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सत्तर साल कांग्रेस ने लूटा ! पर ईमानदार भाजपा ने चुनाव में झोंक दिए 27,000 करोड़ यानी भारत के रक्षा बजट का दस प्रतिशत।

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hastakshep
07 Jun 2019
New Update
देश को साम्प्रदायिकता की आग में झोंक कर सत्ता हासिल करने की कोशिश

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नई दिल्ली, 07 जून 2019. कांग्रेस नेता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आज हम एक महत्वपूर्ण मुद्दा उठाना चाहते हैं, एक फंडामेंटल मुद्दा है और वो है कि आप कहाँ तक, किस हद कर, किस आयाम तक भारतीय चुनावों का व्यापारीकरण करेंगे, कमर्शिलाइजेशन करेंगे। एक चिंताजनक रिपोर्ट आई है, स्थापित संस्था द्वारा, जो अपनी जांच, रिसर्च के लिए जानी-मानी है, सेंटर फॉर मीडिया स्टडी, एक स्वतंत्र संस्था है। उन्होंने ये अनुमान लगाया है कि लगभग 60,000 करोड़ रुपए इस चुनाव में जो अभी खत्म हुआ, व्यय हुआ है। ये आंकड़ा अपने आपमें चिंता का विषय है और हम ये आपके समक्ष रखना चाहते हैं और देश के समक्ष उठाना चाहते हैं।

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इससे भी ज्यादा चिंताजनक बिंदु है कि इस 60,000 करोड़ रुपए में से लगभग आधा, 45 प्रतिशत 27,000 करोड़ रुपए सिर्फ एक पार्टी ने व्यय किया। एक पार्टी, सत्तारुढ़ पार्टी ने 45 प्रतिशत इसका, यानि लगभग 27,000 करोड़ रुपए व्यय किया है।    

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तीसरा बिंदु कि बाकी सब पार्टियां कोई निकट दूसरे स्थान पर नहीं थी, दूर थीं, बहुत दूर थी - 15 प्रतिशत, 10 प्रतिशत, 20 प्रतिशत इत्यादि।

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श्री सिंघवी ने तुलनात्मक रूप से एक संदर्भ देने के लिए बताया कि 27,000 करोड़ रुपए भारत के शिक्षा के कुल बजट का 30 प्रतिशत हिस्सा होता है। यानि पूरे भारत देश का शिक्षा का बजट इससे तीन गुना होता है। यह हमारे स्वास्थ्य के अखिल भारतीय बजट का 40 या 43 प्रतिशत होता है, यानि आधे से थोड़ा कम। बीजेपी द्वारा चुनाव में किया कथित खर्च यानि 27,000 करोड़ रुपए, भारत के रक्षा बजट का 10 प्रतिशत हिस्सा है। भारत ही क्यों, विश्व की सबसे बड़ी निर्माण की जो स्कीम है मनरेगा, उसका 45 प्रतिशत है ये 27,000 करोड़ रुपए और नमामि गंगे पूरे पिछले 5 वर्षों में यानि 2014 से 2019 के दौरान मोदी सरकार के पूरे नमामि गंगे के प्रोजेक्ट में 24,000 करोड़ व्यय किया सरकार ने, पूरे नमामि गंगे पर और गंगा लगभग डेढ़ हजार किलोमीटर लंबी है और इस बार चुनाव में 27,000 करोड़ रुपए खर्च किया।

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उन्होंने कहा कि इसका सातवां बिंदु अगर आप देखें, वो भी रोचक है कि 1998 और 2019 के बीच में यानि लगभग 21 वर्षों में ये करीब-करीब 6-7 गुना बढ़ गया है, अखिल भारतीय स्तर पर, पूरा व्यय। 10,000 करोड़ से थोड़ा कम और अब 60,000 करोड़ रुपए। ये सब आंकड़े उस स्टड़ी में दिए गए हैं। ये मुद्दा सिर्फ आंकड़ों का नहीं है, ये मुद्दा है एक समतल जमीन का और आज समतल जमीन का मतलब सिर्फ लेवल प्लेइंग फील्ड से नहीं, समतल जमीन का मतलब होता है कि Without a level playing field, you cannot have a fair, independent and objective, non-partisan elections and if you cannot have fair level playing field elections, then you cannot have democracy and if you can’t have democracy, you cannot have basic structure of the Indian Constitution.   क्योंकि ये भारत के संविधान के मूल ढांचे का एक अभिन्न अंग है और कहीं ना कहीं ये इस समतल जमीन, लेवल प्लेइंग फील्ड को विकृत करता है।

