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जब तक धर्म है, तब तक स्त्री का उत्पीड़न चलता रहेगा

लोकतंत्र को उम्रकैद

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जब तक धर्म है, तब तक स्त्री का उत्पीड़न चलता रहेगा (As long as there is religion, the oppression of women will continue.) क्योंकि सारे पवित्र ग्रंथों में स्त्री के उत्पीड़न का न्याय है, जिसमें स्त्री के लिए समानता और अधिकार कहीं नहीं है।

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दुस्समय में पितृसत्ता के विरुद्ध (against patriarchy), मनुस्मृति के खिलाफ स्त्री चेतना बदलाव की आहट है तो शनिदेवता की वक्रदृष्टि से भी सावधान!

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अब राममंदिर अभियान की तर्ज पर स्त्रियों का मंदिर प्रवेश का राष्ट्रव्यापी आंदोलन (Nationwide movement of women to enter the temple) होगा और जो सभी स्त्रियों के हिंदुत्वकरण का सबसे कारगर कार्यक्रम होगा।

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पलाश विश्वास

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शनि मंदिर में स्त्री के प्रवेशाधिकार (Woman's right to enter Shani temple) का हम स्वागत करते हैं लेकिन स्त्री की समानता की दृष्टि से स्त्री संघर्ष की इस बड़ी उपलब्धि के हिंदूत्वकरण के खतरे से भी हम आगाह करते हैं। शनि का मिथक भय का वह असीम साम्राज्य है, जहां हमारी आस्था कैद है।

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गौरतलब है कि पहली नवरात्री पर शिंगणापुर के शनि मंदिर में इतिहास रचा गया और चार सौ साल में पहली बार पवित्र चबूतरे पर महिलाओं को पूजा करने का अधिकार मिला है। जिसका किसी तरह के धर्मन्माद ने विरोध नहीं किया और न इस ऐतिहासिक मंदिर प्रवेश का किसी भी स्तर पर कोई विरोध हुआ। इसका सीधा मतलब यह हुआ कि जो लोग विरोध में थे वे सीधे समर्थन में आ गये। तो यह बिना किसी मकसद के, बिना किसी योजना के हुआ होगा, ऐसा नहीं है।

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जाहिर है कि अब राममंदिर अभियान की तर्ज पर स्त्रियों का मंदिर प्रवेस का राष्ट्रव्यापी आंदोलन होगा और जो सभी स्त्रियों के हिंदुत्वकरण का सबसे कारगर कार्यक्रम होगा।

गौरतलब है कि चार दशकों से महिलाओं को यहां काले पत्थर पर कदम रखने की अनुमति नहीं थीं, जो कि शनिदेव का प्रतीक है।

गौर कीजिये कि इससे पहले 2 अप्रैल को बंबई उच्च न्यायालय ने एक दिन पहले दिए गए फैसले कि कोई भी कानून पूजास्थलों में महिलाओं को प्रवेश करने से नहीं रोकता, के बावजूद शनि शिंगणापुर मंदिर में महिला कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट की गई और ग्रामीणों ने उन्हें पूजा करने से रोक दिया गया था।

उस समय ‘भूमाता रणरागिनी ब्रिगेड’ की अध्यक्ष तृप्ति देसाई ने लगभग 200 महिला समर्थकों के साथ जब शनि मंदिर में प्रवेश करने की कोशिश की तो गांव के सैकड़ों लोगों ने मानव श्रृंखला बनाकर महिलाओं को शनि मंदिर में जाने से रोक दिया। ग्रामीणों में 300 से ज्यादा महिलाएं भी शामिल थीं।

अब मीडिया का कहना है कि इस हक के लिए महिला एक्‍टिविस्‍ट तृप्‍ति देसाई ने लंबे समय से संघर्ष किया है। अब तृप्‍ति का इरादा देश के बाकी कुछ और मंदिरों में प्रवेश के लिए संघर्ष करने का है।

जाहिर है कि महाराष्ट्र के अहमदनगर स्थित शनि शिंगणापुर मंदिर में शुक्रवार को 400 साल पुरानी परंपरा टूट गई। तो इसका मुआवजा स्त्री चेतना के हिंदुत्वकरण से ही भरना होगा।

अंततःमहिलाओं ने मंदिर के चबूतरे पर चढ़कर पूजा अर्चना की।

अब महिलाओं को मंदिरों में प्रवेश के अधिकार की लड़ाई लड़ रहीं तृप्ति देसाई ने कहा है कि यह तो केवल अभी शुरुआत है।

भूमाता ब्रिगेड की प्रमुख देसाई ने कहा कि जिन-जिन मंदिरों में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है उनके खिलाफ उनका संघर्ष जारी रहेगा।

