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संघ के लिए वरदान हैं ओवैसी के घटिया बयान

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hastakshep
17 Mar 2016
संघ के लिए वरदान हैं ओवैसी के घटिया बयान

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कहीं 'संघ' की यह असहमति ही तो ओवैसियों को असहिष्णु नहीं बना रही ?

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अब बुलवाओ उन दो करोड़ बाबाओं से भारत माता की जय जो सिहंस्थ में उज्जैन पधारे हैं ! वे तो अपने-अपने अखाड़ों की जय बोलकर शिवराज को आँख दिखा रहे हैं।

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श्रीराम तिवारी

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जाने-माने शायर ,लेखक ,प्रगतिशील बुद्धिजीवी एवं राज्य सभा सदस्य जनाब जावेद अख्तर साहब ने संसद में असदउद्दीन ओवैसी को मानों 'फींचकर' निचोड़ डाला ! जावेद अख्तर के इस राष्ट्रवादी और धर्मनिरपेक्ष भाषण से पूरा सदन गदगदायमान होता रहा। जावेद अख्तर साहब ने ओवैसी के बहाने उनको भी खूब धोया जो सत्ता पक्ष की बेंचों पर विराजमान थे। देशद्रोहियों को मार-मार कर ''भारत माता की जय” बुलवाने को आतुर स्वयंभू राष्ट्रवादी लोग अपने-किये धरे पर बगलें भी झाँक रहे होंगे, क्योंकि जावेद अख्तर साहब न केवल उन्हें आइना दिखा रहे थे जो ओवैसी की भाषा बोल रहे हैं, बल्कि एक साँस में तीन-तीन बार 'भारत माता की जय' बोलकर जनाब जावेद अख्तर साहब ने कटटरपंथी हिन्दुत्ववादियों को भी करारा जबाब दिया है।

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सही मायनों में भारत की धर्मनिरपेक्षता, जनवाद और लोकतंत्र की आवाज वही है जो संसद के वर्तमान सत्र में जनाब जावेद अख्तर साहब के श्रीमुख से राज्य सभा में प्रतिध्वनित हो रही थी!

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कुछ दिन पहले ही संसद में पीएम मोदी जी ने निदा फाजली को कोट किया था। उम्मीद है कि वे जावेद अख्तर को इग्नोर नहीं करेंगे। और संघ वालों को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि सिर्फ जावेद अख्तर, निदा फाजली ही नहीं भारत के करोड़ों मुसलमान भी इसी तरह के विचार रखते हैं। अपनी संकीर्ण रौ में आकर हर मुसलमान को आतंकी न समझें ! और 'भारत माता की जय' का नारा लगाने वाले हर शख्स को 'देशभक्त' समझने की जिद भी न करें !

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अभी-अभी आरक्षण की मांग को लेकर हरियाणा में हत्या, बलात्कार, आगजनी और लूट के लिए जो लोग जिम्मेदार हैं, वे भी 'भारत माता की जय' का नारा खूब लगते रहे हैं। क्या वे देशभक्त हैं ?

सच बात यह है कि 'भारत माता की जय' बोलने से असदउद्दीन ओवैसी को भी उतनी एलर्जी नहीं है, जितनी की मीडिया में बताई गई है। असदउद्दीन ओवेसी जब 'जय हिन्द' बोलता है तब उस खबर को या तो दबा दिया जाता है या बहुत कम दिखाया-सुनाया जाता है। 'देशद्रोह' के शोर में दबा दिया जाता है। ओवैसी ने सैकड़ों बार कहा होगा कि भारत के अलावा वे किसी भी अन्य मुल्क में जीना -मरना पसंद नहीं करेंगे। यह खबर कितने लोगों तक पहुँची ? लेकिन ओवैसी बनाम भागवत विमर्श में एक बात ज़रूर नज़रअंदाज की जा रही है। जिस तरह कोई मामूली पहलवान जब किसी नामी पहलवान को अखाड़े में ललकारता है और उस बड़े पहलवान से हार जाने के बाद भी उसका नाम होने लगता है, उसी तरह ओवैसी और उनके जैसे अन्य तमाम साम्प्रदायिक-मजहबी नेता भी 'संघ' को चिढ़ाकर अपनी साम्प्रदयिक राजनीति चमकाते रहते हैं। अर्थात् संघ और उसके प्रतिस्पर्धी मुस्लिम नेता और संगठन एक दूसरे के अन्योन्याश्रित हैं।

