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अटल जी के दफ्तर ने तो साध्वी का गुमनाम पत्र लीक कर दिया था ?

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hastakshep
30 Aug 2017
वर्तमान दलित राजनीति मुद्दाविहीनता का शिकार

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ईश मिश्रा

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Mohammad Nafis और अन्य साथियों ने सही कहा है कि साध्वी का गुमनाम पत्र पाकर अटल जी के दफ्तर (पीएमओ) ने नहीं सीबीआई जांच बैठाया बल्कि पीएमओ ने तो राम-रहीम को खबर लीक कर दिया। बहन की कहानी से व्यथित साध्वी का भाई डेरा की सेवादारी छोड़ दिया और उसकी हत्या करवा दी गयी। उसने प्रधानमंत्री के अलावा उच्च और सर्वोच्च न्यायालयों तथा राज्य के पुलिस के मुखिया को भी इसकी प्रतियां भेजी थी। किसी बड़े अखबार ने इस पर छान-बीन कर खबर बनाने की हिम्मत नहीं की, यह हिम्मत की तो एक अदना से स्थानीय फ्रीलांसर राम चंदर छत्रपति ने। उन्होंने ही दिल्ली और चंडीगढ़ के कई अखबारों को खबर के रूम में छापने के लिए चिट्ठी की प्रतियां भेजा था। रामचंदर को चहुतरफा राजनैतिक पहुंच वाले बलात्कारी बाबा को बेनकाब करने की कीमत जान देकर चुकानी पड़ी।

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पीएमओ ने नहीं हाईकोर्ट ने खबर का संज्ञान लेते हुए सीबीआई जांच का आदेश दिया था, फैसला आने में 15 साल लग गए, इस दौरान इसने और कितना क्या किया होगा?

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संपत्ति. शोहरत, शक्ति के उंमाद में मदमस्त इसके दिमाग में कभी यह बात आई ही नहीं होगी कि हर खूंखार भेड़िया एक-न-एक दिन मारा ही जाता है।

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अटल और मोदी में गुणात्मक नहीं मात्रात्मक फर्क है, संवेदनशीलता में क्रूरता के अर्थों में

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अटल 2002 में प्रधानमंत्री थे। अपनी भंड़ैती शैली में आंसू बहाते हुए इतिहास पर कालिख कह कर पलटी मारते हुए मामले को क्रिया-प्रतिक्रिया; राजधर्म-अपद्धर्म के शब्दाडंबर और गोल-मटोल तर्क में फंसाकर प्रकारातंर से राजीव गांधी का वक्तव्य दोहरा दिया कि बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है। तीन महीने धरती हिलती रही और भाजपा के युगपुरुष रेकोर्स रोड के दुर्ग में आरएसएस के 'मुखौटा' बने, पंजीरी खाकर राजधर्म-अपद्धर्म का भजन गाते रहे। किसी भी कानून व्यवस्था के मसले पर गैरभाजपा शासित राज्यों में धारा 356 के तहत राष्ट्रपति शासन की मांग करने वाली पार्टी के शीर्ष पुरुष को, बेटवारे के बाद भीषण अभूतपूर्व नरसंहार; सामूहिक बलात्कार; आगजनी-लूटपाट; दूरगामी परिणामों वाले अभूतपूर्व स्थाई आंतरिक विस्थापन और उससे होने वाली पारंपरिक और संवैधानिक सामासिक संस्कृति को अपूरणीय क्षति राष्ट्रपति शासन के लिए नाकाफी लगी।

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अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी में अंतर | Difference between Atal Bihari Vajpayee and Narendra Modi

मोदी के अहंकार और संवेदना की क्रूरता और दिमागी कुटिलता को देखते हुए अटलजी बेहतर दिखते हैं लेकिन दोनों में कोई बुनियादी फर्क नहीं है, दोनों ही नागपुरिया मुखौटे हैं।

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