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श्री सिंघवी ने कहा अगर आप वोटर के हिसाब से यानि कितने वोटर होते हैं, एक संसदीय कांस्टिट्यूंसी में, उसका नया आयाम लें तो उसका एक चौंकाना वाला फिगर आता है कि 60,000 करोड़ के आंकड़े को अगर आप भारत में सामूहिक रूप से जितने वोटर हैं, उतने लाखों-करोड़ों से गणित में डिवाइड करें तो 100 करोड़ प्रति पार्लियामेंट्री कांस्टिट्यूंसी, संसदीय क्षेत्र का चौंकाने वाला आंकड़ा आता है और इन 100 करोड़ में से 45 प्रतिशत एक पार्टी ने एक कांस्टिट्यूंसी के लिए खर्च किया होगा। यानि लगभग 45 करोड़, बीजेपी ने प्रति संसदीय क्षेत्र में खर्च किया है।

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हम इसका व्यंग्य कर सकते हैं, हम आपको कह सकते हैं कि भाजपा ने ये चुनावी नीति अपनाई है कि पैसे फैंको। हम ये भी कह सकते हैं कि भाजपा ने धनबल एक चुनावी हल निकाला है। हम ये भी कह सकते हैं, पुराने मुहावरा जैसे, कि भाजपा के लिए जनता बड़ी है या नहीं है, इसमें संदेह हो सकता है कि जनता बड़ी हो या ना हो भईया, पर the whole thing is सबसे बड़ा रुपया।

कांग्रेस नेता ने कहा कि हम पहली मांग ये करेंगे कि इतने बड़े पैमाने पर 45 प्रतिशत का जो व्यय हुआ है, उसके सोर्सिज बताएं।

उन्होंने कहा कि दूसरा याद दिलाएंगे, माननीय प्रधानमंत्री को कि नोटबंदी के बाद जो वायदा था, तो प्रत्यक्ष आपको देश के सामने बता चाहिए कि ये सब स्त्रोत हम तो सिर्फ रिपोर्ट की बात कर रहे हैं, ये हमारे आरोप नहीं हैं, ये जांच ने बताया है, ये रिसर्च ने बताया है, तो कृपया देश से शेयर करें कि इसमें से कितना नंबर वन है, कितना नंबर टू है और वो सोर्स से मालूम पड़ जाएगा।

तीसरा, क्या बहुत अधिक मात्रा में इसका हिस्सा ये नए इलेक्ट्रोल बांड के विषय से नहीं आया है, जरिए ये नहीं आया है क्या और  भविष्य में इतना ज्यादा व्यापारीकरण, कमर्शियलाइजेशन, इंडस्ट्रीलाइजेशन ऑफ इलेक्शन, मॉनिटाइजेशन ऑफ इलेक्शन किया जाएगा तो उसके विषय में सरकार क्या करना चाहेगी और सत्तारुढ़ पार्टी क्या कहना चाहेगी? उसके विषय में भी एक वाइट पेपर दें, श्वेत पत्र दें और नहीं तो देश को अवगत कराएं।

सत्ताधारी दल के पक्ष में बनाए गए अपारदर्शी इलेक्ट्रोल बांड स्कीम में सत्ताधारी दल को फायदा पहुंचाया है, जिसकी कमियों के बारे में कांग्रेस पार्टी ने बार-बार आवाज उठाई है और कांग्रेस पार्टी ने इस बांड स्कीम को बंद करने का चुनाव में वायदा भी किया था।

कांग्रेस ने राष्ट्रीय चुनाव कोष स्थापित करने की मांग की है, जिसमें कोई भी व्यक्ति योगदान कर सके और जिसका कानून द्वारा निर्धारित मापदंडों के अनुसार मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को चुनाव के समय धन आवंटित किया जाए।