ओवैसी जैसे नेताओं की उत्तेजक बयानबाजी और सिमी जैसे इस्लामिक संगठनों की आतंकी गतिविधियों से संघ की ताकत बढ़ रही है। सत्ता में आकर तो संघ की बीसों घी में हैं! जब कभी कहीं ओबैसी आग लगाते हैं तो 'संघ' वाले घासलेट डालने को तैयार रहते हैं, और जब संघ वाले कुछ अनर्गल बोल बचन उच्चारते हैं तो ओवैसी फौरन अपना फटा पुराना ढोल बजाना शुरू कर देते हैं।

जनाब असदउद्दीन ओवेसी और उनके जैसे अन्य मजहबी सियासतदानों को 'धर्मनिरपेक्ष' तो कदापि नहीं कहा जा सकता। इसलिए सभी वामपंथी विचारकों और वर्ग चेतना से समृद्ध साहित्यकारों,पत्रकारों और बुद्धिजीवियों की जिम्मेदारी है कि इस विमर्श में वे जावेद अख्तर को ही फॉलो करें।

कुछ जनवादी -प्रगतिशील और वामपंथी साथी सिर्फ 'आरएसएस' की इकतरफा आलोचना करते रहेंगे, ओवेसी जैसों की अनदेखी करते रहेंगे या उसका समर्थन करते रहेंगे तो इससे संघ का ही फायदा होगा। क्योंकि वर्ग चेतना विहीन अधिकांश सीधी सरल हिन्दू जनता और किसान - मजदूर संघषों में तो एक दूजे के साथ होंगे, किन्तु संसदीय लोकतंत्र में वोट की राजनीति के अवसर पर वह ओवैसी के बोल बचन जरूर याद रखेगी। और ध्रुवीकृत होकर मुस्लिम मत यदि ओबैसी की जेब में होंगे तो हिन्दुओं के वोट ध्रुवीकृत होकर 'संघ परिवार' याने भाजपा को और गिरेंगे। यही अकाट्य सत्य है। यह 2014 के चुनावों में हो चुका है। यह जम्मू कश्मीर के विधान सभा चुनाव में भी हो चुका है। इससे सिद्ध होता है कि ओवैसी जैंसे लोगों की हरकतें धर्मनिरपेक्षता और जनवाद के पक्ष में कदापि नहीं हैं। देश के हित में भी बिलकुल नहीं हैं ! बल्कि ओवैसी जैसों की प्रत्येक हरकत से फासीवाद का खतरा बढ़ता जा रहा है और उसी अनुपात में 'संघ' और भाजपा की ताकत भी बढ़ रही है।

यानी ओवैसी के घटिया बयान संघ के लिए वरदान हैं। नागौर प्रतिनिधि सम्मेलन के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख श्री मोहनराव भागवत जी ने जेएनयू, जाधवपुर और हैदरावाद यूनिवर्सिटीज में हुई 'देशविरोधी' नारेबाजी पर अपनी नाराजी व्यक्त करते हुए कहा कि '' इस देश के युवाओं को राष्ट्रवाद का ज्ञान नहीं है, उन्हें भारत माता की जय बोलना भी सिखाना पड़ रहा है।'' उन्होंने वर्तमान शिक्षा पद्धति में बदलाव का भी संतुलित शब्दों में आह्वान किया।

