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2018 में जनता पर नहीं चला भाजपा का मोदी मैजिक, मिली हार ही हार
दावं पर लगा मोदी के झूठ का किला
राज्य मुख्यालय लखनऊ। सियासत में अगर बात साल 2018 की करें तो यह मोदी की भाजपा के लिए बेहतर नहीं रहा, वहीं राहुल गांधी को यह साल काफ़ी कुछ दे गया, जैसे पप्पू का दाग एक तरह से मिट जाना, सत्ता पक्ष या विपक्ष के द्वारा उनको हलके में लेना अब शायद सब पर भारी पड़ जाए, क्योंकि उन्होंने 2018 में बहुत सफलताएँ प्राप्त की हैं।
2013 से चला भाजपा की जीत का सिलसिला रूकने का नाम नहीं ले रहा था, जिसे बाद में मोदी मैजिक का नाम दिया गया, लेकिन साल 2018 ने मोदी मैजिक की हवा निकाल दी इसे झुठलाया नहीं जा सकता है। इस साल की शुरूआत में राजस्थान की दो और पश्चिम बंगाल में लोकसभा की एक सीट पर उपचुनाव हुए जहाँ से झूठ की बुनियाद पर टिका मोदी मैजिक हवा हवाई हो गया, तभी से मोदी की भाजपा की हार का सिलसिला साल के आखिर तक जारी है।
इस साल लोकसभा की 13 सीट पर उपचुनाव हुए, जिसमें मोदी की भाजपा को 11 पर हार का मुँह देखना पड़ा, जबकि इन 13 सीटों में से मोदी की भाजपा के पास 9 सीट थीं, जिसमें से वह मात्र दो सीट बचा पाने में कामयाब रही।
साल के आखिर में 11 दिसम्बर को आए पाँच राज्यों के विधानसभाओ के परिणामों ने तो मोदी की भाजपा को और उसके स्वयंभू चाणक्य अमित शाह के चुनावी गणित को चूर-चूर कर दिया और पप्पू, गप्पू पर भारी पड़ गया।
गत मार्च महीने में बिहार गत मई में यूपी में ऐसी दुर्गति हुई कि यूपी के स्वयंभू हिन्दू ह्रदयसम्राट कहने व समझने वाले मुख्यमंत्री व उप मुख्यमंत्री व एक वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री स्वर्गीय होने के बाद हुए गोरखपुर, फूलपुर व कैराना के उपचुनाव में ज़बरदस्त हार का सामना करना पड़ा। हद तो यह रही कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के अपने बूथ तक से भाजपा चुनाव हार गई। गोरखपुर व फूलपुर लोकसभा के उपचुनाव योगी आदित्यनाथ के सीएम व फूलपुर लोकसभा का चुनाव केशव प्रसाद मौर्य के उप मुख्यमंत्री बन जाने की वजह से और कैराना पर वहाँ के सांसद चौधरी हुकुम सिंह के निधन के बाद हुए विपक्ष ने मोदी की भाजपा को बुरी तरह हराया।
महाराष्ट्र की भंद्दारा-गोंदिया सीट पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने मोदी की भाजपा को हार का स्वाद चखने को मजबूर कर दिया। पालघर सीट किसी तरह वह बामुश्किल तमाम बचाने में तो कामयाब रही, लेकिन विपक्ष ने दाँत खट्टे कर दिए।
नागालैंड लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में एनडीपीपी ने जीत दर्ज की। नवंबर के महीने में कर्नाटका में तीन सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस बेल्लारी सीट बड़ी आसानी से जीतने में कामयाब रही। जनता दल सेकुलर ने मंड्या सीट जीत ली और मोदी की भाजपा शिवमोगा सीट ही बचा पाई, वह भी उसकी जीत नहीं कही गई। चुनावी जानकारों का मानना है कि पूर्व मुख्यमंत्री येदुरप्पा की सीट होने की वजह से उनका पुत्र जीता न कि मोदी की भाजपा।
साल के शुरू में राजस्थान व बंगाल से चला हार का सिलसिला साल के अंत तक जारी रहने से मुश्किल में मोदी की भाजपा अपनी सरकार के कामकाज की समीक्षा करने को मजबूर हो रही है। जिस जीएसटी को लेकर वह विपक्ष व जनता की परेशानियों को सुनना भी पसंद नहीं करती थी, वह अब उस पर छूट देने के लिए विवश हो रही है। असल में मोदी सरकार बनने के बाद सत्ता दो जगह तक महदूद होती गई, वह जो फ़ैसला करे उसे ही मानने को मजबूर किया गया। नोटबंदी का फ़ैसला हो या जीएसटी लागू करना हो उस पर गंभीरतापूर्वक विचार नहीं किया गया. जिससे देश काफ़ी पीछे चला गया और आम नागरिक की आय में बढ़ोतरी की बजाए कम होती गई, लेकिन जनता को मोदी के झूठ पर आधारित मैजिक से यह महसूस कराया गया कि यह फ़ैसले करने पड़ेंगे इससे आतंकवाद व नक्सलवाद सहित कालेधन वाले सही हो जाएँगे। परन्तु जब भ्रम टूटा तो सब कुछ सच निकलकर सामने आ गया। ऐसा कुछ भी नहीं हुआ जिसके बाद आम आदमी को लगने लगा कि मोदी की सारी तैयारी बिलकुल ग़लत दिशा में की गई थी उसी का परिणाम है साल 2018 उनके झूट का अंत करता साबित हुआ।
मोदी की सरकार ने अपना पूरा कार्यकाल पण्डित जवाहर लाल नेहरू व गांधी परिवार को कोसने में काट दिए। आए थे विकास के नाम पर व भ्रष्टाचार को खतम करने के नाम पर, लेकिन किया कुछ नहीं। भ्रष्टाचार का आलम यह है कि पहले से कही ज़्यादा हो गया है। अब जनता अपने चुनावी मैजिक से मोदी के मैजिक की हवा निकालती दिख रही है। देखना यह होगा कि क्या ये सिलसिला 2019 में भी जारी रहेगा या मोदी एक बार फिर अपने झूठ के मैजिक से अपनी नया पार करने में सफल रहेंगे।
यही कहा जा सकता है कि आना वाला साल मोदी और विपक्ष दोनों के लिए ही अहम रहेगा।
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