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मुलाक़ात : कवयित्री, सामाजिक कार्यकर्त्ता लवीन कौर गिल- कनाडा
सामाजिक कार्यकर्त्ता लवीन कौर गिल (ਲਵੀਨ ਕੌਰ ਗਿਲ – ਕੈਨੇਡਾ) से जिस टिम हार्टन रेस्तरां में मुलाकात तय हुई थी, मैं वहाँ पहुँचने में २-३ मिनट लेट था। गाड़ी पार्क करते हुए देखा मेरे बराबर में लाल रंग की चमचमाती वोक्स वेगन पोलो आकर खडी हुई। टेंटेड शीशों को कुरेदते हुए मेरी नज़रों ने जायज़ा लेने की जीतोड़ मशक्कत की, किसी युवती को वही करते देख जो वो अक्सर कार रोकते ही करती है। मैं जल्दी से रेस्तरां के अन्दर दाखिल हुआ। देखा तो वह हाजिर नहीं थी जिसने वक्त मुक़र्रर किया था। खैर मैंने एक कोने की टेबल पकड़ ली और अपने कागज़, फोन करीने से रखे। टेबिल पर मुझ से पहले बैठे ग्राहक ने अपनी निशानियाँ कायदे से छोड़ रखी थी।
वीकंड की उस सुस्त सुबह में एक गोरी कर्मचारी लड़की मोपिंग कर रही थी। मैंने चाहा कि उससे पहले अपनी टेबिल साफ़ करा लूं ताकि मेरा सामान साफ सुथरा रहे। इससे पहले कि मैं अपनी जहनी कशमकश को कोई अल्फाज़ देता, मुझे खोजते हुए वह आ गयी और आते ही उसने वह काम किया जो दरअसल मुझे करना था।
‘माफ़ कीजिये सात मिनट लेट हूँ” मैंने माफ़ किया और ज्यादा वक्त ज़ाया किये बगैर सवाल पूछ लिया कि जो -
‘तुम आज हो वह क्यों हो, मेरा मतलब आपकी पारिवारिक पृष्ठभूमि क्या है?
मैं या मेरा व्यक्तित्व आज जो भी है उसमें मेरे पिताजी और उनके जीवन का बहुत बड़ा प्रभाव है, उनका जीवन मुझे उद्वेलित करता है, उनके जीवन संघर्ष ने मेरे वुजूद को बुना है। बहुत संघर्ष किये हैं मेरे पिता जी ने, तीन साल के थे तो मुल्क का बंटवारा हो गया, पाकिस्तान के फैसलाबाद जिले में उनका गाँव था वहाँ से गिल गाँव जिला लुधियाना (भारत) में आये, ४ भाई ४ बहनें। बड़ी बहन के बच्चे के साथ उनका खुद का जन्म हुआ था, फिर उनकी माँ चल बसी। घर में साग सब्जी बनाने की जिम्मेदारी उन पर तब तक रही जब तक बड़े भाई की दुल्हन न आ गयी। घर के हालत ठीक नहीं थे। मेहनत मजदूरी करने लगे। खेत मजदूरी, भवन निर्माण क्षेत्र में मज़दूरी, ट्रैक्टर ड्राइवर से लेकर टैक्सी तक चलाने का काम मेरे पिता ने किया है। जीवन संघर्ष में खुद को फन्हा करते हुए जब ३४ बरस पूरे हुए तब उन्होंने उस ज़माने में अपनी पसंद से शादी की। हम गरीब थे। गरीबों की शादियों को सौ जोखिम। मेरी मां एक महाजन की बेटी थी, बड़ी मुश्किलों से बड़ी ज़मानतों के बाद वो माने और मेरे पिता की शादी हुई।
उन्होंने वायदा किया था मेरे नाना से कि आपकी बेटी काम नहीं करेगी, खेती बाड़ी नहीं करेगी, भैंस गोबर नहीं करेगी, सो आज तक मेरी मां ने घर के बाहर का कोई काम नहीं किया’।
यहाँ कब आये मेरा मतलब कनाडा में कैसे आये?