इस सम्मेलन में परम्परागत गणवेश परिवर्तन की तरह संघ ने 'भारत माता की जय' की कोई नई सैद्धांतिक गवेषणा नहीं की है। 'भारत माता की जय' तो 1857 से ही प्रारम्भ हो गई थी। हिन्दू-मुस्लिम सभी भारतवासी यह नारा लगाते आ रहे थे। तब यह नारा राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन का मूल मत्र था। जिन्ना और मुस्लिम लीग ने जब अलग से पाकिस्तान मांग लिया और देश का विभाजन हुआ तब यह नारा सिर्फ 'भारत' के लिए ही शेष रहा। उधर यदि पाकिस्तान जिंदाबाद हो गया तो कायदे इधर भी 'हिंदुस्तान जिंदाबाद' होना चाहिए था, चूँकि भारतीय नेताओं ने भारत को धर्मनिरपेक्ष-लोकतान्त्रिक राष्ट्र माना अतः 'हिन्दुस्तान' की जगह भारत ही अधिकृत नाम रखा गया।

हिन्दू समाज को देश का तातपर्य 'माँ' है। जबकि दुनिया के तमाम देश के लोग अपने-अपने वतन को 'नेशन' ही मानते हैं। यद्यपि सभी भारतीय हिन्दू -मुसलमान हालाँकि भारत माता की जय 'बोलते आ रहे हैं। लेकिन हिन्दुओं का राष्ट्र के प्रति कृतज्ञता भाव कुछ-कुछ वैसे ही है, जैसे कि रोज सुबह उठकर लोग मंजन - स्नान इत्यादि से निवृत्त होकर अपने-अपने इष्टदेव, गुरुजन के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।

इसी तरह दुनिया के अधिकांश लोग अपनी-अपनी भाषा में अपने राष्ट्र और अपने राष्ट्रीय प्रतीकों को सम्मान प्रदर्शित करते हैं। किन्तु भारत के कुछ मुसलमान 'भारत माता की जय' या 'वन्दे मातरम' के नारे लगाने से बचने की कोशिश करते रहते हैं, उन्हें लगता है कि इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता। लेकिन जावेद अख्तर और उस्ताद अमजद अली खान जब भारत माता की जय का नारा लगाते हैं, तो ओवेसी या उसके जैसें अन्य लोगों को कोई उज्र नहीं होनी चाहिए। और फिर भी यदि वे 'जय हिन्द' या 'हिंदुस्तान जिन्दाबाद' का नारा ही लगाते हैं तो यह भी मान्य होना चाहिए।

भारत के किसी भी नागरिक को देशद्रोही करार देने का अधिकार केवल कानून को है। किसी भी व्यक्ति या संगठन को कोई अधिकार नहीं कि देशभक्ति प्रमाणन का काम अपने हाथ में ले ले। असदउद्दीन ओवैसी का कहना है कि '' मेरे गले पर छुरी भी रख दो तो भी भारत माता की जय नहीं बोलूंगा'' उनका कहना है कि ''मुझे किसी से देशभक्ति का प्रमाणपत्र नहीं चाहिये, यदि मुझे देशभक्ति का नारा लगाना ही होगा तो 'जय हिन्द' का प्रयोग करूँगा।''

