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प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी का लाल किले से तीसरा भाषण हो गया।
लाल किले से दिए गए प्रधानमंत्री के भाषणों का ऐतिहासिक महत्त्व रहता रहा है।
आज़ादी के बाद से कुछ भाषण ऐसे हैं जो देश की नीति निर्धारण के इतिहास में अमर हो चुके हैं। जवाहरलाल नेहरू के सत्रह भाषण भारत ही नहीं दुनिया की बेहतरीन विरासत हैं। उनके बाद लाल बहादुर शास्त्री का 1965 का लाल किले की प्राचीर से दिया गया भाषण उस समय के हर भारतीय की मनोदशा को साफ़ व्यक्त करता था।
पाकिस्तान में एक फौजी फील्ड मार्शल अयूब का राज था और उसको श्रीनगर समेत पूरे कश्मीर को हड़प लेने की जल्दी थी। उसने बड़े पैमाने पर जम्मू-कश्मीर में घुसपैठ करा दिया था।
पाकिस्तान की सरकार को बार-बार चेताया जा रहा था कि इस तरह के खतरे से खेलना बंद कर दे लेकिन फौजी तानाशाह को मुगालता था कि वह भारत के "धोती परशादों" को लड़ाई में हरा देगा। इसलिए घुसपैठ का सिलसिला जारी था।
प्रधानमंत्री शास्त्री ने अपने लाल किले के भाषण में पाकिस्तान को भी आगाह किया और पूरे देश को भी संकेत दिया कि पड़ोसी की जिद के कारण हालात ठीक नहीं हैं।
जानकार बताते हैं कि शास्त्री जी के 15 अगस्त 1965 के भाषण में एक ऐसे शांतिप्रिय आदमी के दृढ़ निश्चय की आवाज़ साफ़ नज़र आ रही थी जो युद्ध के तो खिलाफ था, लेकिन अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जाने के लिए तैयार था।
सब जानते हैं कि उसके कुछ दिन बाद ही भारत ने पाकिस्तान की तरफ से थोपे गए युद्ध का मुंहतोड़ जवाब दिया और फील्ड मार्शल अयूब को पाकिस्तान की सत्ता से हाथ धोना पड़ा।
पी. वी. नरसिम्हा राव का आर्थिक उदारीकरण के बाद दिया गया भाषण (PV Narasimha Rao's speech after economic liberalization) भी हमेशा नीति निर्धारण के बारे में सरकारी मंशा के संकल्प का एक अहम उदाहरण है।
इसी कड़ी में जब सत्ता हासिल करने के करीब ढाई महीने बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से अपना पहला भाषण दिया तो दुनिया भर में सांस खींच कर उनकी बात को सुना गया।
पीएम नरेंद्र मोदी के 2014 के भाषण में प्रमुख बातें (Key points in PM Narendra Modi's 2014 speech)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 के भाषण में जो प्रमुख बातें कही गयी थीं, अगर उनको लागू किया जा सका होता तो देश की आर्थिक और सामाजिक तस्वीर में क्रांतिकारी बदलाव आ गया होता।
इसी भाषण में प्रधानमंत्री जनधन योजना की बात की गयी थी।
देश के गरीब से गरीब आदमी को बैंक खाता खोलने का अभियान चलाया गया। तय यह किया गया कि जो कुछ भी सब्सिडी, पेंशन, आर्थिक सहायता आदि गरीबी रेखा के नीचे वालों को दिया जाना है, वह इसी खाते के ज़रिये किया जाएगा।
खाते तो खुल गए हैं किन्तु करीब आधे बैंक खाते ऐसे हैं जिनमें एक पैसा भी नहीं जमा हुआ है। इसके अलावा हर सांसद को एक गाँव गोद लेने की बात की गयी थी।
प्रधानमंत्री जनधन योजना भी सफल नहीं है।
कुछ सांसदों को छोड़ दिया जाए तो बाकी गोद लिए हुए गाँवों में तो हालात जस के तस हैं।
प्रधानमंत्री ने ग्रामीण क्षेत्र के स्कूलों में लड़कों और लड़कियों के लिए अलग शौचालय बनाए जाने की बात की थी। सरकारी कागजों की मानें तो यह शौचालय बन चुके हैं लेकिन ज़मीनी सच्चाई यह है कि यह काम कागजों पर ही हुआ है।
2014 के भाषण में प्रधानमंत्री ने औद्योगिक विकास को ज़बरदस्त तेज़ी देने के लिए मेक इन इंडिया (Make in India) कार्यक्रम की घोषणा की थी और यह वायदा किया था कि देश में बड़े पैमाने पर कल कारखानों में काम शुरू हो जाएगा, विदेशी कम्पनियां धन लगायेंगीं और औद्योगिक प्रगति को पंख लग जाएगा। इसके बाद करोड़ों नौजवानों को रोज़गार मिलेगा।