इसी संदर्भ में पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि जो डिटेल डिस्क्लोज कर रहे हैं, वो 27,000 करोड़ के नहीं हैं, ये उनके रिटर्न के हैं, मैं तो रिपोर्ट की बात कर रहा हूं। इस रिपोर्ट के अनुसार 60,000 करोड़ में से 27,000 करोड़ एक विशेष पार्टी ने खर्च किए हैं, जो रिटर्न डिस्क्लोज हुए हैं वो 27,000 करोड़ के नहीं हैं।

उन्होंने कहा मैं तो सरकार से जवाब मांग रहा हूं, मैं तो रिपोर्ट के आधार पर सरकार से जवाब मांग रहा हूं। आप उसको खंडित करिए। आप आंकड़ों के आधार पर कल 15 सैंकड में इसको खंडित कर सकते हैं।

एक अन्य प्रश्न पर कि आप ये कहना चाहते हैं कि जो भाजपा ने चुनाव आयोग में रिपोर्ट जमा कराई है या कराने जाएगी, वो गलत है और जो रिपोर्ट आई है, वो सही है, डॉ. सिंघवी ने कहा कि मैं ये नहीं कह रहा हूं, ये आंकड़ा कहीं भी किसी ने उसके विषय में कोई टिप्पणी नहीं की है, हम पहली टिप्पणी कर रहे हैं, सत्तारुढ़ पार्टी ने इसके विषय में कोई टिप्पणी नहीं की है। लेकिन एक बात निश्चित है, हम भी जानते हैं, आप भी जानते हैं कि इस रिपोर्ट ने रिसर्च के आधार पर प्रकाशित किया है सामूहिक एक्सपेंडिचर और उसका आंकड़ा 45 प्रतिशत बीजेपी ने लगाया है। तो कोई किसी ने ये तो नहीं कहा, क्या बीजेपी ने ये कहा है कि हमने इस चुनाव में 27,000 करोड़ रुपए खर्च किए हैं तो कैसे रिटर्न फाइल कर सकते हैं। तो हम तो एक्सपलानेशन मांग रहे हैं, वो कह सकते हैं कि रिपोर्ट गलत है, वो कह सकते हैं कि हमने 2,000 करोड़ रुपए खर्च किए हैं, तभी तो हम ये रिपोर्ट रख रहे हैं।

एक अन्य प्रश्न पर कि कांग्रेस पार्टी एक रिपोर्ट के आधार पर ये कैसे कह सकती है कि किसी पार्टी ने चुनाव में कितना पैसा खर्च किया है, कितना नहीं, डॉ. सिंघवी ने कहा कि हम आपको सबकुछ से अवगत कराएंगे। इस रिपोर्ट के अनुसार 15 प्रतिशत किए हैं। हम इसके बारे में आपको अवगत कराएंगे, हमारा तो ये कर्तव्य बनता है, हम तो पूछ रहे हैं। लेकिन आप ये प्रश्न पहले उनसे पूछें, जिन्होंने 45 प्रतिशत एक पार्टी ने किए हैं, ये मेरा मूल मुद्दा है। आपको मैं यहाँ आश्वस्त करता हूं कि अगर इस रिपोर्ट के विषय में आपको सत्तारुढ़ पार्टी अवगत कराएगी तो उससे ज्यादा डिटेल से हम आपको अवगत कराएंगे, दोहरे मापदंड तो हो नहीं सकते हैं।