मेरे ताऊ जी के लड़के यहाँ १९८० के दशक की शुरुआत में आये थे, उन्होंने मेरी सबसे बड़ी बहन को गोद लिया उसके सहारे फिर हम आ गए। हम लोग वेन्कूवर आये थे वहाँ तीन साल रहे फिर टोरंटो शिफ्ट हुए। यहाँ आकर भी मेरे वालिद की मेहनतकशी का सिलसिला थमा नहीं, क्या क्या नहीं किया उन्होंने? क्लीनिंग की, फेक्ट्री में मुलाजमत की। यहाँ तक कि लोगों के घरों का बर्फ़ उठाने तक का काम किया। उनके पाँव देखती हूँ तो मुझे उनके संघर्षों की पूरी दास्तान उनमें दिखती है, उनके पैर कहाँ से कहाँ तक आ गए पर संघर्षों का सिलसिला थमा नहीं।
तुम कितनी बड़ी थी जब यहाँ कनाडा आयी?
मैं ग्रेड नौ में थी जब यहाँ आयी १९९० के शुरुआत में। हम लोग तीन भाई बहन हैं।
अपनी चाईल्ड एजुकेशन के बारे में बताएं।
मेरे पिता जी को शिक्षा की अहमियत मालूम थी, खुद भूखे रहे अपना पेट काटा लेकिन हमें लुधियाने के सबसे बड़े स्कूल, ग्रीन लैंड स्कूल में दाखिला कराया जहाँ करोड़पतियों के बच्चे पढ़ते थे। मेरे सहपाठी ५००-५०० रु जेब खर्च के जेब में डाल कर लाते थे और हमें पिता जी १० रु० देते थे यह कह कर कि जरुरत पड़े तो खर्च कर लेना। और यकीन मानिए वो दस रूपये मेरी जेब में पड़े रहते थे। हमें अपनी कच्ची उम्र में ही यह अहसास हो गया था कि पैसा कहाँ खर्च करना है कहाँ नहीं। हमारी स्कूल ड्रेस फर्स्ट क्लास होती थी और पापा जब हमें स्कूल से लेने जाते तो उनके कपड़ों से उनके पसीने की गंध भरी रहती थे, उनके पास एक इतना पुराना स्कूटर था जिसका साइलेंसर इतनी आवाज़ करता था कि दूसरे गाँव में पता चल जाए कि कौन जा रहा है, खैर ।।
(वो एक पल के लिए बात पूरी किये बगैर रुकी, मुझे ऐसा अहसास हुआ कि टी वी पर फिल्म देखते हुए लाईट चली गयी हो।)
बचपन के बारे में बताओ, तब कैसी थी तुम?
बहुत शरारती, बहुत मुँह फट और साफ़ बाते करने वाली। अपनी इन्हीं हरकतों पर मुझे बहुत मार पड़ा करती थी। मेरी मम्मी ने मुझे बहुत मारा है बचपन में। मेरी एक मौसी थी, मैं बच्ची और वो टीन ऐज में। मैंने उनसे पूछ लिया कि आपका सीना इतना बड़ा क्यों है? अब वो क्या जवाब देती? मेरे मामा की शादी हुई, दुल्हन आयी और मैं उसके पास गयी बोला कि किस से शादी कर ली तुमने? ये शराब पीता है; काम भी कुछ नहीं करता, तलाक दे दो इसे। बस फिर क्या था, घर में पंचायत लगनी ही थी, मेरी मां ने मुझे बहुत मार लगाई। हालाकि मैंने कुछ भी गलत नहीं कहा था। मुझे वही काम करना था जिसे करने के लिए मना किया जाये, सारे फसाद की जड़ यही थी। मैं वाकई एक गैर मामूली शख्सियत थी। पिता जी ने मुझे कभी हाथ नहीं लगाया, मैं उनकी लाड़ली थी। उनके लाड़ के बिना मैं स्टबर्न न हुई होती, जो मैं पूरी शिद्दत के साथ आज भी हूँ।
यहाँ आकर आपकी शिक्षा और प्रोफेशन क्या रहा उसके बारे में बताएं ? आपकी बहन और भाई वो क्या करते हैं?
