मुंबई। मुंबई उच्च न्यायालय ने आज एक साढ़े तीन घंटे लम्बी सुनवाई के बाद, मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सेतलवाड़ और उनके पति व सहकर्मी जावेद आनंद को सीबीआई द्वारा दायर फंड्स में गड़बड़ी के मामले में अग्रिम ज़मानत प्रदान कर दी।
इस मामले में एक अहम निर्णय सुनाते हुए मुंबई उच्च न्यायालय की जस्टिस मृदुला भाटकर ने सीबीआई के तीस्ता के देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए ख़तरा होने के आरोपों को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, “प्रथम दृष्टया अगर तीस्ता और जावेद या सबरंग कम्युनिकेशन्स को अवैध तरीके से फोर्ड फाउंडेशन से फंड्स लेने के मामले में एफसीआरए के उल्लंघन का दोषी मान भी लिया जाए, तो भी किसी भी प्रकार से यह सिद्ध नहीं होता कि यह किसी प्रकार की आंतरिक सुरक्षा के लिए ख़तरा हो सकते हैं।”
न्यायाधीश माननीया मृदुला भाटकर ने अहम टिप्पणी करते हुए कहा, “किसी भी लोकतंत्र में व्यक्तिगत जीवनशैली औऱ विचारों में भिन्नता का अधिकार ही सबसे अहम है और इसलिए किसी का सामाजिक दृष्टिकोण अलग है, तो वह समाज या देश के लिए ख़तरा नहीं होता।”
सुनवाई की शुरुआत में तीस्ता सेतलवाड़ के वकीलों ने उनका पक्ष रखते हुए, माननीय न्यायाधीश महोदया के सामने फोर्ड फाउंडेशन और सबरंग कम्युनिकेशन्स से सम्बंधित अहम तथ्य रखे और कोर्ट को बताया कि तीस्ता या उनके संगठन ने किसी भी प्रकार से एफसीआरए का उलंलघन नहीं किया है। लेकिन सीबीआई और अभियोजन पक्ष ने न केवल पूरी ताकत से तीस्ता सेतलवा़ड़ पर वित्तीय अनियमितताओं के आरोप लगाए, बल्कि एफसीआरए के साथ, देश की सुरक्षा से खिलवाड़ करने, विदेशी संगठन फोर्ड फाउंडेशन की दूरगामी साज़िश का हिस्सा होने और साम्प्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने के साथ-साथ इस्लाम का प्रचार प्रसार करने का भी आरोप लगा।
गुजरात सरकार द्वारा लगाए गए आरोपों और केंद्र तथा सीबीआई द्वारा तीस्ता पर देश की सुरक्षा और साम्प्रदायिक सद्भाव के लिए ख़तरा होने पर भी न्यायाधीश ने बेहद अहम टिप्पणी की। उन्होंने कहा, “अपनी दलीलों में अभियोजन पक्ष ने कई बार आरोपियों पर देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा होने का आरोप लगाया लेकिन ऐसा कुछ भी साबित नहीं हो सका है। आरोपियों की भूमिका गुजरात के 2002 के दंगों के कुछ अहम मामलों में न्याय के लिए काफी अहम रही है। अदालत इस मामले में गुरुबख्श सिंह बनाम सीबीआई को नज़ीर मानते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सबसे ऊपर रख कर यह फैसला ले रही है। देश के लोकतंत्र के लिए ज़रूरी है कि किसी को बदले की भावना से प्रताड़ित करने के उद्देश्य से उसके खिलाफ कोई क़ानूनी कार्रवाई न होने दी जाए।”
इस मामले में उच्च न्यायालय की अहम टिप्पणी के बाद एक तरह से सीबीआई के वह आरोप सत्य के धरातल पर नहीं टिक सके हैं, जिनमें उसने तीस्ता और जावेद पर राष्ट्रविरोधी और साम्प्रदायिक होने के आरोप लगाए थे।
मुंबई उच्च न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि किसी प्रकार की गिरफ्तारी की इसलिए भी आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आरोपियों के पासपोर्ट पहले से ही अदालत के पास जमा हैं और इस मामले में हिरासत में पूछताछ की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है।
मयंक सक्सेना
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