हम अंबेडकरी आंदोलन की मौजूदा दशा और दिशा पर संवाद की आवश्यकता महसूस करते हैं और हमारा न काहू से बैर है और न काहू से दोस्ती। मित्रों, खासतौर पर बामसेफ के विभिन्ऩ धड़ों के नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों समेत बहुजन बांधवों देश भर से आपकी प्रतिक्रियाओं के मद्देनजर मुझे अभूतपूर्व कदम के तहत अपना यह रोजनामचा नये सिरे से पोस्ट करना पड़ रहा है।
हमने गजानन माधव मुक्तिबोध की कविता से जो छत्तीसगढ़ के मशहूर रंगकर्मी निसार अली ने शेयर की थी, अपना बात शुरु की थी। बिकते हुए इसी कविता का शार्षक है।
बामसेफ या अंबेडकरी आंदोलन बिकाउ है, ऐसा मेरा आशय नहीं है। हालांकि नेताओं से हमारे लोगों को अनेक किस्म की शिकायत है।
हम अंबेडकरी आंदोलन की मौजूदा दशा और दिशा पर संवाद की आवश्यकता महसूस करते हैं और हमारा न काहू से बैर है और न काहू से दोस्ती।
इसी बीच जिन अमित खंडेकर जी के फेसबुक पोस्ट के आधार पर यह रोजनामचा बना, उनने मेरे ब्लाग पर लिख दियाः
मा पलास विश्वास सर मै २०१२ से किसी भी संघटन का फुल टायमर या सभासद नाही हु मै फेसबुक पर जो भी टिपणी दि है वह मेरा व्यक्तिगत विचार है किसी संघटन का नही अगर आपको कोई बात समाज नाही आई तो आप मुझे खुलकर पुच सकते है आप अपना अंधाजा लगायेंगे तो वह गलत भी होसाक्ता है और उसासे कन्फ़ुजन पैदा हो सक्त है जो हम सभ नाही चाहते…..
इस पर एक प्रतिक्रिया यह भी हैः
Shanker Kumar
THERE IS NOT ANY HABIT OF FUNDING IN OUR SOCIETY. MESHRAM’S FUNDING IS A MATTER OF SURPRISE OR CONSPIRACY. EXPELLING CADRES FROM THE ORGANIZATION AFTER DEMANDING ACCOUNT OF AMOUNT, SHOWS THAT THERE IS SOMETHING WRONG.
अब सवाल यह है कि निजी हैसियत से उन्हें यह सर्वे कराने की क्यों जरुरत महसूस हुई और नाथूराम गोडसे के महिमामंडन के हमारे विरोध पर वे गांधी का हश्र क्यों याद दिलाते रहे हैं।
इस पर ताज्जुब यह कि वे संगठन में न होने का दावा करते हुए मूलनिवाली प्रकाशन के कंप्यूटरों के मध्यहेडफोन लगाये यह संवाद क्यों चला रहे हैं।
निजी हैसियत से हो या संगठन के इशारे पर या और किसी मंसा से बामसेफ के अध्यक्ष पद के लिए चार दावेदारों के नाम सामने आ चुके हैं तो हम अपने पुरातन अध्यक्ष के ताजा स्टेटस के बारे में जानना चाहें तो इसमें गलत क्या है।
एक गलती इस पोस्ट में बहरहाल यह हुई है कि बिहार के साथी शिवाजी राय तारा राम मेहना के बामसेफ के अध्यक्ष हैं, न कि बोरकर बामसेफ के, जैसा इस पोस्ट में लिखा है। बोरकर साहेब हमें खूब जानते हैं और हम लगातार मानते और लिखते भी रहे हैं कि वे बामसेफ के अपने धड़े को लोकतांत्रिक तरीके से चला रहे हैं। इस स्पष्टीकरण के बाद बोरकर बामसेफ अपना गुस्सा थूक दें, यह निवेदन है।
कल भोर तड़के साढ़े चार बजे के करीब गया से किसी साथी ने फोन करके इस गलती की ओर ध्यान दिलाते हुए दावा किया है कि असली बामसेफ उन्हीं का है और बाकी नकली बामसेफ हैं।
अब इतने सारे बामसेफ हैं, बसपा का एक शैडो बामसेफ भी है, हमारे जैसे बूढ़े हो रहे आदमी के लिए अलग-अलग धड़े को बामसेफ और रिपब्लिकन अध्यक्षों का नाम ठीक से याद करने में गड़बड़ी हो जाती है।
बहरहाल यह संशोधन जरुरी है, इसलिए यह पोस्ट रिपोस्ट कर रहा हूं।
आप इस बहस को चलाना चाहते हैं, तो बाद में आपके सारे सवालों को हम सामने लाते रहेंगे।जिनके गुलशन का कारोबार है, वे चलाते रहे बहरहाल, हमें पेट दर्द नहीं होने वाला है क्योंकि हमारी अपनी कोई दुकान नहीं है। लेकिन बहुजन समाज के नाम पर पोंजी कारोबार का तो हम लोग पर्दाफाश जो करेंगे सो करेंगे, घोटाले के तंत्र को तहस-नहस करने से हिचकेंगे भी नहीं। न बहुजनों का पैसा लेकर किसी को हम विदेश उदेस भागने देंगे।
अब मुश्किल यह है कि एक ही रजिस्टर्ड संख्या के साथ एक ही नाम के कितने संगठन हो सकते हैं और उनके कितने अध्यक्ष हो सकते हैं, और उनके कौन असली अध्यक्ष है, इसका हिसाब रखना मुश्किल है।
