भारत के प्रधानमंत्री भारत के शंकराचार्यों से बड़े शंकराचार्य नजर आ रहे हैं। शक भी होने लगा है कि मोदी शंकराचार्य हैं या प्रधानमंत्री।
शत प्रतिशत के ग्लोबल हिंदुत्व के साथ सुधार अश्वमेध तेज, संसदीय विरोध खेत
शीशे की दीवारों में रहने वाले लोग दूसरों के घरों में पत्थर फेंका नहीं करते।
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष भले ही भारत की विकास गाथा की खिल्ली उड़ाते हुए भारत सरकार की प्रोजेक्टेड विकास दर को नानसेंस कहते हुए पहले से अमेरिकी मांगों और हितों के मुताबित तय सुधारों को लागू करने में तेजी लाने पर जोर दे रहा हो और परिभाषाओं, विधियों, मानकों और आंकड़ों की प्रामाणिकता पर सवाल खड़े कर दिये हों, ग्लोबल हिंदुत्व के विकास में इस केसरिया कारपोरेट सरकार के कृतित्व पर कोई सवाल ही खड़ा नहीं कर सकता।
गौरतलब है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक अर्थव्यवस्था में चमकीली वस्तु करार देते हुए अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) ने मौजूदा वित्त वर्ष के ग्रोथ का अनुमान बढ़ा कर 7.2 फीसदी कर दिया है।
आईएमएफ ने इसके साथ देश में निवेश चक्र को नए सिरे शुरू करने और संरचनात्मक सुधारों को तेज करने के लिए कदम उठाने का आह्वान किया है।
आईएमएफ ने भारत के लिए अपनी सालाना असेसमेंट रिपोर्ट में यह भी कहा है कि भारत सबसे तेजी से आगे बढ़ रही बड़ी उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में से एक अर्थव्यवस्था के तौर पर उभरा है और 2015-16 में ग्रोथ की दर बढ़ कर 7.5 फीसदी हो जाएगी।
गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष (आईएमएफ) की प्रमुख क्रिस्टीन लेगार्ड अगले सप्ताह भारत आएंगी। इस दौरान, वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित देश के शीर्ष नेताओं से मुलाकात कर सकती हैं।
आईएमएफ के एशिया व प्रशांत विभाग में सहायक निदेशक व भारत के लिए मिशन प्रमुख पॉल कैशिनके मुताबिक लेगार्ड के प्रधानमंत्री मोदी एवं वित्त मंत्री अरुण जेटली से मुलाकात किए जाने की संभावना है।
सार्क शिखर सम्मेलन के मौके पर नेपाल गये भारत के प्रधानमंत्री का हिंदुत्व एजंडा क्या रंग लाया, इस पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई है। लेकिन पशुपति नाथ मंदिर में उनकी तस्वीर उऩके पंद्रह लाख टकिया सूट से कम बेशकीमती नहीं रही है।
भारत के प्रधानमंत्री भारत के शंकराचार्यों से बड़े शंकराचार्य नजर आ रहे हैं। शक भी होने लगा है कि मोदी शंकराचार्य हैं या प्रधानमंत्री।
शक भी होने लगा है कि हमरे प्रधानमंत्री अनूठे शिवशक्त हैं कि भारत देश के जनगण के सबसे बड़े प्रतिनिधि, जो शत प्रतिशत हिंदू निरंतर जारी धर्मातरण अश्वमेध अभियान के बावजूद फिलहाल हुआ नहीं है।
मारीशस में गंगा तालाब में गंगोत्री का जल डालने से लेकर उनकी शिव आराधना ग्लोबल हिंदुत्व का सही नजारा पेश कर रहा है। यह अभूतपूर्व है कि विदेश यात्रा पर गये धर्म निरपेक्ष भारत के प्रधानमंत्री इसतरह शत प्रतिशत हिंदुत्व का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं और मीडिया में उनकी आस्था को उनकी शक्ति कहते हुए आंखों देखा हाल प्रसारित हो रहा है। बेशक, यह भारतीय राजनय का नया अध्याय है।
