सुनील कुमार
हम सभी बचपन से पढ़ते/सुनते आए हैं कि ‘जल ही जीवन है। जल जिसको हम सभी आम भाषा में पानी कहते हैं। पानी को लेकर बोलीविया में क्रांति हुई तो भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री बाजपेयी ने कहा कि तृतीय विश्व युद्ध पानी को लेकर होगा। दक्षिण अफ्रीका, कोलम्बिया में पानी के लिए सफल संघर्ष हुए हैं। इटली में जून 2011 में पानी के निजीकरण को जनमत संग्रह के द्वारा खरिज कर दिया गया। भारत के छत्तीसगढ़ में ‘श्योनाथ नदी’ को ही बेच दिया गया। जनता के विरोध के कारण सरकार को फैसला वापस लेना पड़ा। म.प्र. में महिलाओं ने पानी के लिए 40 दिन सामूहिक श्रमदान करके चट्टानों को तोड़कर पानी निकाला। दिल्ली जैसे शहरों में पानी के लिए लोग आपस में लड़ कर तो कभी टैंकर के नीचे कुचलकर मर जाते हैं। जिस इलाके में पानी सप्लाई आता भी है वह इतना स्वच्छ होता है कि पीलिया जैसी बीमारियां होती रहती हैं!
दिल्ली सरकार ने पानी के निजीकरण की प्रक्रिया 2005 में शुरू कर दी थी लेकिन विरोध के कारण उसने निजीकरण की प्रक्रिया को एक-एक करके लागू करना शूरू किया। बाद में पीपीपी (पब्लिक प्राइबेट पार्टनरशीप) मॉडल के तहत दिल्ली के तीन इलाके मालवीय नगर, बसंत बिहार, नागलोई में पायलेट प्रोजेक्ट चलाया। ‘वाटर डेमोक्रेसी एण्ड वाटर वर्कर्स एलाइंस ग्रुप’ नागलोई प्लांट में 4,000 करोड़ रु. घोटला होने का अनुमान लगाया है। सोनिया विहार के भागीरथी वॉटर ट्रीटमेंट प्लान्ट में 200 करोड़ का घोटला पकड़ा गया है। पानी जो कि प्रकृति से निःशुल्क मिलता है और जीवन के लिए जरूरी है मुनाफे का एक साधन बन गया है। इसमें बहुराष्ट्रीय कम्पनियां भारी मुनाफा कमा रही हैं जिसका एक हिस्सा मंत्री व नौकरशाहों की जेबों में भी जा रहा है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रति व्यक्ति को 120 लीटर पानी प्रतिदिन मिलना चाहिए, जबकि दिल्ली जल बोर्ड का दावा है कि वह दिल्ली की जनता को 225 लीटर प्रति व्यक्ति, प्रतिदिन पानी देने में सक्षम है। इसी आधार पर वह पीपीपी मॉडल के द्वारा 24 × 7 पानी पहुंचाने का भी दावा करता है। दिल्ली के अन्दर रइसों के ईलाकों में प्रति व्यक्ति 450 लीटर पानी प्रतिदिन मिलता है, जबकि इस शहर के आधी आबादी को प्रतिदिन 50 लीटर प्रति व्यक्ति ही पानी मिलता है तो कुछ इलाकों में उससे भी कम मिलता है। दिल्ली के कुछ इलाकों में पाईपलाईन भी नहीं बिछी है, कहीं बिछी है तो उसमें पानी भी नहीं आता है और उनको निजी टैंकरों पर निर्भर रहना पड़ता है या कई किलोमीटर दूर जाकर एक-दो गैलन पानी ला पाते हैं। जब इस क्षेत्र के लोग पानी की मांग करते हैं तो प्रशासन द्वारा अनसुनी कर दी जाती है और धरना-प्रदर्शन करने पर पुलिस के द्वारा बर्बर तरीके से हमले किये जाते हैं, झूठे केसों में फंसाया जाता है। ऐसी ही एक घटना पूर्वी दिल्ली के झिलमिल इलाके में हुई है।
झिलमिल इलाके में 30-35 साल पुराने अम्बेडकर कैम्प, सोनिया कैम्प, राजीव कैम्प हैं, इन तीनों कैम्पों में करीब 6000 परिवार रहते हैं। इन बस्तियों में दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले पानी सप्लाई आया करता था। उस समय इन बस्तियों के सप्लाई पास के विवेक विहार जैसी कालोनियों के साथ ही जुड़ा था। दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद इन बस्तियों में पानी आना बंद हो गया, क्योंकि इनके इलाके के पानी सप्लाई को विवेक विहार जैसी कालोनियों से अलग कर दिया गया। इन बस्तियों के लोग कई बार दिल्ली जल बोर्ड ऑफिस, विधायक, निगम पार्षद के पास गये लेकिन इनको झूठा आश्वासन ही मिलता रहा उनकी कॉलोनी में पानी नहीं आया। लोग दूर-दूर से पानी लाकर काम चलाते रहे। जब दिल्ली की तापमान बढ़ने लगा तो दूसरे इलाकों में भी पानी का संकट होने लगा और 44-45 डिग्री तापमान में बाहर निकल कर पानी लाना भी मुश्किल काम हो गया। तीनों बस्ती के लोग एकजुट हुए और 19 मई को चिंता मणि चौक, जीटी. रोड पर ‘जल ही जीवन है’ के लिए जाम लगा दिया। लोगों की भारी संख्या को देखते हुए अलग-अलग पार्टी के छुट भैय्या नेता भी पहुंच गये। यह खबर जब निगम पार्षद ‘बहन प्रीति’ के पास पहुंची तो वह भी चिंता मणि चौक पहुंची। वह अन्य पार्टी के नेताओं को देखकर पुलिस वालों से कुछ बात करके चली गईं (प्रीति का भाई इस क्षेत्र से भाजपा विधायक हैं, जबकि प्रीति आप पार्टी से जुड़ी हुई हैं)। उनके जाते ही पुलिस वाले बस्ती वालों पर टूट पड़े, उन्होंने बच्चों और महिलाओं को भी पीटा। बस्ती वालों ने पुलिस के इस रवैया का प्रतिरोध किया जिससे पुलिस की गाड़ी क्षतिग्रस्त हो गई। पुलिस वालों ने इस प्रतिरोध को नाक का सवाल बना लिया और बस्ती में धड़-पकड़ शुरू हो गई और लोगों को थाने में लाकर बुरी तरह पीटा गया।