फिर इनकी वित्तीय गतिविधियां देश के आईन कानून से ऊपर हैं।
आडिट वगैरह लोग कैसे मैनेज करते हैं, हमें मालूम नहीं है।
आरबीआई, सैबी या सोसाइटी पंजीकरण संस्था के भी नहीं मालूम कि कैसे क्या फर्जीवाड़ा है। सारे लोगों के आरोप एक दूसरे के खिलाफ हैं।
देशभर के कार्यकर्ता समर्थक चाहते रहे हैं कि बाबासाहेब का मिशन एकच हो, लेकिन कोई राजी नहीं है।
हम इस सर फुटोव्वल से जाहिर है अलग हो चुके हैं।
बामसेफ नाम इतना बदनाम हो गया है कि इसके साथ हम नत्थी नहीं होंगे, ऐसा भी फैसला हम कर चुके हैं।
हम चूंकि मौजूदा चुनौतियों को बहुजन जनता के चौतरफा सत्तानाश की कयामत मानते हैं और तोड़ने के बजाय जोड़ने में यकीन रखते हैं, हमारा फोकस गोलबंदी पर रहेगा, दावों और प्रतिदावों पर नहीं।
हम अंबेडकरी विचारधारा और आंदोलन की प्रासंगिकता बनाये भी रखना चाहते हैं और चाहते हैं कि जैसे अंग्रेजों के मुकाबले तमाम विचारधाराओं के लोग जनता के मोर्चे में शामिल एकजुट होकर आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे, वैसे ही बहुजनों समेत देश की बहुसंख्य आम जनता के हक हकूक के खिलाफ जनता का कोई मोर्चा बने।
इसी कारण हम तमाम विचारधाराओं के लोगों को अस्मिताओं, पहचान और भूगोल के आर पार गोलबंद करना चाहते हैं।
बाबासाहेब के बाद हमारा कोई मसीहा हुआ नहीं है। फर्जी मसीहावृंद हमें जैसे उल्लू बनाते रहे हैं, हम कोई नया मसीहा का निर्माण भी नहीं करना चाहते हैं।
फंडिंग का जो कारोबार है, देश विदेश जो निवेश है, उसमें भी हमारी दिलचस्पी नहीं है।
न हमारी दिलचस्पी किसी के चरित्रहनन या सत्ता की राजनीति में हैं।
बाकी जो रंग बिरंगे आरोप हैं, फंडिंग घोटाला, आम समर्थकों के विश्वास भंग का आरोप, फर्जीवाड़ा, जेश विदेश में चल अचल संपत्ति का मामला, अलग अलग जगह खासमखास लोगों के बंगले बांधने का मामला है तो आप चाहे तो अदालत का दरवाजा खटखटायें या सीबीआई की जांच की मांग करें या सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल करें, विदेश बागने से रोकने की गरज से पासपोर्ट जब्त करने के लिए भारत सरकार से आवेदन करें, जो महिलाए बामसेफ बापू के आश्रम में निरंतर यौन शोषण और बलात्कार की शिकार हैं, वे एफआईआर दर्ज करें, आपबीती पर किताबें आ चुकी हैं और आगे और आयेंगी, इन सबसे हमारा कोई नाता वात है नहीं।
जैसा कि आरोप है कि हम लोग चुप रहे हैं, मेरा अब तक का लिखा पढ़ लें किसी भी भाषा में, जनता के मुद्दों पर हम खामोश कभी नहीं रहे हैं। बाकी किसी संगठन के अंदरुनी मामलों में हमारा दखल नहीं है और न किसी रस्साकसी में हम शामिल हैं।
हमारी फिक्र तो बस यही है कि हमारे लोग जो वधस्थल पर कतारबद्ध हैं, उनको बचाने की लड़ाई हम कैसे शुरु करें।
चूंकि हम बाबासाहेब के अनुयायी हैं तो हमारा निवेदन बस इतना है कि इस कत्लेआम के खिलाफ बहुजनों की गोलबंदी के लिए आप जो हुक्म करें, वह सरमत्थे हैं। आप हमें खुलकर लिखे, आपके विचारों का स्वागत है और हमारे ब्लागों के दरवज्जे और खिड़कियां आपके इंतजार में हैं।
हम चाहते हैं कि संवाद जारी रहे, जो हमें खूब गरियाना चाहते हैं, वे हमें जी भर कर गरियाय लें। लेकिन भारतवर्ष और भारतीय जनता, उसके संसाधनों और भारतीय बहुजनों के हित में मनुस्मृति कारपोरेट केसरिया राज के खिलाफ हमारी गोलबंदी कैसी हो और इस सिलसिले में अंबेडकरी आंदोलन सत्ता में निष्णात हो जाने के बजया मेहमनतकश जनता की आवाज कैसे बने.यह हमारा मुख्य उद्देश्य है।
हम तमाम चेतावनियों के बावजूद अपने इस बयान पर कायम हैं कि इस देश में राजनीति बेनकाब बेवफा है चूंकि तो साम्राज्यवादविरोधी आवाम का मोर्चा अनिवार्य है।
बाकी रोजनामचा जो लिख था जस की तस है, उसे सही तथ्यों के आलोक में नये सिरे से सुधारते हुए पढ़ लें।
चूंकि हम विद्वान भी नहीं हैं, भाषाई कला कौसल से जनमजात अछूत हैं तो वर्तनी उर्तनी में जो गलती हुई गइलन, ऊ आप विद्वतजन सुधारकर पढ़ लें तो आभारी रहुंगा।
पलाश विश्वास