का वक्त है।
JAGO INDIA! Kejri refuses to release MCD Funds as VK Singh Exposed the APATHY against dogged Masses!
पलाश विश्वास
धन्यवाद वीके सिंह, मंत्री महाशय, यह सच खोलने के लिए कि हम आखिरकार कुत्ते हैं और हमें कुत्तों की मौत मार दिया जाये तो सत्ता को कोई ऐतराज नहीं है। हम यह समझा नहीं पा रहे थे।
इस वीडियो में हमने ग्राम बांग्ला के कवि जसीमुद्दीन की कविता के विश्लेषण बांग्लादेशी आलोचक अबू हेना मुस्तफा कमाल की जुबानी पेश की है। इसमें बांग्ला कविता से ग्राम बांग्ला के बहिष्कार और साहित्य संस्कृति के नगरकेंद्रित बन जाने की कथा है।
1793 में स्थाई भूमि बंदोबस्त कानून के तहत जो जमींदार वर्ग पैदा हुआ और1835 में भाषा विप्लव के तहत जो हिंदू मध्यवर्ग पैदा हुआ, उसके अवसान के गर्भ में पैदा हुआ हिंदुत्व का महागठबंधन और उन्हीं के स्वराज आंदोलन में शामिल होने से इंकार कर दिया महात्मा ज्योतिबा फूले और बंगाल में अस्पृश्यता मोचन के चंडाल आंदोलन के नेता गुरु चांद ठाकुर ने क्योंकि उन्हें मालूम था कि मनुस्मृति शासन में आखिरकार हम कुत्ते बनकर जियेंगे और मरेंगे भी कुत्तों की तरह।
हमने फिर सामाजिक यथार्थ के सौंदर्यसास्त्र की चर्चा की है और नवारुण भट्टाचार्य के उपन्यास कांगाल मालसाठ के छठें अध्याय के एक अंश का पाठ किया है, जो अछूतों और सर्वहारा वर्ग की मोर्चाबंदी के बारे में हैं।
जागो भारत तीर्थ। सच कहा है वीके सिंह ने। गुस्सा न करें और सोचें कि कैसे हम इतिहास, भूगोल, विरासत से बेदखल प्रभु के गुण गाते हुए दाल रोटी से भी बेदखल हैं और कुत्तों की मौत मारे जा जा रहे हैं। हमारी स्त्रियां बलात्कार की शिकार हैं और हमारे बच्चे बंधुआ मजदूर हैं। हर जरूरत सेवा और इंसानियत से भी बेदखल। यह जागरण का वक्त है।
इस फासिज्म के मुकाबले इंसानियत के भूगोल में गौतम बुद्ध के पंचशील के पुनरुत्थानकी जरुरत है। हमीं लाल हैं। हमीं फिर नील हैं। बाकी हिंदुत्व का महागठबंधन का फासिज्म है। अगर हम प्रभुवर्ग के गुलाम वफादार कुत्ते नहीं हैं तो अब भौंकने की बारी है। कयामत का मंजर बदलने की बारी है। कायनात की रहमतें बरकतें नियामतें बहाल करने का वक्त है।
कुत्तों की मौत नहीं चाहिए तो इंसान बनकर दिखाइये। इस वोट बैंक में तब्दील बहुजन समाज को अब पहचान, अस्मिता, जाति , धर्म , नस्ल के तमाम दायरे तोड़कर एकी फीसद सत्तावर्ग के खिलाप निनानब्वे फीसद के जागरण का यही सही समय है। इस मनुस्मृति शासन के खिलाफ रीढ़ सीधी करके खड़ा होने का वक्त है। तभी राजनीति, राजनय और अर्थव्यवस्था पटरी है।
दलितों के सारे राम अब हनुमान हैं और खामोश हैं।
बाबा साहेब के नाम दुकानें जो चला रहे हैं, वे सारे लोग खामोश हैं।
हमारे सांसद, मंत्री, विधायक वगैरह-वगैरह खामोश हैं और हम कुत्तों की जिंदगी जीते हुए कुत्तों की मौत मर रहे हैं।
दिल्ली में जब सफाई कर्मियों की सुनवाई नहीं है। तो समझ लीजिये कि यह संसद और यह केंद्र सरकार, राज्य सरकारें, सांसद विधायक किसके लिए हैं। समझ लीजिये, फिर कश्मीर, मणिपुर और पूर्वोत्तर, मध्यभारत में लोकतंत्र का किस्सा, कानून के राज का माहौल कैसे नरसंहार, सलवा जुड़ुम और आफस्पा है
दिल्ली में शरणार्थियों की रैली होगी नवंबर में और देश के कोने कोने से लोग आयेंगे। असुरक्षा बोध की वजह से मुसलमानों की तरह सत्ता वर्ग के संरक्षण के बिना वे जी नहीं सकते और वे मोबाइल वोट बैंक हैं। दिल्ली में भाजपा और आरएसएस के नेता मंच पर होंगे। हम वहां हो ही नहीं सकते, लेकिन हम अपने लोगों की हर लड़ाई में शामिल हैं और रहेंगे।