रांची से विशद कुमार। झारखंड जनाधिकार महासभा, आदिवासी अधिकार मंच और Women against Sexual Violence and State Repression (WSS), ने दो अप्रैल को झारखंड के राज्य मुख्य निर्वाचन अधिकारी, के एल खियांगते (Jharkhand’s state chief election officer, KL Khiangte) को एक पत्र देकर उनका ध्यान खूंटी लोक सभा क्षेत्र की ओर दिलाते हुए बताया है कि चुनाव आचार संहिता (Election code of conduct) के नाम पर पुलिस प्रशासन द्वारा लोगों में भय और आतंक का माहौल बनाया जा रहा है, जिससे स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान (Free and fair voting) पर असर पड़ सकता है।
Anxiety on civil rights abuses in the name of Election Code of Conduct
पत्र में कहा गया है कि पिछले कुछ महीनों में खूंटी व उसके आस-पास के ज़िलों के अनेक गावों में पत्थलगड़ी (Patthalgadi) का आयोजन किया गया है। पत्थलगड़ी आदिवासियों के पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था एवं पांचवी अनुसूची व पेसा कानून के संवैधानिक प्रावधानों पर आधारित है। लेकिन 2018 से ऐसे अनेक गावों में स्थानीय प्रशासन व सुरक्षा बलों द्वारा लोगों पर भयावय दमन किया गया है। कई सामाजिक कार्यकर्ताओं व जन संगठनों जैसे झारखंड जनाधिकार महासभा, पिपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL), WSS व आदिवासी अधिकार मंच द्वारा स्थिति का तथ्यान्वेषण किया गया और इन गावों में मानवाधिकारों का व्यापक उलंघन पाया गया है।
अनेक विद्यालयों को पुलिस छावनी में तब्दील कर दिया गया है। कम-से-कम 150 नामदज व हजारों अज्ञात ग्रामीणों पर उकसाने, सरकारी काम में बाधा पहुँचाने, सार्वजानिक उपद्रव एवं देशद्रोह जैसे आरोपों अंतर्गत फर्ज़ी प्राथमिकी दायर किए गए हैं। गावों में सुरक्षा बालों द्वारा लगतार छापेमारी और बेबुनियाद गिरफ़्तारी के कारण लोगों में भय का माहौल है और अनेक ग्रामीण इस डर के कारण अपने गाँव छोड़ दिए हैं। सर्वविदित है कि स्थानीय प्रशासन ने राज्य के 20 सामाजिक कार्यकर्ताओं, लेखकों व पत्रकारों पर भी देशद्रोह का फर्ज़ी केस दायर कर दिया है, क्योंकि उन्होंने खूंटी में हो रहे दमन के विरुद्ध फेसबुक पर टिपण्णी की थी।
इन सब कारणों से क्षेत्र में भय और आतंक का माहौल है। लोग अपनी बातों और समस्याओं को खुलकर बताने से हिचक रहे हैं। यह भी अत्यंत चिंताजनक है कि मुंडा समुदाय, जिनका साप्ताहिक पारंपरिक ग्राम सभा बैठकों का इतिहास है, आजकल अपनी बैठकें भी नहीं कर पा रहे हैं। एक जीवंत लोकतंत्र के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि नागरिक अपने मुद्दों और बातों को खुलकर रख सकें एवं बिना किसी भय के मतदान कर सकें। लेकिन, खूंटी की वर्तमान स्थिति स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए अनुकूल नहीं है।
