-अरुण माहेश्वरी
‘इंडियन एक्सप्रेस’ की रिपोर्ट से लगता है सीपीएम का पोलिट ब्यूरो कांग्रेस से संबंध के विषय में ही सर गड़ाये हुए है। यह बताता है कि वामपंथ को भारतीय राजनीति के वर्तमान पूरे खाँचे से अलग रखने, उसे अप्रासंगिक बनाये रखने वाली ताक़तें कितनी सक्रिय है !
पार्टी में गुटबाज़ी कितनी बदतरीन चीज होती है, देखना हो तो सीपीएम की अभी की दशा को देख लीजिए। प्रकाश करात गुट उस समय तक पार्टी को अपनी कांग्रेस-संबंधी ‘सैद्धांतिकता’ की फाँस से अटकाए रखेगा जब तक वह यह सुनिश्चित नहीं कर लेता कि आगामी पार्टी कांग्रेस में सीताराम येचुरी को महासचिव पद से हटा दिया जायेगा। अगर यह नहीं होता है तो इस सैद्धांतिक लड़ाई की उनकी हवाई कसरत का कोई अर्थ ही नहीं रहेगा। यह कसरत भारतीय राजनीति में पार्टी की भूमिका निभाने के लिये नहीं की जा रही है, पार्टी पर सिर्फ अपने गुट का पूर्ण वर्चस्व कायम करने के लिये की जा रही है।
गुटबंदी का जनतांत्रिक केंद्रीयतावादी खेल
इसे कहते हैं गुटबंदी का जनतांत्रिक केंद्रीयतावादी खेल, जिसमें अन्य के लिये कोई जगह नहीं होती, सिवाय बहुमत के अधीन रहने के ! जबकि तत्त्वत: यह एक ऐसा ढाँचा होना चाहिए जिसमें बहुलता को अनिवार्य मान कर चला जाना चाहिए। किसी भी संरचना के तत्व और प्रत्यक्ष के बीच की यही असंगति उसे विकृत कर देती है। वह ढाँचा कोई काम का नहीं रह जाता है।
गंभीर मनन करना चाहिए सीपीएम को
सीपीएम का जनवादी केंद्रीयतावाद पर टिका अभी का ढाँचा पूरी तरह से विकृत और आज की राजनीति के लिहाज से किसी काम का नहीं रह गया है। वामपंथ को इसे ठोस राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में रखते हुए गंभीर मनन का विषय बनाना चाहिए। राजनीति के लक्ष्यों को साधने को प्राथमिकता देना चाहिए। गुटबंदी के हितों को साधने वाले सांगठनिक पक्षों और तत्वों से निर्ममता से मुक्त होने की ज़रूरत है।