सच्चाई यह है कि अभी ऐसा कुछ नहीं हो रहा है। केवल एक स्किल डेवलपमेंट (skill development) नाम का अलग मंत्रालय बना दिया गया है जो लगभग हर महीने ही दावा कर रहा है कि सारी स्थिति संभाल ली गयी है।
देश में जब तक संघर्ष के हालात बने रहेंगे तब तक कोई भी विदेशी उद्योगपति भारत में पूंजी नहीं लगाएगा।
यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अच्छी तरह से मालूम थी। शायद इसीलिये स्पष्ट बहुमत से जीतकर आये हए प्रधानमंत्री ने देश से और खासकर अपनी राजनीतिक पार्टी और उसके सहयोगी संस्थाओं के कार्यकर्ताओं से अपील की कि अगले दस साल तक देश में साम्प्रदायिक या जातीय तनाव की स्थिति पैदा न होने दें।
प्रधानमंत्री ने कहा "जातिवाद, सम्प्रदायवाद, क्षेत्रवाद, सामाजिक या आर्थिक आधार पर लोगों में विभेद, यह सब ऐसे ज़हर हैं जो हमारे आगे बढ़ने में बाधा डालते हैं। आइये हम अपने दिल में एक संकल्प लें कि दस साल तक इस तरह की गतिविधियों में शामिल नहीं होंगें I हम एक ऐसा समाज बनायेंगे जो इन तनावों से मुक्त होगा। मैं अपील करता हूँ कि यह प्रयोग एक बार अवश्य किया जाए।"
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2014 के भाषण में यह सबसे प्रमुख मुद्दा था।
देश में तनाव कम करने की दिशा में उठाया गया एक बहुत ज़रूरी क़दम। देश में जहां भी साम्प्रदायिक तनाव होता है उसमें प्रधानमंत्री की पार्टी और उसके सहयोगी संगठनों का नाम अक्सर आता है।
प्रधानमंत्री के भाषण के बाद माना यह गया था कि वे लोग प्रधानमंत्री की बात को गंभीरता से लेगें और साम्प्रदायिक तनाव को कम करने की दिशा में प्रधानमंत्री के संकल्प का सम्मान करेंगे। लेकिन हक़ीकत यह है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ।
प्रधानमंत्री के 2014 के भाषण के बाद तो लगता है कि देश में चारों तरफ साम्प्रदायिक और जातीय तनाव का माहौल बढ़ गया है। उनके अपने दोनों राज्यों में हालात बहुत ही बिगाड़ दिए गए हैं। उनके जन्म के राज्य गुजरात में पहले तो पटेल जाति के लोगों ने संघर्ष का झंडा उठाया और राज्य में ख़ासा तनाव पैदा हो गया। एक 21-22 साल का पटेल नौजवान अपनी बिरादरी का हीरो बन गया। उसको काबू में करने के लिए राज्य सरकार की पूरी ताक़त लगानी पड़ी।
उसके बाद गुजरात में ही दलित जातियों के ऊपर गाय की रक्षा के नाम पर प्रधानमंत्री की पार्टी के सहयोगी संगठनों के कार्यकर्ता कहर बन कर टूट पड़े।
प्रधानमंत्री ने बताया था कि इस तरह की हालात पैदा किये जायेंगे तो तनाव होगा।
सबको मालूम है कि तनाव हुआ और एक मुख्यमंत्री को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ी।
प्रधानमंत्री की ही पार्टी के राज वाले हरियाणा में भी आरक्षण के नाम पर जातीय संघर्ष का भारी माहौल बना और उसमें सरकार की बेबसी सारी दुनिया ने देखी।
प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र के राज्य उत्तर प्रदेश में तो उनकी पार्टी के सहयोगी गौरक्षक पता नहीं क्या करने पर आमादा हैं। दादरी में एक अखलाक के घर में घुस पड़े और उसको बेरहमी से मार डाला।
दादरी की घटना को पूरी तरह से साम्प्रदायिक रंग देने की कोशिश की गयी।
प्रधानमंत्री की पार्टी के विधायक और मंत्रियों का नाम आता रहा। जातिगत दंगों का माहौल भी पूरे देश में बन रहा है। यहाँ तक कि प्रधानमंत्री को खुद कहना पड़ा कि प्लीज़ दलितों को मत मारो, अगर किसी को मारना ज़रूरी हो तो मुझे मारो।
ज़ाहिर है कि प्रधानमंत्री के लालकिले के पहले भाषण के सबसे अहम मुद्दे को देश और उनकी पार्टी ने नकार दिया है।
अब तीसरा भाषण हो चुका है देखना है कि देश और उनका राजनीतिक संगठन उनको कितनी गंभीरता से लेता है।
शेष नारायण सिंह