तेलंगाना में कुछ कांग्रेस विधायकों द्वारा दल बदल के विषय के संदर्भ में पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि हमने आपको स्पष्ट किया है कि तेलंगाना में एक राजनीति नीति अपनाई गई है पिछले एक वर्ष से। सीधा खरीद-फरोख्त, परचेज और इसके आपके पास भी तथ्य हैं, हमारे तेंलगाना प्रदेश अध्यक्ष ने दिए हैं, बात सही है, ये दुखद प्रसंग है, दुर्भाग्यपूर्ण है। लेकिन ये वही मुद्दा उठाता है कि इतना नंगा नाच, कमर्शियलाइजेशन जब होगा तो उसका एक और दुष्प्रभाव और पहलू ये है। जहाँ तक आप बाकी प्रदेशों की बात कर रहे हैं, मैं नहीं समझता हूं कि आपको इसका कोई संबंध करना चाहिए तेलंगाना से। तेलंगाना में जो हुआ है ये पैसे के नंगे नाच से हुआ है और इसकी हम भर्त्सना करते हैं। लेकिन ये सच्चाई उस प्रदेश में एक नई शैली वहाँ की सत्तारुढ़ सरकार और मुख्यमंत्री लाए हैं, ये दुर्भाग्यपूर्ण बात है।

इसी संदर्भ में डॉ. सिंघवी ने कहा कि ये औद्योगीकरण कमर्शियलाइजेशन के नंगे नाच से हुआ है, सेंट्रल लीडरशिप से कोई संबंध नहीं रखता है। राहुल गांधी जी आज कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, बाकी निर्णय आपको पता है, लंबित हैं, निकट भविष्य में जब वो होंगे तो आपके समक्ष पहले रखे जाएंगे। उसका तेलंगाना से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है।

पूर्व केन्द्रीय मंत्री असलम शेरखान द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष श्री राहुल गांधी को लिखे गए कथित पत्र के संदर्भ में पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि ये मामले चुनावी जो समीति होती है इस विषय में, वो निर्णय करती है, ना कि प्रेस वार्ता में। लेकिन मैं आपको याद दिला दूं कि अभी नहीं, 15 वर्ष से पहले से ये प्रक्रिया कांग्रेस में हुई है, चुनाव हुए हैं, लोग आए हैं, गए हैं, लोग खड़े हुए हैं, ना ये नया है, ना ये पहली बार है, ना ये आखिरी बार है।

पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान श्री महेन्द्र सिंह धोनी के संदर्भ में पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि ये एक बिल्कुल अमुद्दे या नोन मुद्दे को मुद्दे बनाने की प्रक्रिया है। एक राई का पहाड़, Storm in a cup of tea धोनी जी ने जो भी सिंबल का इस्तेमाल किया, मैं नहीं समझता कि कोई इसे धार्मिक सिंबल समझता है, किसी प्रभाव से कोई दुष्प्रभाव का सिंबल समझता है, कोई सामाजिक असंतुलन पैदा करने वाला सिंबल समझता है। अगर किसी ने गौरव दिखाया है, जिसके विषय में हम सभी बहुत गौरव महसूस करते हैं, सेना के अंगों के विषय में, शूरवीर कार्यों के विषयों में, तो मैं नहीं समझता कि इसमें राई का पहाड़ खड़ा करने की आवश्यकता क्या है? हाँ, उन्होंने कोई धार्मिक असहिष्णुता का सिंबल दिखाया होता, उन्होंने कोई आपसी वैमनस्य भेदभाव का सिंबल दिखाया होता, कोई सामाजिक असंतुलन का सिंबल दिखाया होता, जो मैं नहीं समझता। फिर इसे मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है।

अलीगढ़ में ढाई साल की मासूम बच्ची की जघन्य हत्या के मामले में पूछे एक अन्य प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंघवी ने कहा कि ये एक इतनी घृणात्मक चीज है कि मैं समझता हूं कि मैं बोलने में असमर्थ हूं। मुझे विश्वास नहीं हुआ कि ये हुआ भी है। मैंने दो बार चैक किया, इस प्रकार की एक घृणात्मक सोच भी होना किसी मानव में किसी और के प्रति, वो भी बच्चे के प्रति, शिशु के प्रति, इसके बारे में हम कड़े से कड़े शब्द इस्तेमाल कर सकते हैं, तुरंत दंड की मांग कर सकते हैं, मृत्यु दंड की मांग करनी चाहिए, इत्यादि-इत्यादि। ये अपने आपमें ऐसी चीज है जो पूरी ह्यूमेनिटी को, अपने मस्तिष्क को शर्म से झुका देना चाहिए।

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