उन्होंने बताया कि 13 अप्रैल को कोल्हापुर के महालक्ष्मी मंदिर में वे लोग प्रवेश के लिए संघर्ष करेंगी।

अंदेशा इसी खतरे को लेकर है कि स्त्री मुक्ति का आंदोलन कहीं मंदिर प्रवेश आंदोलन में विसर्जित न हो जाये और यह स्त्री अस्मिता के हिंदुत्वकरण का सबसे सहज उपाय न बन जाये।

प्रसिद्ध शनि शिंगणापुरमंदिर ट्रस्ट ने एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा है कि शुक्रवार से महिलाएं मंदिर में प्रवेश कर पूजा-याचना कर सकेंगी।

साफ जाहिर है कि इस आकस्मिक उदारता के पीछे खुला राज यही है कि धर्म में आस्था के सवाल पर पितृसत्ता को स्त्री को मंदिर में प्रवेशाधिकार देने में दरअसल कोई परेशानी नहीं है और देश भर में तमाम फौरी और बुनियादी मुद्दों को पीछे छोड़कर धर्मांध स्त्रियां देव देवी की शरणागत बनने के लिए बाकायदा जुलूस निकालकर मंदिकरों के गर्भगृह में जाने लगे तो इससे देश का केसरिया राष्ट्रवाद ही मजबूत होगा।

स्री की बुनियादी समस्यायें और हिंदू समाज, हिंदू परिवार और हिंदू राष्ट्र में स्त्री की दशा दिशा जस की तस बनी रहेंगी।

स्त्री समानता के सवाल पर हम उस आस्था के तिलिस्म में स्त्री अस्मिता को कैद नहीं देखना चाहते।

शनि की वक्र दृष्टि से सावधान होने की जरुरत है।

गौरतलब है कि हम मंदिर प्रवेश के किसी भी आंदोलन का समर्थन नहीं करते।

धर्म के गोरखधंधे में फंसी स्त्री के लिए यह संसार जो नर्क बना है और उसके हाथों, पांवों, दिलोदिमाग में जो बेड़िया बंधी हैं, उसकी सबसे बड़ी वजह उसकी अंध आस्था है, जो पितृसत्ता के लिए स्त्री के उत्पीड़न और दमन का सबसे अचूक रामबाण है।

स्त्री के सतीत्व और पुरुषों को अबाध भोग के असमान तंत्र मंत्र यंत्र में ही शूद्र बना दी गयी स्त्री की स्वतंत्रता, समानता और मनुष्यता कैद है।

अब स्त्री का समानता का सवाल कही धर्मस्थल में प्रवेशाधिकार का मामला बनकर निबट न जाये, खतरा यही है।

इसी सिलसिले में बरसों पहले तसलीमा नसरीन ने जो हमसे समयांतर के लिए इंटरव्यू में कहा था, उसे उद्धृत करना प्रासंगिक मानता हूं। तब तसलीमा ने कहा था कि वे धर्म का विरोध इसलिए करती हैं कि धर्म लिंगभेद पर टिका है जो स्त्री को यौनदासी बना देता है।

तब कोलकाता में रह रही तसलीमा नसरीन ने कहा था कि जब तक धर्म है, तब तक स्त्री का उत्पीड़न चलता रहेगा क्योंकि सारे पवित्र ग्रंथों में स्त्री के उत्पीड़न का न्याय है , जिसमें स्त्री के लिए समानता और अधिकार कहीं नहीं है।

हमने उनसे पूछा था कि वे सिर्फ इस्लामी कट्टरपंथ पर हमला करती है और लज्जा के जरिये उनके विचारों और लिखे का हिंदूत्वकरण हो रहा है, तो जवाब में उन्होंने कहा कि वे किसी धर्म के समर्थन में नहीं है बल्कि धर्म के खिलाफ हैं। क्योंकि पितृसत्ता का मूल आधार धर्म है जहां स्त्री के लिए सारे मानव और नागरिक अधिकार निषिद्ध हैं।

तब कोलकाता में रह रही तसलीमा नसरीन ने कहा था कि जब तक धर्म है, दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के मानवाधिकार और नागरिक अधिकार नहीं हैं।

तसलीमा कोलकाता से निर्वासित हैं इस वक्त और बांग्लादेश में उनकी घर वापसी के कोई आसार नहीं है।

इस इकलौते इंटरव्यू में तसलीमा ने स्त्री के समानता के सवाल, पितृसत्ता के वजूद और धर्म को दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के नागरिक और मानवाधिकारों के साथ जोड़ा था। तब से तसलीमा ने बहुत कुछ लिखा बोला है, लेकिन इन पंक्तियों को फिर कहीं दोहराया हो, ऐसा मालूम नहीं पड़ता।