दरसल ओवेसी को 'भारत माता की जय से कोई समस्या नहीं है। देश से भी उन्हें कोई समस्या नहीं है। हिन्दुओं से भी उन्हें कोई समस्या नहीं है। वास्तव में ओवैसी की समस्या ये है कि वे महज एक व्यक्ति नहीं बल्कि 'विचारधारा' हैं। यह 'विचारधारा' घोर साम्प्रदायिक है और यह सिर्फ ओवैसी की ही नहीं है। बल्कि यह विचारधारा सिमी की भी है। यह विचारधारा हरकत-उल अंसार की भी है ,यह कश्मीर में दुख्तराने हिन्द की भी है। कश्मीर में पत्थरबाजी करने वालों की भी है, केरल में मुस्लिम लीग की है। आंध्र, तेलांगना में आईएम और ओवैसी की है। वही विचारधारा कभी सैयद शाहबुद्दीन की भी रही है। ऐ आर अंतुले, गनीखान चौधरी, इमाम बुखारी, आजम ख़ाँ ने इस विचारधारा का जमकर भोग किया है। ममता, मुलायम, लालू और नीतीश ने भी इसका स्वाद चखा है। देश विभाजन के बाद -पाकिस्तान बन जाने के बाद इस विचार धारा से ही पाकिस्तान बना था। लेकिन भारत को अपना वतन मानने वाले जावेद अख्तर, निदा फाजली, अमजद अली खान जैसे करोड़ों मुसलमानों को जब कुछ स्वार्थी लोग 'दारुल हरब' का ज्ञान बाँटने की जुर्रत करते हैं तो उन्हें औकात बता दी जाती है। जैसे कि जावेद अख्तर ने राज्य सभा में ओवैसी के नकारात्मक बयान पर उसे आइना दिखाया।

जावेद साहब ने ओवैसी को गली मोहल्ले का नेता बताकर उसकी असल औकात दिखा दी है। चूँकि ओवैसी ने 'भारत माता की जय' बोलने से स्पष्ट इंकार किया है, हालाँकि वे 'जय हिन्द' बोलने में नहीं हिचकते। क्यों ? दरअसल यह उस दारुल हरब के 'विचार' का ही हिस्सा है। इस्लाम के कुछ उलेमा मानते हैं कि इस्लाम के अनुसार 'अल्लाह' की बंदगी ही अंतिम है और अल्लाह या माँ का दर्जा देश को नहीं दिया जा सकता। मक्का-मदीना या काबा को सजदा तो कर सकते हैं, किन्तु जय उनकी भी नहीं बोली जाती। जय याने नमन याने प्रणाम सिर्फ अल्लाह को ही करने की परम्परा है! और इसमें गलत भी क्या है ? कोई मुसलमान 'काबा की जय' या मक्का की जय नहीं बोलता। मदीना की जय नहीं बोलता, सऊदी अरब की भी जय नहीं बोलेता ! तो 'भारत माता की जय' जबरन बुलवाने की क्या जरूरत है ?

रही बात राष्ट्रवाद की या देशप्रेम की तो ये किसने कहा कि 'भारत माता की जय' बोलने वाले ही देशभक्त होते हैं। कालाहांडी, कूचबिहार अबूझमाण्ड, झाबुआ के अधिकांस आदिवासी तो भारत का मतलब भी नहीं जानते। भारत माता की जय और जय भारत या जय हिन्द बोलने का तो वहाँ सवाल ही नहीं है। क्या ये करोड़ों निर्धन - आदिवासी 'देशद्रोही' हैं ?

सिर्फ एक ओवैसी के या कुछ मजहबी अड़ियल लोगों के 'भारत माता की जय' नहीं बोलने पर इतना तनाव क्यों ? यह उनका राष्ट्रद्रोह नहीं है, मूर्खता अवश्य हो सकती है। सामाजिक- मजहबी रूढ़िवादिता का नकारात्मक प्रभाव भी हो सकता है। इस्लाम में पुरुषसत्तात्मक सोच का बड़ा प्रभाव है। इसीलिये ओवैसी को 'भारत माता' के स्त्रीसूचक शब्द को सलाम करने में परेशानी हो सकती है। भारत के पुरुष त्वरूप को 'जय हिन्द' से नवाजने में ओवैसी को कोई गुरेज नहीं है। चूँकि हिन्दुओं को यह देश उनकी मातृभूमि है, माँ है, इसलिए वे 'भारत माता की जय 'बोलते हैं।

