आरएसएस ने तिरंगे के बारे में अपनी शर्मनाक समझ कब बदली, मेहरबानी करके बताएं

आरएसएस के राष्ट्रीय मुस्लिम मंच द्वारा मदरसों पर तिरंगा लहराने की योजना के बारे में एक खुला ख़त

An open letter about RSS’s Rashtriya Muslim Manch plan to wave tricolor on madrasas

[highlight color=”yellow”]शम्सुल इस्लाम[/highlight]

कुछ मीडिया रिपोर्ट्स से पता चला है कि राष्ट्रीय मुस्लिम मंच की 15 अगस्त 2016 को देश भर में मदरसों पर तिरंगा फहराने की योजना है।

आरएसएस के इस जेबी संगठन के इस एकतरफ़ा फ़ैसले पर हम उनसे इससे संबंधित कुछ सवाल पूछना और जानकारियां हासिल करना चाहते हैं।

(1) मदरसे पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने का काम अपने हाथ में लेने से पहले आपको राष्ट्रीय ध्वज के प्रति वफादारी के बारे में अपनी ईमानदारी को साबित करना होगा।

कृपया इससे संबंधित हमारा कुछ ज्ञान-वर्धन करिये कि आजादी की लड़ाई के दौरान कब-कब और कहाँ-कहाँ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके सहयोगी हिंदू महासभा ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ तिरंगा झंडा उठाया था।

मेहरबानी करके केवल एक उदहारण पेश करें जब स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान आप के जन्मदाता आरएसएस ने तिरंगा झंडा उठाया था।

शायद आप नहीं जानते हैं कि तिरंगा दिसंबर 1929 में राष्ट्रीय ध्वज घोषित किया गया था लेकिन आरएसएस और इस के सहयोगियों ने इसे कभी भी स्वीकार नहीं किया ।

(2)  दिसंबर 1929 में कांग्रेस ने लाहौर अधिवेशन में गांधी जी के नेतृत्व में तिरंगा झंडे को राष्ट्रीय ध्वज स्वीकार किया था और देश के तमाम देशभक्तों को यह आह्वान किया था कि हर साल जनवरी 26 को तिरंगे को आम जगहों पर लहराएं। लेकिन इस शर्मनाक सच का भी इतिहास गवाह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सावरकर के नेतृत्व में हिंदू महासभा ने इसे अपने राष्ट्रीय ध्वज के रूप में स्वीकार करने से इनकार कर दिया था।

इन हिन्दू राष्ट्रवादियों ने भगवा झंडे को ही देश का प्रतीक माना क्यों कि इन के तर्क के अनुसार यह केवल हिन्दुओं का देश है और हिन्दुओं का झंडा ही लहराया जाना चाहिए। इन राष्ट्र-द्रोही हिंदुत्व संगठनों का यह मानना था असली दुश्मन अँगरेज़ नहीं बल्कि मुसलमान हैं।

इस बारे में आपको क्या कहना है ?

(3) जब 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बड़ी संख्या में देशवासी जिनमें बड़ी तादाद में मुसलमान भी शमिल थे, सर पर कफ़न बांध कर हाथों में तिरंगा लेकर सड़कों पर निकले तो ब्रिटिश और राजा-महाराजों के सशस्त्र बलों ने इन देशभक्तों का बर्बर दमन किया। हज़ारों देशभक्त इस लिए गोलियों से भून दिए गए क्यों कि उन्होंने तिरंगा झंडा हाथों में लेकर निकलने की जुर्रत की थी।

स्वतंत्रता सेनानियों के इस जनसंहार का आरएसएस और हिंदू महासभा ने समर्थन किया था।

यह देशद्रोही संगठन मुस्लिम लीग के साथ मिलकर इस दमन में अँगरेज़ सरकार के सलाहकार बन गए थे। इन्हों ने हिन्दुओं-मुसलमानों-सिखों-ईसाइयों के इस सुयंक्त संघर्ष के ख़िलाफ़ भगवा झंडा खड़ा किया था ताकि  देश के लोग बट जाएँ।

आरएसएस ने बेशर्मी से आजादी की लड़ाई के दौरान तिरंगे का अपमान करना जारी रखा था।

(4) आरएसएस ने अपने अंग्रेजी मुखपत्र ‘ऑर्गनाइज़र’ में आज़ादी की पूर्व संध्या पर (14 अगस्त 1947)  राष्ट्रीय ध्वज, तिरंगे की तौहीन करते हुए लिखा था:

“जो लोग किस्मत के दांव से सत्ता में आ गए हैं वह हमारे हाथ में तिरंगा थमा तो सकते हैं लेकिन हम हिन्दू इसका कभी सम्मान नहीं करेंगे। ध्वज में तीन रंग हैं,  तीन रंग अशुभ होते हैं और यह निश्चित रूप से बहुत बुरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव डालेंगे जो देश के लिए बहुत हानिकारक होगा।”

आरएसएस और आपने तिरंगे के बारे में अपनी शर्मनाक समझ कब बदली, मेहरबानी करके बताएं।

(5) आपका संगठन उस राष्ट्र विरोधी संगठन की पैदाइश है जिसने कभी तिरंगे का सम्मान नहीं किया लेकिन आप उसकी कठपुतली बनकर मदरसों पर तिरंगा फहराना चाहते हैं।

आप हिन्दू/सिख/ईसाई/बौद्ध धार्मिक स्कूलों में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए भी योजना बना रहे हैं या सिर्फ मदरसों  को ही निशाना बनाना चाहते हैं।

आप का यह आयोजन दरअसल आरएसएस का मुसलमानों के बारे में ज़हर उगलने और उनकी वफ़ादारी पर शक करने के पुराने मंसूबे का ही एक हिस्सा है।

आपके गुरु गोलवलकर तो भारत के मुसलमानों को जीवन भर दुश्मन नंबर एक बताते रहे।

इस पर आप का क्या कहना है ?

(6) चूंकि आरएसएस स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा कभी भी नहीं था इसलिए यह उपनिवेशवाद विरोधी स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान मदरसों, उसके मौलवियों और इन में पढ़ने वालों के बलिदान और महान कार्यों से परिचित नहीं है।

यह 1857 के लंबे उपनिवेशवाद-विरोधी संघर्ष और उसके बाद जितने भी अँगरेज़ राज के ख़िलाफ़ महान मुक्ति संघर्ष हुए हैं उसमें मदरसे इन विद्रोह के केंद्र थे।

ब्रिटिश शासन के दौरान लाखों हिन्दू-सिख देशभक्तों के साथ–साथ मदरसों के हजारों मौलवियों और छात्रों/छात्राओं को फांसी पर लटका दिया गया था और सैंकड़ों मदरसे जला दिए गये थे।

ब्रिटिश शासकों द्वारा सेल्युलर जेल (कला पानी) की स्थापना 1857 के विद्रोह और वहाबी आंदोलन में भाग लेने वाले मौलवियों को क़ैद करने के लिए ही की गयी थी।

क्या यह जानकारियां आप को हैं?

अन्त में, हम आपको बताना चाहते हैं कि तिरंगा भारत की विविधता में एकता का प्रतीक रहा है और आप अपने नापाक ध्रुवीकरण के खेल के लिए भारत के मुसलमानों, जिन्होंने भारत की आज़ादी के लिए महान बलिदान दिया है, को अलग थलग करने के लिए इसका इस्तेमाल करना चाहते हैं।

आप मदरसों पर तिरंगा फ़हराना चाहते हैं और हिन्दुओं के लिए भगवा झन्डा चाहते हैं।

लेकिन भारत के सभी धर्मों के लोग देश के स्वतंत्रता संग्राम की इस महान विरासत को कभी भी छिन्न भिन्न नहीं होने देंगे और आप के नापाक मंसूबों को मलियामेट करेंगे।

शम्सुल इस्लाम

August 11, 2016

About the Author

प्रोफेसर शमसुल इस्लाम
प्रोफेसर शमसुल इस्लाम ने दिल्ली विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान पढ़ाया। एक लेखक, स्तंभकार और नाटककार के रूप में वे धार्मिक कट्टरता, अमानवीयकरण, अधिनायकवाद और महिलाओं, दलितों और अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न के खिलाफ लिखते रहे हैं। उन्हें भारत और दुनिया भर में राष्ट्रवाद के उदय और इसके विकास पर मौलिक शोध कार्य के लिए विश्व स्तर पर जाना जाता है। Shamsul Islam taught Political Science at the University of Delhi. As an author, columnist and dramatist he has been writing against religious bigotry, dehumanization, totalitarianism, and the persecution of women, Dalits and minorities. He is known globally for fundamental research work on the rise of nationalism and its development in India and around the world.
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