जेएनयू फैक्ट फाइडिंग टीम : कुमाकोलेंग का विवाद और बढ़ा, गांव को उजाड़ देने की नक्सली धमकी
जेएनयू फैक्ट फाइडिंग टीम की रिपोर्ट सही या बस्तर प्रशासन
जगदलपुर ! बस्तर के नक्सल प्रभावित कुमाकोलेंग गांव के करीब दो दर्जन युवकों का नक्सलियों के रूप में आत्मसमर्पण किया जाना, फिर कथित रूप से नक्सलियों द्वारा इस गांव में आकर आत्मसमर्पित युवाओं को उनके परिजनों द्वारा वापस बुलाये जाने का फरमान जारी करना, ऐसा न करने की स्थिति में गांव को उजाड़ देने की नक्सली धमकी की खबरों का आना सब कुछ बड़ा रहस्यमय सा प्रतीत हो रहा था।
इसी बीच जेएनयू की फैक्ट फाइडिंग टीम का बस्तर दौरा और पूरे बस्तर में चल रही नक्सलवाद से शासन की लड़ाई और बीच में पिसते आदिवासियों के दर्द को जानने की कोशिश और इस कोशिश से परेशान पुलिस और प्रशासन की प्रतिक्रिया ने बस्तर को फिर एक बार सुर्खियों में ला दिया है।
कुमाकोलेंग के ग्रामीणों द्वारा लिखा गया शिकायती पत्र ही इस पूरे मामले की जड़ माना जा रहा है, जिसे कुछ लोग फेब्रीकेटेड बता रहे हैं।
इस पत्र में शिकायत की गई है कि जेएनयू के प्रोफेसर कुमाकोलेंग के ग्रामीणों को नक्सलियों का साथ देने की समझाईश दे रहे हैं और पुलिस की खिलाफत करने की बात कह रहे हैं।
कुछ लोगों का कहना है कि यह पत्र थाने के ही किसी पुलिस कर्मी द्वारा लिखा गया है और जेएनयू से आये लोगों को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है, ताकि यहां चल रहे आदिवासियों के दमन की असलियत देश के सामने न आ सके।
फिलहाल इस शिकायत पर एफआईआर दर्ज नहीं हुई है, लेकिन बस्तर के कलेक्टर अमित कटारिया ने इसे अपने फेसबुक वॉल पर लगा दिया और मामला फिर बड़े स्तर पर सुलग उठा।
छग पत्रकार संघर्ष समिति के अध्यक्ष कमल शुक्ला ने जब इस बारे में कलेक्टर से बात करने की कोशिश की, तो कलेक्टर ने आपा खो दिया और कमल शुक्ला को दो कौड़ी का आदमी कह उन्हें मसल डालने तक की धमकी दे डाली।
कलेक्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाएंगे कमल शुक्ला
कमल शुक्ला आज कोलकाता में हैं और वहां बस्तर की वर्तमान स्थिति पर आयोजित एक गोष्ठी में मुख्य वक्ता की हैसियत से उपस्थित हैं। विषय है वार इन बस्तर विदाऊट विटनेस। ऐसे समय में यह विषय बस्तर की स्थिति पर बिल्कुल प्रासंगिक महसूस हो रहा है। लड़ाई तो जारी है, लेकिन विटनेस बनने वालों को भयभीत करने की कोशिश भी लगातार जारी है।
कमल शुक्ला ने देशबन्धु को दूरभाष पर बताया कि शिकायती पत्र का मामला अभी भी संदेहास्पद बना हुआ है, पुलिस ने अभी तक इस मामले में एफआईआर दर्ज नहीं की है, उस पत्र की विश्वसनीयता को जांचे बिना जिले के कलेक्टर द्वारा उसे सोशल मीडिया में लाकर बहस का मुद्दा बनाया जाना एक आईएएस अधिकारी को शोभा नहीं देता। यह बात और भी आपत्तिजनक है, जब एक पत्रकार द्वारा इस मामले पर कलेक्टर से पूछा जाता है तो वे पत्रकार को दो कौड़ी का आदमी मक्खी, मच्छर और चूजा कहकर मसल देने की बात कह रहे हैं। यह सीधे-सीधे एक पत्रकार को जान से मार देने की धमकी है। उन्होंने कहा कि वे बस्तर लौटकर कलेक्टर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाएंगे।
इधर कलेक्टर से जब देशबन्धु ने फोन और मैसेज से संपर्क करने की कोशिश की तो संपर्क नहीं हो सका।
बस्तर का सच छिपाना चाहती है पुलिस
बस्तर में ऐसा क्या है जिसे पुलिस छिपाना चाहती है। यह सवाल जेएनयू और डीयू के प्रोफेसरों के दौरे के बाद उठे विवाद के बीच एक बार फिर चर्चा में है।
दरअसल, इससे पहले भी बस्तर में काम कर रहे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों, वकीलों आदि पर पुलिस की नाराजगी सामने आती रही है।
आरोप है कि पुलिस ऐसे सभी लोगों को बस्तर से बाहर रखना चाहती है, जो असलियत जानते हैं और उसे दुनिया के सामने ला सकते हैं। हालांकि पुलिस अब भी यही कह रही है कि किसी को बस्तर जाने से रोका नहीं जाएगा।
बुधवार को दिल्ली से आए तीन प्रोफेसरों जेएनयू की अर्चना प्रसाद, डीयू की नंदिनी सुंदर, जोशी-अधिकारी शोध संस्थान के विनीत तिवारी व सीपीएम नेता संजय पराते के खिलाफ दरभा थाने में ग्रामीणों के हवाले से शिकायत की गई थी कि उन्होंने गांव में बैठक लेकर नक्सलियों के पक्ष में चर्चा की। मामले में जांच चल रही है और अब तक एफआईआर नहीं हुई है। लेकिन इस मुद्दे पर सोशल मीडिया पर बहस छिड़ गई है। प्रोफेसरों ने बस्तर की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट शेयर की है, तो दूसरी ओर उनके खिलाफ भी मुहिम लगातार चलाई जा रही है। सोशल मीडिया में सवाल उठाए जा रहे कि प्रोफेसरों को बस्तर से क्या लेना-देना, उनसे उनका विश्वविद्यालय तो सम्हलता नहीं।
साभार – देशबन्धु
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