बहरहाल ओवैसी के इन धतकर्मों से संघ या भाजपा को कोई परेशानी नहीं। हिंदुत्व को कोई खतरा नहीं, बल्कि जनवाद, धर्मनिरपेक्षता और प्रगतिशील कतारों को ओवैसी की इस हठधर्मिता से सावधान रहना होगा। वरना ओवैसी इसी तरह गंदगी फैलाते रहेंगे और प्रगतिशील धर्मनिरपेक्ष लोग उनके विषवमन पर सफाई पेश करते रहेंगे तो यह क्रांति का सिद्धांत नहीं हो सकता।

सिर्फ भारत माता की जय का सवाल नहीं है, यह एक किस्म का अलगावबाद ही है। इस ओवैसियों के अलगावबाद से ही 'संघ' को ऊर्जा मिलती रहती है। इस खतरनाक प्रवृत्ति के रूप में यह मजहबी उन्माद ही भारतीय सर्वहारा वर्ग को साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के थ्रू आपस में लड़ा रहा है। हालाँकि जो भारत माता की जय का नारा लगाते रहते हैं, उनकी भी कोई गारंटी नहीं कि देशभक्त ही हों ! तमाम चोर, उचक्के, डाकू और भगोडे विजय माल्या, सत्यम राजू जैसे लोग जूदेव, बंगारू लक्ष्मण जैसे भ्रष्ट लोग भी 'भारत माता की जय -जयकार करते रहे हैं। 'भारत माता की जय बोलकर' अपने गुनाहों पर पर्दा डालना ही देशभक्ति नहीं है। भारत माता की जय बोलना ही राष्ट्रवाद का एक मात्र सच्चा और अंतिम प्रमाण नहीं है ? अधिकांश साधु सन्यासी और महात्मा लोग हिमालय या एकांत में तपस्यारत हैं। वे केवल परमात्मा या ईश्वर की साधना में लीन हैं, उसी की जय ही बोलते हैं, उन्हें तो कृष्ण का आदेश भी है कि :- '' सर्व धर्मान परित्यज मामेकं शरणम बिजह '' <भगवद्गीता> अर्थात ये देश, ये सन्सार सब माया है, सबको तज और मुझ <श्रीकृष्ण> को भज।''

अब बुलवाओ उन दो करोड़ बाबाओं से भारत माता की जय जो सिहंस्थ में उज्जैन पधारे हैं ! वे तो अपने-अपने अखाड़ों की जय बोलकर शिवराज को आँख दिखा रहे हैं। मामूली जमीन के टुकड़े के लिए एक दूसरे को आग्नेय नजरों से भस्म करने पर उतारू हैं। यहां न हिंदुत्व है, न राष्ट्रवाद वाद है,  न भारत माता की जय सुनाई देती है। केवल पाखंड है, धन और मानव श्रम की बर्बादी है। परजीवियों का अकूत जमावड़ा है। इसपर भी तो भागवत जो को कुछ कहना चाहिए।

बेशक इस देश में कुछ लोग 'भारत माता की जय' के नारे के साथ-साथ इससे भी आगे बढ़कर ''कौन बनाता हिन्दुस्तान-भारत का मजदूर किसान'' का नारा भी लगाते हैं। क्या इस नारे में राष्ट्रवाद की कमी है ? यदि है तो संघ का अनुषंगी 'भारतीय मजदूर संघ' यह नारा क्यों लगाता है ? बीएमएस के संस्थापक -पितृपुरुष और संघ के महान चिंतक स्वर्गीय दत्तोपंत ठेंगड़ी जी यह नारा क्यों लगवाते रहे ? यदि संघ वालों को जेएनयू में लगाये गए नारे पसंद नहीं, ओवैसी के लगाये 'जय हिन्द' के नारे पसंद नहीं तो यह उनकी समस्या है। संघ को यह अधिकार किसने दिया कि वे नारेबाजी का हिसाब-किताब रखें ? हो सकता है कि संघ जो नारे लगवाता है वे देश की आवाम को ही अपसंद न हों ! कहीं 'संघ' की यह असहमति ही तो ओवैसियों को असहिष्णु नहीं बना रही ?

श्रीराम तिवारी !"

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