विशेष आलेख गुलामी की पीड़ा : भारतेंदु हरिश्चंद्र की प्रासंगिकता मनोज कुमार झा/वीणा भाटिया “आवहु सब मिल रोवहु भारत भाई हा! हा!! भारत दुर्दशा देखि ना जाई।” ये पंक्तियां आधुनिक हिंदी के प्रवर्तक भारतेंदु हरिश्चंद्र के नाटक ‘भारत दुर्दशा’ की हैं। भारतीय नवजागरण और खासकर हिंदी नवजागरण के अग्रदूत के रूप में भारतेंदु हरिश्चंद्र ने पहली बार अंग्रेजी राज पर …
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……सिंहासन खाली करो कि……
संजीव ‘मजदूर’ झा. भारतीय राजनैतिक प्रतिबद्धता का प्रश्न वक्त की सीमाओं का इतनी बार अतिक्रमण कर चुका है कि भारतीय बुद्धिजीवियों को अपने विश्लेषण के औजारों को दुरुस्त करने में तनिक भी देरी नहीं करनी चाहिए. यह इसलिए भी जरुरी है क्योंकि भारतीय बुद्धिजीवियों के औज़ार भोथड़े हो चुके हैं. इतिहास उलट कर देखा जाए तो हंसी सिर्फ़ प्रधानमंत्री मोदी …
Read More »भारतेन्दु ने पत्रकारिता के माध्यम से जिस नवजागरण की शुरुआत की थी, उसे आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी ने आगे बढ़ाया
महावीर प्रसाद द्विवेदी को आचार्य की पदवी किसी विश्वविद्यालय ने नहीं, जनता ने दी थी। निराला ने महावीर प्रसाद द्विवेदी के बारे में लिखा है– वे राष्ट्रभाषा के मूर्तिमान स्वरूप हैं। उन्हें लोग आचार्य कहते हैं, वे सचमुच आचार्य हैं। आधुनिक हिन्दी की उन्नति और विकास का अधिकांश श्रेय उन्हीं को है।
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