मुझे दो आप्शन दिए गए थे, कंप्यूटर या डाक्टर बनने का। लेकिन मेरा ज़हन आर्ट्स का था, खैर मैंने मेडिकल क्षेत्र से संबधित लैब टेक्नीशियन का कोर्स किया और जॉब भी मिली, मेरी नौकरी बुजुर्गों की देखरेख करने वाले अस्पताल में लगी, अहले सुबह मुझे उनके खून, पेशाब, मल्ल आदि के सैंपल लेने होते थे, १००-१०० साल के इंसानों के साथ मुझे रहना होता था, कभी कभी कोई तो पुराने ज़माने के स्टार तक होते और उनकी इस बेकस ज़िंदगी मुझे भीतर तक हिला देती, मैं उनकी तस्वीरें देख उनकी कहानियों में रच बस जाती थी, घर आकर भी मेरे साथ अस्पताल के किरदार ही गर्दिश करते रहते, फिर एक दिन मैंने सोचा कि ये यह सब मुझ से नहीं होगा। सो वो लाइन ही छोड़ दी। फिर मैंने भी बहुत से काम किये, होम डिपो, कनेडियन टायर्स, सेल्स, रेस्तरां न जाने क्या-क्या और और कहाँ-कहाँ नौकरी करती रही, मन नहीं लगता तो छोड़ देती थी। आजकल मैं एक्वा फिटनेस में फिटनेस इंस्ट्रक्टर भी हूँ, और साथ ही सेंटिनियल कालिज यार्क रीजन से मॉस कम्युनिकेशन में एक डिप्लोमा कर रही हूँ। मेरी बड़ी बहन टोरंटो में एक बेहद सफल रियल स्टेट्स ब्रोकर है और भाई लॉ ग्रेजुएट है।
विवाह और धर्म पर आपके क्या विचार हैं?
विवाह दो वयस्कों का एक साथ रहने का निर्णय है इससे ज्यादा और कुछ नहीं। इसीलिये मैं अपने हसबैंड को पार्टनर कहती हूँ पति नहीं। अजित सिंह मेरे २००९ से पार्टनर हैं, बेहद खूबसूरत इंसान हैं। मैं कोई वस्तु नहीं कि कोई मेरा रखवाला होगा। घर में मेहमानों के आने पर चाय पत्नी ही क्यों बनाये? मैं इस तरह की संस्कारी महिला नहीं हूँ। रही बात धर्म की, मैं नहीं समझती कि मैं किसी ख़ास धर्म में यकीन करती हूँ। धर्म आपका निजी मसला है आपका जहाँ दिल लगे वहाँ जाएँ लेकिन दूसरे की ज़िंदगी में दखल न दें।
सबसे ज्यादा चिढ़ किससे है आपको? क्या कोई शौक भी है ?
मुझे सिफारिशी लोगों से बहुत चिढ़ है, ये बिलकुल बर्दाश्त से बाहर है। दूसरे रंग, क्षेत्र, जुबान, मज़हब के नाम पर होने वाले किसी भी तरह के भेदभाव मुझे पसंद नहीं। मैं एक पक्षी प्रेमी भी हूँ। मेरे घर में मेरे बेडरूम से बड़ा मेरे पक्षियों का रूम है।
ये अंग दान आदि का ख्याल कैसे आया तुम्हें, एक सफल एनजीओ “अमर कर्मा” बना डाला उसके बारे में तफ्सील दीजिये।
मैंने २००६ में अपने माता पिता का घर छोड़ दिया था, किचनर शहर में जाकर रहने लगी थी। तब एक दिन बस स्टॉप पर एक महिला से बाते करने लगी। मैं खामोश मिजाज़ की महिला नहीं हूँ। इंसानों से बातचीत करना मेरी आदत है। उससे बातें हुई तो पता चला कि वह बीमार है और किडनी प्रत्यार्पण में उसका नाम वोटिंग लिस्ट में है। तब मुझे लगा कि क्या यह वास्तविक प्रश्न है। फिर मुझे ख्याल आया कि वेंकूवर में एक हमारी पारिवारिक मित्र लड़की थी वह बहुत बीमार रहा करती थी और अंतत: उसकी मृत्यु हो गयी उसे भी अंग दान की जरुरत थी, अगर उसे वह अंग मिला होता तो वह आज भी हमारे बीच रही होती। धीरे-धीरे मैंने इस सवाल पर रिसर्च करनी शुरू की और इस काम को आगे बढ़ाने की ठान ली नतीजन एक संस्था बना ली। हमारी कम्युनिटी में इसका आमतौर पर स्वागत किया गया लेकिन कुछ लोगों का मानना था कि अंग दान करने वाले की आत्मा भटकती रहेगी। ऐसे सभी सवालों से संघर्ष करते हुए मैंने इस चुनौती को स्वीकार किया। आज ‘अमर कर्मा’ के पास लगभग ८० स्वयंसेवियों की फ़ौज है। वेंकूवर, कैलगरी, ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, लुधियाना जैसी जगहों से मुझे लोग संपर्क करते हैं और ‘अमर कर्मा’ की शाखा के गठन की मांग करते हैं, यह काम हम शीघ्र ही भविष्य में करने वाले हैं। जल्दी ही ‘अमर कर्मा’ एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था बनेगी, मेरा ऐसा विश्वास है।
विश्व राजनीति पर आपकी क्या राय है और खासकर भारत में आये नए राजनीतिक बदलाव को आप किस नज़रिए से देखती हैं ?