पत्र में कहा गया है कि पूरे राज्य में स्थानीय प्रशासन और पुलिस द्वारा चुनाव आचार संहिता के नाम पर लोगों को उनके मुद्दों व समस्याओं पर चर्चा करने से रोका जा रहा है। हालाँकि आचार संहिता राजनैतिक दलों पर लागू होता है न कि नागरिकों पर लागू होता है। अत: यह दुखद है कि इसका गलत प्रयोग नागरिकों की गैर-राजनैतिक बैठकों को रोकने के लिए किया जा रहा है। हाल में झारखंड जनाधिकार महासभा के कुछ सदस्यों को बिशुनपुरा थाने में नज़रबंद किया गया था और उनके द्वारा भोजन के अधिकार के मुद्दों पर आयोजित गैर-राजनैतिक जन सभा को रोका गया। पुलिस व प्रशासन द्वारा आचार संहिता व ज़िले में 144 धारा लागू होने का ब्यौरा दिया गया है, लेकिन नज़रबंद किए गए व्यक्तियों से अभी तक धारा 144 लागू करने की अधिसूचना को साझा नहीं किया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि आचार संहिता लागू होने के साथ-साथ धारा 144 लागू करने का प्रचलन सा बन गया है। यह चिंताजनक है कि चुनाव के समय धारा 144 का इस्तेमाल लोगों को उनके मुद्दों पर चर्चा (गैर-राजनैतिक बैठकों में) करने से रोकने के लिए किया जा रहा है। एक जीवंत लोकतंत्र के लिए यह आवश्यक है कि चुनावी मौसम में लोग बिना रोक-टोक के बैठक कर सकें और जन-मुद्दों पर स्वतंत्र रूप से चर्चा कर सकें।
पत्र में मांग की गयी है कि खूंटी लोक सभा की असाधारण परिस्थिति के परिप्रेक्ष में इस क्षेत्र में चुनाव विशेष स्वतंत्र पर्यवेक्षक के निरिक्षण में करवाया जाए।
चुनाव के दौरान अभी तक दर्ज फ़र्ज़ी प्राथमिकियों पर लोगों को गिरफ्तार न किया जाए।
चुनाव आयोग (Election commission) खूंटी में सुरक्षा बलों और प्रशासन द्वारा किए जा रहे दमन पर रोक लगाए, ताकि वैसे ग्रामीण जो इस दमन के कारण अपने गावों को छोड़ कर चले गए हैं वे वापिस आ सके और बिना भय मतदान कर सकें।
विद्यालयों से पुलिस छावनियों को हटाया जाए ताकि भय का माहौल कम हो और निष्पक्ष चुनाव का आयोजन किया जा सके।
विद्यालयों से पुलिस छावनियों को हटाने से भय का माहौल कम होगा और निष्पक्ष चुनाव के आयोजन में मदद करेगा।
ज़िला प्रशासन को निर्देशित किया जाए कि वे लोगों को चुनावी आचार संहिता के विषय में गलत जानकारी न दें एवं आचार संहिता के आलोक में धारा 144 का बेबुनियाद प्रयोग न करे।
जिन ज़िलों और प्रखंडों में प्रशासन ने आचार संहिता लागू होते ही धारा 144 लागू कर दिया है, उन्हें निर्देशित करें कि इस निर्णय को तुरतं वापिस लिया जाए। इससे नागरिक गैर-राजनैतिक तरीके से एकजुट होकर स्वतंत्र रूप से अपने मुद्दों पर चर्चा कर पाएंगे।
बताते चलें कि मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय ने प्रतिनिधिमंडल को 3 बजे का समय दिया था। लेकिन प्रतिनिधिमंडल को अधिकारी द्वारा लगभग 3 घंटे इंतज़ार करवाया गया। लम्बे समय तक वे अपने कार्यालय में नहीं थे। वापिस आने के बाद भी उन्होंने प्रतिनिधिमंडल को काफी देर तक इंतज़ार करवाया। वे वापिस आते समय प्रतिनिधिमंडल को देखा भी एवं उनके PA ने भी उन्हें बताया। बावजूद वे मिले नहीं। इंतज़ार करने के बाद प्रतिनिधिमंडल अपना संलग्न ज्ञापन उनके कार्यालय में जमा कर उनसे बिना मिले ही वापस लौट गया।
प्रतिनिधिमंडल में स्टेन स्वामी, भारत भूषण चौधरी, अलोका, अशोक वर्मा, कल्याण नाग, सुषमा बिरुली, समुएल पूर्ती, बासिंह मुंडा, सिराज व विवेक शामिल थे।