हालांकि मॉरीशस की संसद को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री अनिरुद्ध जगन्नाथ को बताया है कि भारत मॉरीशस की अर्थव्यवस्था के लिए तटीय क्षेत्र के महत्व को समझता है। उन्होंने कहा, हम भारत पर इसकी निर्भरता को लेकर सचेत हैं। हम दोहरे कराधान निवारण के दुरुपयोग से बचने के लिए हमारे साझा उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मिल कर काम करेंगे।
यह समझना मुश्किल है कि मारीशस की किस अर्थव्यवस्था की बात प्रधानमंत्री कर रहे थे क्योंकि मारीशस से भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार नवयुग में सबसे ज्यादा विदेशी पूंजी की आवक होती रही है। उनकी शिव आस्था और निवेशक आस्था के रंग इतने इंद्रधनुषी हैं कि अलग अलग पहचानना मुस्किल होता है कि क्या उनका हिंदुत्व है तो क्या उनके विकास का पीपीपी बिजनेस फ्रेंडली विकास का माडल।
शीशे की दीवारों में रहने वाले लोग दूसरों के घरों में पत्थर फेंका नहीं करते।
सुधारों के ईश्वर के घेराव से जनता जनार्दन के मिलियनर बिलियनर प्रतिनिधियों में हड़कंप मच गया है।
बुलरन से और निवेशकों की आस्था के साथ भारत की संसदीय सहमति के चोली दामन के साथ कोऐसे समझें कि बीमा बिल पास होते न होते तीन दिनों की गिरावट के बाद आज बाजार में फिर से रौनक लौट आई। आज बाजार में शुरुआती कारोबार से ही तेजी रही और दिनभर खरीदारी देखने को मिली। खासकर आखिरी आधे घंटे में बाजार में जोरदार तेजी रही। अंत में सेंसेक्स और निफ्टी करीब 1 फीसदी तक की तेजी के साथ बंद हुए हैं।
इसी बीच खबर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ की अगली कड़ी में 22 मार्च को किसानों से रूबरू होंगे जिसके लिए उन्होंने उनसे सुझाव और अन्य सूचनाएं मांगी हैं।
सुधारों पर घमासान है और भारतीयअर्थव्यवस्थी की सेहत पर अमेरिका को सबसे ज्यादा सरदर्द है।
हमारे काबिल अर्थशास्त्री भी वहीं से उवाचे हैं।
मसलन भारत जैसे सक्रिय लोकतंत्र जहां रुकावट खड़ी करने वाली कई ताकतें हैं, वहां बड़े सुधारों की उम्मीद करना अनुचित होगा। यह बात देश के शीर्ष अर्थशास्त्री ने वाशिंगटन में कही। पिछले साल वित्त मंत्रालय का मुख्य आर्थिक सलाहकार नियुक्त किए जाने के बाद वाशिंगटन में अपने पहले सार्वजनिक संबोधन में अरविंद सुब्रमण्यन ने इस सप्ताह शीर्ष अमेरिकी विचार- शोध संस्था से कहा कि भारत अभी भी एक स्थिति में सुधार दर्ज करती अर्थव्यवस्था है न कि तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था। उन्होंने कहा कि सालाना आम बजट में बड़े सुधारों की घोषणा की उम्मीद करना उचित नहीं है क्योंकि नई सरकार धीरे-धीरे लेकिन निरंतर कई प्रमुख नीतिगत और राजकोषीय सुधारों के साथ आगे बढ़ रही है जिससे आने वाले दिनों में भारत की तस्वीर बदलेगी। सुब्रमण्यन ने कहा, 'बजट में सुधारों की गति बरकरार रखी गई है और इसमें तेजी लाई जा रही है। '
अब राज्यसभा में पारित बीमा विधेयक की खबर को गौर से पढ़ें और समझेें कि संसदीय सहमति का तिलिस्म कितना कोहरा कोहरा है।
देखते रहें हस्तक्षेप।
क्षेत्रीय महाबलियों की उत्थान के पीछे यह आत्मघाती बंटवारा है जो भारतीय जनता के वर्गीय ध्रुवीकरण के आधार पर राष्ट्रीय स्तर पर गोलबंद होने के रास्ते में सबसे बड़ा अवरोध है।
पलाश विश्वास