बुनियादी रूप से दुनिया में राजनीति का सबसे गहरा असर यह है कि कैपिटल बहुत कम लोगों के हाथों में एकत्रित होती जा रही है, सारे संकटों की जड़ में यही समस्या है। इसका इतना अधिक केन्द्रीयकरण जनहित में नहीं है, इसे रोका जाना चाहिए। रहा भारत का सवाल, वह एक लोकतंत्र है और लोगों ने भारी बहुमत से नरेंद्र मोदी की सरकार को जिताया है, इसके दुष्परिणाम अगर कुछ होंगे तो उन्हें ही झेलने होंगे।
आप कनाडा में साऊथ एशियन पंजाबी कम्युनिटी से ताल्लुक रखने वाली एक प्रभावशाली कवियत्री हैं,
डाक्टर वरियाम सिंह संधु द्वारा संपादित ‘सीरत’ मैगजीन में आपको जगह मिलना अपने आप में एक उपलब्धि है। आप ‘सोंचिडी’ नामक आनलाइन साप्ताहिक पत्रिका का लगभग दो वर्षों से संपादन भी कर रही है। आप अंग्रेजी,पंजाबी और हिन्दी भाषाओँ में कायदे से लिख रही हैं। अपनी लेखन यात्रा के बारे में कुछ बताएं।
मेरा बेचैन स्वभाव ही मेरी कलम है, मैं जब बेचैन होती हूँ तब लिखती हूँ और लिखना मैंने भारत में ही, बचपन से शुरू कर दिया था। स्कूल की स्मारिका में मेरी कवितायेँ छपी थी, बस तब से यह सफ़र चल ही रहा है। कनाडा के स्टार समाचार पत्र, हिंदुस्तान टाइम्स में भी मैं छपी हूँ। यहाँ कनाडा से प्रकाशित होने वाले लगभग सभी लोकल पत्रों में मुझे जगह मिली है। अभी मैं अपनी दो किताबों पर काम कर रही हूँ। एक पंजाबी कविताओं का संग्रह होगा जिसका नाम अभी तय नहीं किया, दूसरा मेरी अंग्रेजी कविताओं का संग्रह होगा जिसका नाम ‘रिवर’ होगा।
आप मिसिसागा शहर से काउंसलर का चुनाव लड़ रही हैं, २७ अक्टूबर को चुनाव हैं, यह सब कैसे और क्यूँ हुआ? आपका एजेंडा क्या रहेगा?
