Advertisment

संविधान और मनुस्मृति को आगे कर जातीय संघर्ष की तैयारी

author-image
hastakshep
13 May 2019
वर्तमान दलित राजनीति मुद्दाविहीनता का शिकार

Advertisment

लोग भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, गरीबी, पाखण्ड (Corruption, unemployment, poverty, hypocrisy) जैसे मुद्दों को लेकर आंदोलित न हो जाएं, एकजुट होकर इनके खिलाफ मोर्चा न खोल दें, इसके बचाव में जाति और धर्म के नाम लोगों को आपस में उलझाने का खेल लंबे समय से चल रहा है। देश में पांच साल तक मोदी के राज करने पर पर इस खेल ने खतरनाक रूप ले लिया है। अब फिर से मोदी सरकार बनने के प्रति आशान्वित लग रहे संघ मानसिकता के लोगों ने इस खेल को विस्फोटक रूप देने की तैयारी कर ली है। इस खेल में विपक्ष भी पीछे नहीं है। विशेषकर क्षेत्रीय दल।

Advertisment

एससी एसटी कानून में संशोधन (Amendment in SC ST law) होने के बाद दलितों का रौद्र रूप सामने आ चुका है। ऐसे ही पद्मावती फ़िल्म के नाम पर राजपूतों का उग्र आंदोलन हुआ। मोदी सरकार में देश में नफरत का ऐसा जहर खोल दिया गया है कि अब यह जातीय संघर्ष का रूप ले रहा है। इस माहौल को बनाने के लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही जिम्मेदार हैं।

Advertisment

अब जब देश का युवा वर्ग जाति धर्म की बेड़ियों को तोड़कर एक स्वस्थ समाज में जीना चाहता है। मिलकर व्यवस्था से लड़ना चाहता है तो जाति और धर्म के नाम पर राजनीति कर रहे दलों ने इन्हें उलझाने की पूरी व्यवस्था कर दी है।

Advertisment

एक ओर संविधान की आड़ में सवर्णों के खिलाफ खुला मोर्चा खोलने की रणनीति पर काम चल रहा है, तो दूसरी ओर डा. भीमराव अंबेडकर की नीतियों को सवर्ण समाज के लिए घातक बताते हुए इनकी जगह मदन मोहन मालवीय को फिट करने की तैयारी है।

Advertisment

आरएसएस और हिंदूवादी संगठनों की समाज को फिर से मनुस्मृति के आधार पर वर्ण व्यवस्था में बांटने की तैयारी चल रही है। इस बार इस लड़ाई पर गांव देहात से लेकर निजी संस्थानों और सरकारी संस्थाओं तक माहौल बनाया जा रहा है।

Advertisment

आरएसएस ने बड़ी चालाकी से राजपूत समाज को उनके इतिहास की ओर मोड़ दिया है। युवाओं को राजतंत्र की याद दिलाकर उनके अंदर राजपूती आन बान पैदा की जा रही है। उन्हें बताया जा रहा है कि कैसे- कैसे उनसे मुगलों ने राजपाट छीना। कैसे राजपूत तलवार की नोंक पर राज करते थे। मतलब भाजपा ने सत्ता के लिए युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ करने की पूरी तैयारी कर ली है। देश में हिन्दू मुस्लिम का माहौल बनाने में लगी है। इस मुहिम में दलितों के भी चपेट में आने की आशंका है।

Advertisment

मोदी भक्तों का पाकिस्तान को सबक सिखाना, मोदी की आलोचना करने पर पाकिस्तान चले जाना कहना, बात बात में औकात में रहना कहना भी इसी तैयारी का एक हिस्सा माना जा रहा है।

ऐसी ही रणनीति विपक्ष की है। विपक्ष विशेष रूप से क्षेत्रीय दल संविधान में संशोधन की आशंका बताते हुए मनुस्मृति का जमकर विरोध कर रहे हैं। दलित पिछड़ों को 85 फीसद बताकर सवर्णों के खिलाफ उकसा रहे हैं। दलितों और पिछड़ों के मन में यह बात डाल दी गई है कि संविधान में संशोधन कर उनके अधिकार छीनने की तैयारी भाजपा की है। तैयार किये जा रहे इस जातीय संघर्ष में जमीनी मुद्दे दबाये जा रहे हैं।

संविधान और मनुस्मृति को जलाने के मामले भी इसी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। संविधान में सवर्णों के हक मारे जाने की बात की जा रही है तो मनुस्मृति में दलितों और पिछड़ों के शोषण करने की।

