महात्मा गांधी – विराट व्यक्तित्व को समझने की अधूरी कोशिश… The great personality of Mahatma Gandhi महात्मा गांधी के विराट व्यक्तित्व की थाह पाना असंभव है। विश्वकवि रवींद्रनाथ ठाकुर उनके सहचर मित्र थे तो उपन्यास सम्राट प्रेमचंद उनके अनुयायी। ”युद्ध और शांति” के कालजयी लेखक लेव टॉल्सटाय से उन्होंने प्रेरणा ली तो ”ज्यां क्रिस्तोफ” जैसी महान कृति के उपन्यासकार रोम्यां …
Read More »ललित सुरजन
भगत सिंह ने जवाहरलाल नेहरू को अपना नेता क्यों माना? सुभाषचंद्र बोस ने महात्मा गांधी को ”राष्ट्रपिता” का संबोधन क्यों दिया?
स्वाधीनता और जनतंत्र का रिश्ता | Relation of freedom and democracy आज हम आज़ादी के बहत्तर साल पूरे कर स्वाधीन मुल्क के तिहत्तरवें वर्ष में पहला कदम रख रहे हैं। इस मुबारक मौके पर एक पल रुककर हमें खुद से पूछना चाहिए कि देश की स्वतंत्रता हासिल करना हमारा अंतिम लक्ष्य था या किसी वृहत्तर लक्ष्य की पूर्ति के लिए …
Read More »साठ साल का देशबन्धु
‘प्रिंटर्स डेविल’ (Printer devils) याने छापाखाने का शैतान अखबार जगत (Newspaper industry) में और पुस्तकों की दुनिया में भी एक प्रचलित मुहावरा रहा है। छपी हुई सामग्री (Printed material) में कोई शब्द या अक्षर इधर का उधर हो जाए, फलत: अर्थ का अनर्थ होने की नौबत आ जाए तो उसे किसी अदृश्य शक्ति याने शैतान की कारगुजारी बता कर बच …
Read More »संघ-भाजपा हारे, मोदी जीते, अहम् ब्रह्मास्मि मोदीवाद का पहला सूत्र
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शिवराज सिंह चौहान ने एक वाक्य में पूरी कहानी कह दी है कि ”यह मोदीवाद की जीत है।” इसके साथ ही उन्होंने नरेंद्र मोदी को एक उच्चतर धरातल पर स्थापित कर दिया है। पूंजीवाद, साम्राज्यवाद, साम्यवाद, गांधीवाद, समाजवाद, माओवाद आदि की तर्ज पर गोया एक नया राजनीतिक …
Read More »नरेंद्र मोदी को न एनडीए की परवाह है, न भाजपा की, और न पितृसंस्था संघ की
एक ओर अभूतपूर्व शोर-शराबा, दूसरी तरफ असाधारण चुप्पी। सत्रहवीं लोकसभा (Seventh Lok Sabha) के चुनावी परिदृश्य (Electoral scenario) को शायद इस एक वाक्य में समेटा जा सकता है! इतना शोर क्यों है, कारण समझना शायद कठिन नहीं है। एक तो चुनाव आयोग (Election Commission) ने पूरी प्रक्रिया संपन्न होने के लिए बेहद लंबा वक्त दे दिया। 10 मार्च को चुनावों …
Read More »‘न्याय’ : भाजपा की शंका के मुकाबले कांग्रेस के वायदे पर एतबार क्यों है ?
[siteorigin_widget class=”ai_widget”][/siteorigin_widget] ‘न्याय’ : भाजपा की शंका के मुकाबले कांग्रेस के वायदे पर एतबार क्यों है ? कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी (Congress President Rahul Gandhi) ने न्यूनतम आय योजना (Minimum income plan) अर्थात ‘न्याय‘ लागू करने की बात क्या कही, इस चुनावी माहौल में खलबली मच गई। पक्ष और विपक्ष ही नहीं, दूर किनारे पर बैठे लोग भी अपनी-अपनी तरह …
Read More »वेलेन्टाइन डे का भारतीयकरण और विरोध
हम जैसे पत्रकारों के लिए यही उचित है कि चुनाव यदि युद्ध है तो वर्तमान सत्ता के विरुद्ध न लिखें
अडवाणी हों या मोदी : क्या फर्क पड़ता है?
राजनीति के अध्येता जानते हैं कि श्री अडवाणी एक महत्वाकाँक्षी नेता हैं तथा पिछले पच्चीस वर्षों से वे प्रधानमन्त्री बनने की फिराक में लगे हुये हैं। 1990 में उनकी रथयात्रा का मकसद आखिरकार क्या था?
Read More »प्रचंड और बाबूराम भट्टराई जनतान्त्रिक राजनीति में आ सकते हैं तो भारत के माओवादियों क्यों नहीं
नक्सली हिंसा : नजरिया अपना-अपना Prachanda and Baburam Bhattarai can enter democratic politics, so why not the Maoists of India ? भारत, जैसा कि नाम से ही अभिव्यंजित होता है, बुद्धिमानों का देश है। इसीलिये इस विशाल भूमण्डल पर ऐसी कोई भी समस्या नहीं है, जिसका समाधान चुटकी बजाते इस देश के वासी न कर सकें। हर व्यक्ति जैसे अपने साथ …
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