बस ये अचानक ही हुआ एक तरह से, या यूँ कहें कि पियर्स प्रेशर का अंजाम हुआ। एक सामाजिक कार्यकर्ता होने के नाते मैं सामुदायिक मसलों पर हमेशा सक्रिय रही हूँ और मेरी पहचान एक समर्पित सोशल वर्कर की है। इसके अलावा ‘अमर कर्मा’ प्रोजेक्ट में काम करते करते मुझ पर मेरे प्रशंसकों सहित सहकर्मियों का भी प्रेशर था कि मैं चुनाव लडूं। आखिर नौजवानों को राजनीति से दूरी क्यों बना कर रखनी चाहिए, मुझे यह बात समझ में नहीं आती। फिर मेरी सोशल लाईफ की यह एक तार्किक परिणिति ही है। मुझे राजनीति से कोई परहेज नहीं, वैचारिक दृष्टि से मैं खुद को लिबरल्स के नज़दीक समझती हूँ। पर्चा भरने के बाद मुझे जो संदेश और प्रतिक्रियाएं मिली हैं उससे मुझे यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि कुछ पुरानी दीवारें जरूर चटखने लगी हैं। जब मुझे कोई चुनौती देता है तब मैं अपनी फितरत के मुताबिक और हिम्मत से भर जाती हूँ। मुकाबला और तजुर्बा दिलचस्प होगा परिणाम चाहे कुछ भी हों। रही बात एजेंडे की तो मैं शहरियों के लिए बेहतर ट्रासंपोर्ट सुविधाओं के लिए भरसक प्रयास करूंगी। शिक्षा के लिए माकूल फंड्स लगवाने का प्रयास करूंगी। रोज़गार के बेहतर अवसरों के लिए लडूंगी और रोज़गार दिलाने वाली संस्थाओं के बेहतर प्रबंधन, बेहतर अस्पतालों के लिए काम करूंगी।
भारत और कनाडा इन दो देशों में एक दूसरे के विपरीत संस्कृतियाँ हैं, आपकी क्या समझ है इस प्रश्न पर ?
कनाडा जो आज है वह १०० बरस पहले नहीं था, ये नया देश है। बिलकुल किसी नई इमारत और किसी घर की तरह। साफ़ सुथरा है, नीतियाँ और संस्कार सभी कुछ नया है। भारत एक पुरानी हवेली की तरह है और जाहिर है पुराने घर में सौ तरह की दिक्कतें होती है, यहाँ वहाँ बहुत कुछ टूट फूटा रहता है, पुराने घरों में कीड़े मकौड़े, बग्स अक्सर पैदा हो जाते हैं। उन्हें हमने साफ़ ही नहीं किया। कनाडा की स्वतंत्रता, मानवाधिकार, प्रशासन व्यवस्था में आज भी लगातार बदलाव आ रहे हैं लोग इसे और बेहतर बनाने की जुस्तजू में लगे हैं, यह काम भारत में नहीं हुआ। हम पुरानी चीजों को और सहेज कर रखने और उनकी मरम्मत करके चलाने वाले लोग हैं।
मैं आपको तीन आप्शन देता हूँ जो आपकी शख्सियत के तीन रंग मुझे दिखे, १. कवयित्री,२. नारीवादी, ३. सोशल एक्टिविस्ट- आप किसे पहले चुनेंगी?
मैं तीनों ही हूँ बस नारीवादी की जगह मानवतावादी कर लें। मैं इस तरह की नारीवादी नहीं हूँ, मेरा नज़रिया थोड़ा भिन्न है। औरत मजलूम है इसलिए उस पर ज़ुल्म होता है इसलिए मैं मानवतावादी हूँ, मेरे मानवतावाद में नारी समाहित है।
मैंने बातचीत खत्म करके लवीन को चुनाव के रण में उतरने की बधाई दी और लगभग डेढ़ घंटे की बातचीत को विराम दिया। हल्की फुल्की बातेx करते हुए हम दोनों रेस्तरां के बाहर अपनी अपनी कारों की तरफ बढ़े। मेरी कार के बराबर में खड़ी उस लाल रंग की खूबसूरत कार में लवीन घुसी, कार स्टार्ट कर, खिड़की नीचे उतारते हुए कहा ‘बाय - सी यू लेटर’।
शमशाद इलाही शम्स
शमशाद इलाही शम्स। लेखक टोरंटो स्थित टीकाकार हैं।<
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Topics - लवीन कौर गिल, Loveen Kaur Gil,डॉक्टर वरियाम सिंह संधु द्वारा संपादित ‘सीरत’ पत्रिका, साऊथ एशियन पंजाबी कम्युनिटी, पंजाबी कविता, भारत, कनाडा, South Asian community, Punjabi, Punjabi Poetry, India, Canada, conversation with Canadian expatriate Punjabi poetess Loveen Kaur Gill, ਲਵੀਨ ਕੌਰ ਗਿਲ – ਕੈਨੇਡਾ,