सोनिया कैम्प में रहने वाले केशव के पैरों-हाथों में पुलिस की पिटाई का जख्म है। केशव अपनी जनरल स्टोर की दुकान पर थे तो पुलिस आशीफ अली आया और उनको ले गया कि चलो थाने में फोटो पहचान करना है। केशव को थाने ले जाकार बुरी तरह पीटा गया। 22 मई को वह 5000 रु. खर्च करके जमानत पर छूट कर घर आया, पुलिस ने उसके दो मोबाईल फोन को भी तोड़ दिया। पानी सप्लाई बंद होने के बादॉ से वो दिलशाद गार्डन से पीने के लिए पानी लाते हैं। नहाने, कपड़े धोने के लिए 20-22 लोगों ने मिलकर सम्बरसिवल लगा रखे हैं।
इस बस्ती की रहने वाली रोशन तारा बताती हैं कि जब पानी आना बंद हो गया तो पीने का पानी उनका बेटा सुंदर नगरी से लाता है और घर के काम के लिए उन्होंने सम्बरसिवल लगाया जिसके लिए पुलिस वालों को 3000 रु. देने पड़े।
फूल सिंह राजीव कैम्प में 5-7 साल से चाय की दुकान चलाते हैं पुलिस उनको दुकान से पकड़ कर ले गयी और उनकी पिटाई की जिससे उनका सिर फट गया और वह 5000 रु. खर्च करके जमानत पर 22 मई को जेल से बाहर आये।
सोनिया कैम्प का बालकिशन जो बारहवीं का छात्र है। घटना के दिन वह डॉ. के पास गया था बुखार की दवा लेने के लिए उसको भी पुलिस आई और पकड़ कर ले गई। बाल किशन के पिता रामू बताते हैं कि ‘‘राजेश पुलिस वाला आया और उसका स्कूल सर्टिफिकेट मांग कर ले गया कि उसकी उम्र कम है छुड़वा देंगे लेकिन उसको जेल भेज दिया और अभी तक (25 मई, 2014) उसका सार्टिफिकेट भी नहीं लौटाया और वह अभी भी जेल में है।’’
आजाद निर्माण मजदूर है उस दिन बुखार होने के कारण वह काम पर नहीं गया था। वह दवा लेने के लिए डॉ के पास गया था जहां से पुलिस उसे बालकिशन के साथ पकड़ कर ले गयी। मनीष और लालू को पुलिस ने रास्ते से पकड़ लिया जो कि लोनी व संबोली में रहते हैं जिनका इन बस्तियों से कोई सम्पर्क भी नहीं है। यह दोनों जेल में हैं। इसी तरह अभी भी कालीचरण, अनवर व सोविन्दर जेल में बंद है। कई लोगों के ऊपर ‘अनाम’ के नाम से एफआईआर दर्ज है जिसको पुलिस बोलती है कि हम वीडियो से उसकी पहचान करेंगे। इस तरह अभी भी इन बस्ती के लोग दहशत में जी रहे हैं कि पुलिस कभी भी किसी को पकड़ कर ले जा सकती है।
इस सारे घटनाक्रम के बाद नगर निगम पार्षद प्रीति ने एक पर्चा इन बस्तियों में वितरण किया। इस पर्चे का विवरण इस प्रकार है ‘‘आपकी बहन प्रीति भी एक बार इसी प्रकार के प्रदर्शन की शिकार होकर हवालात में रही और दस वर्ष तक केस चला।…. कुछ शैतान लोगों ने सरकारी सम्पत्ति का नुकसान किया, जिससे पुलिस ने हमारे निर्दोष साथियों को शिकार बनाया।’’ यह एक जनप्रतिनिधि के पर्चे की भाषा है जो कि अपने अधिकारों की मांग कर रही जनता को हतोत्साहित करती है।
दिल्ली जल बोर्ड का दावा है कि उसके पास प्रति व्यक्ति 225 लीटर पानी प्रतिदिन उपलब्ध है तो इन बस्ती वालों को पानी क्यों नहीं दिया जा रहा है? रईस ईलाकों में 450 लीटर प्रति व्यक्ति पानी और आधी आबादी को 50 लीटर प्रतिव्यक्ति पानी क्यों? प्रकृति से मुफ्त में मिले पानी का व्यापार क्यों किया जा रहा है? पानी मफियाओं पर जल बोर्ड कार्रवाई क्यों नही कर रहा है? मॉडल टाऊन पुलिस स्टेशन रोड की दूसरी तरफ 100 मीटर की दूरी पर (शक्ति इन्टरप्राइजेज) पानी का बड़े स्तर पर कारोबार होता है, जहां से पुलिस की गाड़ियां भी केन में पानी लेकर जाती हैं। क्या यह जलबोर्ड और पुलिस की सांठ-गांठ नहीं है? क्या इस सांठ-गांठ का मूल्य इन बस्ती वालों को प्यासा रहकर चुकाना पड़ेगा?
नोट: यह लेख 25 मई, 2014 के बातचीत पर आधारित है।
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