बहरहाल ये पंक्तियां मौजूदा मुक्तबाजार समय में हमारे लिए बेहद प्रासंगिक हैं क्योंकि मुक्त बाजार में धर्म और बाजार अब पर्यायवाची शब्द हैं और दोनों इकने हिल मिलकर अंध राष्ट्रवाद में इस तरह एकाकार है कि यह अखंड पितृसत्ता का समय है और इसके खिलाफ किसी भी प्रतिरोध के लिए स्त्री चेतनी की नेतृत्वकारी भूमिका न हुई तो हम लड़ाई के मोर्चे पर सिर्फ निमित्त मात्र हैं और मारे जाने के इंतजार में हैं।

स्त्री के मानवाधिकार और नागरिक अधिकारों से दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के नागरिक और मानवाधिकार नत्थी हैं और इसीलिए इन तमाम शक्तियों को एक मंच पर एकसात खड़ा किये बिना मुक्ति का कोई रास्ता कहीं नहीं खुलता।

हम आगाह करते हैं कि मुक्ति का वह रास्ता यकीनन किसी धर्मस्थल का सिंहद्वार नहीं है जहां गर्भ गृह में दाखिले के बाद देवता या देवी की अंधभक्ति में निष्णात हो जाने के अलावा कोई और विकल्प बचता नहीं है।

ये शक्तियां बदलाव की शक्तियां हैं और येही शक्तियां अंध राष्ट्रवाद की पैदल फौजें हैं क्योंकि सबसे ज्यादा धर्मोन्मादी ये हैं।

इस बीज गणित का हल मुश्किल है लेकिन नामुमकिन नहीं है और समाधान सूत्र फिर वही स्त्री चेतना है जो लिंगभेद के खिलाफ, मनुस्मृति के खिलाफ और असमानता के किलाफ विद्रोह कर ही है। हम उस स्त्र चेतना को सलाम करते हैं।

यह इंटरव्यू तब लिटरेट डाट कम और वेब दुनिया के वेब पर प्रसारित हुआ था, जिसके लिंक अब उपलब्ध नहीं है या कमसकम हमें नहीं मिल रहे हैं।

हम इधर सड़क का सामना करने के लिए तैयारियों में जुटे हैं और मुद्दे और मसले इतने उलझे हुए हैं, फिर उन्हें फौरी तौर पर संबोधित करने की जरुरत भी है, इसलिए फिलहाल हम वीडियो पर नहीं है। शायद उसकी जरुरतभी नहीं है।

पुष्पवती का यह वीडियो देख लें तो मौजूदा स्त्री चेतना और स्त्री काल के मनुस्मृति के विरुद्ध लामबंदी का नजारा साफ नजर आयेगा।

चार सौ साल की परंपरा तोड़कर शनिमंदिर में स्त्री प्रवेश का एक पहलू बेहद खतरनाक भी है, उसे रेखांकित करने के लिए वर्तमानसमय में स्त्री चेतना का सही अवस्थान जानना, समझना और पितृसत्ता के रंगभेदी मुक्तबाजार के खिलाफ वर्गीय ध्रूवीकरण के बारे में आज हमारा रोजनामचा है।

राजस्थान के दलित बच्चों के उत्पीड़न के मार्फत हिंदू राष्ट्र की जो असली तस्वीर हमने हस्तक्षेप के जरिये शेयर की है, उसे बहुजनों ने भारी पैमाने पर शेयर किया है। सिर्फ फेसबुक लाइक बारह हजार के करीब है।

हम बहुजनों से अपेक्षा करते हैं कि देश दुनिया के बाकी मुद्दों पर भी हमारे पोस्ट साझा करने में और जड़ों तक जमीन को पकाने और बदलाव के खेत तैयार करने में वे सहयोग करें।

हमने दलित बच्चों वाले पोस्ट के साथ हमारे मित्र पत्रकार उर्मिलेश और सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता नूतन यादव के फेसबुक वाल की पंक्तियों को भी जोड़ा है।

तकनीकी कारणों से हम खुद इसे आगे शेयर नहीं कर सके हैं और नूतन जी को देहरादून में हमारी दीदी गीता गैरोला से इस स्टोरी के बारे में पता चला है।

अमूमन हम प्रासंगिक किसी भी मंतव्य को शेयर करते हैं और जिन्हें हम जानते हैं या जो हमारे मित्र हैं, उन्हें अक्सर मालूम भी नहीं होता कि हम उनकी पंक्तियों का इस्तेमाल करते हैं।

हम हर वक्त लिंक भी साझा नहीं कर पाते हालांकि यथासंभव शेयर कर देते हैं, कृपया वे इसे तकनीकी चूक मानकर हमारा सहयोग जारी रखें।

AZADI SONG _Composed & Sung by Pushpavathy

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