Advertisment

बहुत दूर से आये हैं तेरे दर पे सवाली

author-image
hastakshep
18 Aug 2011
बहुत दूर से आये हैं तेरे दर पे सवाली

Advertisment

ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती गरीब नवाज (Chishtī Muʿīn al-Dīn Ḥasan Sijzī, known more commonly as Muʿīn al-Dīn Chishtī or Moinuddin Chishti or Khwājā Ghareeb Nawaz, or reverently as a Shaykh Muʿīn al-Dīn or Muʿīn al-Dīn or Khwājā Muʿīn al-Dīn) के रहमों करम से अजमेर को दुनिया में अजमेर शरीफ के नाम से जाना जाता है, और दुनिया का कोई भी मुल्क हो, वहां का बाशिंदा इस सूफी संत की मजार पर अपनी अकीदत पेश करने के लिए लालायित रहता है।

Advertisment

इस्लामी कलेंडर के सातवें माह रजब की पहली से 6 तारीख तक तो कोई भी व्यक्ति ख्वाजा साहब के सालाना उर्स के मुबारक मौके पर अपनी हाजरी देने की तमन्ना रखता है।

Advertisment

ख्वाजा साहब के दरबार में हाजरी देने के लिए कई जायरीन तो सैंकडों मील चलकर आते है। कई हिन्दू मुस्लिम कव्वाल हिन्दी, उर्दू, ब्रज भाषा में ख्वाजा साहब की शान में कव्वालियां पेश कर अपनी हाजरी देते है।

Advertisment

ख्वाजा की शान में देश के मशहूर व चुनिंदा कव्वालों ने अपने-अपने जज्बात कव्वाली के माध्यम से बहुत ही खूबसूरत तरीके से पेश किए हैं। चूंकि ख्वाजा साहब कव्वाली को आध्यात्म का हिस्सा मानते थे इसीलिए उनकी चौखट पर हाजरी देने वाले कव्वालों की भी भीड रहती है।

Advertisment

अजमेर के ही एक मशहूर कव्वाल बब्बन , दीवान कव्वाली में अपने जज्बात यूं पेश करते हैं -

Advertisment

चलो अजमेर में मंगतों की सुनी जाती है

Advertisment

अजमेर स्थित ख्वाजा साहब की दरगाह मुस्लिम समुदाय ही नही बल्कि हिन्दू, सिख, ईसाई, फारसी आदि सभी वर्ग के लोगों के लिए आस्था का तीर्थ स्थल है। यह कौमी एकता का सदा बहार चश्मा है जिसके आंचल से इंसानियत, मुहब्बत व एकता का पानी बहता है। इसी चौखट पर अमीर, गरीब, फकीर एक साथ सजदा करते हैं और उर्स के दौरान तो इस चौखट पर जायरीनों का तांता लगा रहता है।

इस साल चांद दिखाई देने पर ख्वाजा साहब का 799 वां सालाना उर्स 3 जून से प्रारंभ हुआ है। रजब की पहली से 6 तारीख तक रोजाना दरगाह के महफिल खाने में रात को दरगाह दीवान सज्जादा नशीन सैयद जैनुअल आबेदीन की सदारत में महफिलों का कार्यक्रम होता है। महफिल खाने में तो एक से छह रजब तक हाजरी देकर कव्वाली पेश करना कव्वाल अपनी शान समझते है।

इसमें दरगाह की पहली चौकी के कव्वाल सहित अन्य मशहूर कव्वाल ख्वाजा साहब की शान में कव्वालियां पेश करते है। इसमें दरगाह की पहली चौकी के कव्वाल असरार हुसैन कवि अमीर खुसरों का ब्रज भाषा में यह गीत प्रस्तुत करते हैं (ameer khusrow chhap tilak sab chheeni re mose naina milay ke)-

छाप तिलक सब छीनी रे सैयंयां ने मौसे नयना मिलायके

ख्वाजा साहब के दरबार में हाजरी देने वाले कव्वालों का तांता लगा रहता है। कुल की रस्म पर भी दरगाह की शाही चौकी के कव्वाल ब््राज भाषा में ही यह गीत प्रस्तुत करते है-

हरियाला बन्ना आया मोरा ख्वाजा बन्ना आया.....

साभार - 100 fiower

Advertisment
Advertisment
Subscribe