लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस की हार के बाद विश्लेषण Analysis after the defeat of Congress in the Lok Sabha elections in 2019
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राहुल गांधी (Rahul Gandhi) से हमने कहा था कि वह भाजपा (BJP) की राजनीति के प्रतिस्पर्धी न बनें, बल्कि उसके प्रतिद्वंदी बनें। वे नरम और कठोर हिंदुत्व की विभाजन रेखा को तलाशने में अपना वक्त जाया न करें। बल्कि धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र (Secular Democracy) के प्रति और ज्यादा आस्था को व्यक्त करते हुए, धार्मिक राष्ट्रवाद(Religious nationalism) पर चोट करें।
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हमने कहा था कि जनद्रोही उग्रराष्ट्रवाद से डरे बिना पुलवामा जैसी घटनाओं पर प्रतिरोध एवं प्रतिवाद की राजनीति करें।
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हमने उनसे कहा था कि राफेल बेशक बड़ा मुद्दा है, परन्तु उसके लिए सार्वजनिक क्षेत्र की बर्बादी और सरकारी नौकरियों में कमी के सवालों को पीछे न छोड़ें, जो उन्होंने बहुत देर में छुए।
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हम चाहते थे कि चुनाव में कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियां मिलकर फासिज्म के विरुद्ध मोर्चे का गठन करते तथा देश और दुनिया को सन्देश देते कि नरेन्द्र मोदी की दक्षिणपंथी राजनीति के विरुद्ध भारत के लिए बांये-झुका लोकतान्त्रिक विकल्प हम हैं। लेकिन राहुल गांधी ने वायनाड से लड़ने के फैसले से ठीक पहले तक कई सभाओं में लेफ्ट पर ऐसे हमले किये जैसे संघी करते हैं। शायद उनसे भी कहीं आगे।
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हालाँकि कांग्रेस-कम्युनिस्ट एकता के लिए कम्युनिस्ट पार्टियों का भी प्रयास सामने नहीं आया। वे भी अपनी अखिल भारतीय भूमिका को दांव पर लगाकर क्षेत्रीय दलों की तरह कुछ ख़ास हिस्सों में जिन्दा रहने की जद्दोजहद में जुट गए। वे कांग्रेस विरोधवाद के लोहियावादी विचार (Lohiaist thoughts of anti-Congress) से ग्रस्त नेतृत्व के शिकार हुए और कांग्रेस अपनी नीतिगत उहापोह की।
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राहुल गांधी अपनी कोशिशों से राजनीति के केंद्र में तो आये लेकिन वे मोदी की दक्षिणपंथी राजनीति का विकल्प (Option of Modi's right wing politics) पेश नहीं कर सके।
कांग्रेस और संसदीय कम्युनिस्ट पार्टियां (Parliamentary communist parties) अगर अब भी मिलकर साथ चले तो अनेक क्षेत्रीय दलों को लेफ्ट या राइट ऑप्शन चूज करने की तरफ ले जायेंगे।
राहुल गांधी को समझना होगा कि कांग्रेस के लिए नेतृत्व परिवर्तन जरूरी नहीं है बल्कि जरूरी है कि वह अपनी नीतियां परिवर्तित करे, दक्षिणपंथी राजनीती का विकल्प बने, वाम को अपने साथ जोड़े।
वाम भी क्षेत्रीय भूमिकाओं की बजाय राष्ट्रीय भूमिका पर ध्यान दे, और कांग्रेस विरोधवाद को छोड़कर फासिज्म के खिलाफ अपने दायित्व का निर्वहन करे।
मधुवन दत्त चतुर्वेदी
लेखक वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।
Congress President Rahul Gandhi must understand that it is time for Congress to change policies not to change leader