दरसअल जो लोग देश पर राज कर रहे हैं वे अपने समाज की गरीबी को भुना रहे हैं। भले ही इन लोगों के लिए कुछ न करें पर वोटबैंक के लिए ये अपने हैं। यह हर पार्टी कर रही है। किसी भी समाज के किसी भी नेता को देख लीजिए। वह और उसका परिवार राजा महाराजाओं की जिंदगी जी रहा है। पर अपने समाज के गरीब लोगों को बस पिछलग्गू ही बनाकर रखना चाहता है। वोटबैंक के लिए अपनापन दिखाता है। हां वह बात दूसरी है कि इन लोगों का इन लोगों के पास पहुंचना भी मुश्किल है।

दरअसल सवर्ण समाज के धनाढ्य वर्ग ने अपने हिसाब से मनुस्मृति के आधार पर देश पर राज किया है। राजपूत राजा हुआ करते थे तो ब्राह्मण उनके सलाहकार। भले ही लंबे सालों तक देश पर मुगलों और अंग्रेजों का राज रहा हो पर राजतंत्र पर कोई खास असर नहीं पड़ा, हां कुछ स्वाभिमानी राजा जरूर प्रभावित हुए थे। मुगलों और अंग्रेजों दोनों के शासन काल में। इनके परिजन आज की तारीख में आम आदमी की जिंदगी जी रहे हैं। ये जो लोग आज की तारीख में राजपूती की शान बखान कर रहे हैं, जिनमें से अधिकतर वे हैं, जिनके पूर्वजों ने आजादी की लड़ाई से गद्दारी की है। असली राजपूत तो मुगलों से लड़ते-लड़ते आर्थिक रूप से टूट चुके थे। जो थोड़े बहुत बचे थे वे अंग्रेजों से टकराये थे। जिन राजाओं ने अंग्रेजी हुकूमत में आनी सम्पति बचा ली थी वे सब अंग्रेजों से मिले थे।

स्वाभिमानी और खुद्दार लोगों को तो अंग्रेजों ने आर्थिक रूप से तोड़ दिया था। लोकतंत्र में राजतंत्र जैसी बातें करना भी देश से गद्दारी मानी जाती है, और ये सब राजतंत्र तरीके से चल रहा है।

अब आजादी के लंबे समय बाद लोकतंत्र की वजह से लोगों के अपने मान सम्मान और अधिकार के प्रति जागरूक होने पर इन राजतंत्र का ख्वाब देखने वालों की जड़ें खोखली हो रही हैं। देश पर राज करने के लिए इन लोगों ने जाति और धर्म के नाम पर अपने समाज की लामबंदी युद्ध स्तर पर शुरू कर दी है।

ऐसा नहीं है कि जो नेता दलित और पिछड़ों के नाम पर सत्ता का सुख भोग रहे हैं या फिर विभिन्न संगठनों के मुखिया बने बैठे हैं वे दलितों या फिर पिछड़ों के हितैषी हैं या फिर लोकतंत्र के बहुत हितैषी हैं। जिनमें परिवार कूट कूट कर भरा है। ये सब इन्हें वोटबैंक के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। मायावती का बार-बार मोदी को नकली पिछड़ा बताना और मोदी का सबको अगड़ा बनाने की बात करना इन रणनीतियों पर काम करना दर्शाता है।

CHARAN SINGH RAJPUT चरण सिंह राजपूत, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

चरण सिंह राजपूत, लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।

ऐसा नहीं है कि यह बस एक दो समाज में ही चल रहा हो। ये आज की तारीख में हर समाज की कहानी है। क्योंकि अब समाज में जागरूकता आ गई है। हर समाज का युवा अपना भला और बुरा समझने लगा है। हक की भी बात करने लगा है। इसलिए दलित, पिछड़े और सवर्णों के नाम पर राज करने वाले लोगों ने मिलकर देश के 80 फीसद लोगों को आपस में लड़ाने की योजना बनाई है। जिससे कि ये लोग बारी बारी से इन 80 फीसद लोगों पर राज कर सकें।

इसमें दो राय नहीं कि देश पर 20 फीसद लोग ही राज कर रहे हैं। पर वे किसी जाति विशेष नहीं सभी जातियों और धर्मों के हैं। मतलब प्रभावशाली लोग। हिन्दू मुस्लिम की राजनीति से भाजपा का फायदा हो रहा है तो जातीय संघर्ष से क्षेत्रीय दलों की राजनीति चमक रही है। कांग्रेस भी इनमें से ही है।

जो लोग ये सोचते हैं कि हमें राजनीति से क्या। अब वे भी इसके चपेट में आने से बच नहीं पाएंगे।

चरण सिंह राजपूत

Advertisment
सदस्यता लें