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आस्था का कंडोम कारोबार और स्त्री के अधिकार

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आस्था का कंडोम कारोबार | Condom trading of faith

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आज की सबसे अच्छी खबर यह है कि अविवाहित मां को सुप्रीम कोर्ट ने मातृत्व के अधिकार दे दिये (Supreme Court granted maternity rights to unmarried mother) हैं। विशुद्धता और खाप संस्कृति के धर्मांध में अब भी दासी मुक्त बाजार (Free market) में खरीदने वाली सामग्री के रूप में इस्तेमाल की जा रही स्त्री के सशक्तीकरण (Empowerment of woman) की इससे कौन सी दिशा खुलेगी और उनकी गुलामी की जंजीरें कैसे टूटेंगी, इसका हमें अता पता नहीं है। फिर भी यह एक ऐतिहासिक फैसला है लेकिन इस फैसले को स्त्री के हक में बदलने के लिए स्त्री को धर्मोन्माद, खाप संस्कृति और मुक्तबाजार की उपभोक्ता संस्कृति से मुक्त करने की भी बारी चुनौतियां सामने हैं।

आज की दूसरी बड़ी खबर है कि नासिक कुंभ में कंडोम की कमी (Condom deficiency in Nashik Kumbh) प्रशासन के लिए भारी सरदर्द का सबब है क्योंकि कंडोम की मांग दोगुणी है और गर्भनिरोधक की मांग में भी पचास फीसद वृद्धि हो गयी है।

गौरतलब है कि 14 जुलाई को शुरू हो रहे नासिक से पहले कंडोम की कमी के कारण से एड्स और एचआईवी के खतरे की आशंका जताई गई है। खबरों के अनुसार नासिक में सिर्फ 50000 कंडोम ही स्टॉक में बचे हैं। ऎसे में असुरक्षित सेक्स के बढ़ने का खतरा बढ़ गया है।

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एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के मुताबिक महाराष्ट्र स्टेट एड्स कंट्रोल सोसायटी (Maharashtra State AIDS Control Society) ने कंडोम की कमी की शिकायत करते हुए और कंडोम की मांग की है। सोसायटी के एक अफसर के मुताबिक नासिक में फीमेल सेक्स वर्कर्स के लिए 50000 कंडोम ही स्टॉक में बचे हैं। यह स्टॉक कुंभ से पहले खत्म हो जाएगा। अधिकारी के मुताबिक नाको ने कंडोम की आपूर्ति बंद कर दी है।

अपनी सरकारों को और मीडिया को भी रोटी और रोजगार, जल जंगल जमीन आजीविका पर्यवरण के मसले कोई मसले नहीं लगते। आपदाओं का सिलसिला जो है, वह भी इन दिनों तब तक खबर नहीं है जब तक न कि हेलीकाप्टरों से उड़ान और धुंआधार बचाव राहत अभियान की चांदी हो। लेकिन कंडोम की चिंता बहुत है कि धर्म कर्म के लिए कंडोम उतना ही जरुरी है, जितना कि अर्थव्यवस्था के लिए विश्वसुंदरियां।

बाकी राजस्व जो बनता है पोर्टल से वह तो पोर्न का धंधा है, लोग वही देखते पढ़ते हैं और थ्रीजी फोर जी का मतलब भी वही कंडोम कारोबार है।

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कामशास्त्र को रचने वाले भी ऋषि थे तो अमल करने वाले भी साधु संत बापू वगैरह वगैरह होंगे जो धर्मोन्माद का कारोबार भी खूब करते हैं। चौसठ आसनों का राष्ट्रधर्म अब उनका राजकाज भी है। बाकी कास्टिंग काउचो भौते हैं।

पुरुष वर्चस्व वाले इस धर्मोन्मादी समाज में स्त्री के हक हकूक का मामला भी इसी तरह कंडोम में निष्णात हैं।

इसी कंडोम कारोबार के चलते हर धर्मस्थल पर हजारों साल से देहमंडी है और राजकपूर ने वर्षों पहले गंगा के बहाव के साथ साथ धर्मस्थलों पर सजी देहमंडियों का सिलसिला राम तेरी गंगा मैली में दिखाया भी खूब है।
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कैलाश मानसरोवर (Kailash Mansarover) हो या चार धाम की यात्रा (Char Dham Yatra) अब दुर्गम उतना नहीं है। पैसे हो तो फटाक से जा सकते हैं वहां और हनीमून स्पाट भी वे ही हैं। इन तीर्थ यात्रियों के धर्म-कर्म का नतीजा पहाड़ों में धर्मस्थलों के आस-पास सजे तमाम सितारों से सजी रिहाइशें हैं और पारंपारिक यात्रा अब हनीमून यात्रा में तब्दील है।

बाजार में धर्म का कायाकल्प भी खूब जाहिर है कि हो गया है। धर्मस्थलों के बाद कुंभ का यह कायाकल्प तो होना ही था।

पलाश विश्वास

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