आशुतोष कुमार
मायावतीजी का संघर्ष अलग है, चन्द्रशेखर आज़ाद रावण का अलग। मायावतीजी को सर्वजन की राजनीति करनी है और आज़ाद को युवजन की। दोनों का टांका जोड़ने की महत्वाकांक्षा रखने वाले साथी बेकार की मेहनत कर रहे हैं।
मायावतीजी बहुजन की जमीन पर टिकी रहतीं तो देश की सबसे बड़ी नेता के रूप में उभरने की हर सलाहियत रखती थीं।
पढ़िए, Ratan Lal का दोटूक विश्लेषण।
बहनजी का #सहारनपुर दौरा:
अभी-अभी बहनजी का पूरा भाषण सुना, अत्यंत निराशाजनक! मिश्राजी का वैचारिक प्रभाव/वर्चस्व स्पष्ट दिखाई दे रहा था. जिस तरस से ‘सर्वसमाज’, सदियों से ‘भाईचारा’ इत्यादि भाषण दे रहीं थीं, और संत-महात्माओं की जयंती मनाने की बात कर रहीं थीं, लगता है यदि फिर वे शासन में आईं तो हो सकता है ‘मनु’ महाराज की जयंती मनाने की भी इज़ाज़त दे दें. पूरा भाषण एक मज़बूत वैचारिक नेता का नहीं, बल्कि या तो एक ‘अवसरवादी’ नेता या एक वैसे 'साधु' का भाषण लग रहा था , जिसमें सबको खुश करने का पुट था. लगा उन्हें केंद्र सरकार ने ही भेजा था वहां – शांति और समझौता कराने! पूरा घटना एक आपराधिक मामला था. अत्याचार की बात संसद में उठाने, जांच की मांग करनी चाहिए थी. लेकिन यह भाषण गाँव के एक ‘सरपंच’ का लग रहा था, जो दोनों पक्षों को बैठकर समझौता कराने में लगा हो.
सहारनपुर घटना नहीं, संकेत है. देश भर में इस तरह के अत्याचार बढ़ें है, इसे व्यापक मुद्दा बनाने की दरकार थी, लेकिन बार-बार भाईचारा-भाईचारा, सर्व-समाज, सर्व-समाज बोलने से शायद उनकी कोई मजबूरी दिख रही थी.
बार-बार यह कहना कि सदियों से ‘भाईचारा’ रहा है, इतिहास का कौन सा पठन मिश्राजी ने सिखलाया है समझ में नहीं आया! किस तरह का ‘भाईचारा’ रहा है, यह भी बतलाना चाहिए था! संघ के भाईचारे और सर्व समाज के नारे और बहनजी के भाईचारे और सर्वसमाज की अपील में कोई अंतर था क्या?
क्या यथास्थितिवाद से डॉ. आंबेडकर के सपनों का भारत बन पायेगा. यथास्थितिवाद से ‘समानता’ या ‘भाईचारा’ प्राप्त की जा सकती है. जयंती क्या सिर्फ एक पार्टी के झंडे के तले मनाई जा सकती है? क्या ‘भाईचारा’ सिर्फ हृदय परिवर्तन की अपील से प्राप्त किया जा सकता है, इत्यादि ऐसे कई सवाल हैं जो मन-मस्तिष्क में कौंध रहे हैं. एक बार जरुर सुनिए उनका भाषण!
देश भर में हर जगह दलितों के पीठ पर डंडे पड़ रहे हैं, भेदभाव हो रहा है, दमन हो रहा है, आरक्षण की धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं, निजीकरण द्वारा आरक्षण को ख़त्म किया जा रहा है और आपको 'सर्वसमाज' और 'भाईचारा' दिखाई दे रहा है. आपका भाषण वैसा ही था जैसे बिल्ली से दही की रखवाली का आग्रह किया जा रहा हो. घोर निराशा!!!
मैंने कल ही लिखा था इस तरह के मुद्दे को व्यापक राजनीतिक प्रश्न बनाइयेगा और सिर्फ चंदा और आश्वासन देकर मत आइयेगा.
बहनजी, अपने यहाँ एक टीम गठित कीजिए जो डॉ. आंबेडकर को पढ़ें और आपको समझाएं!
अभी भी एक वैचारिक रूप से आक्रामक दलित नेतृत्व की जरुरत है!!!!